उत्तर प्रदेश चुनाव: मुसलमान असमंजस मे
(Uttar Pradesh Elections: Muslims Are Confused To Vote)
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव २०१७ रोमांचक स्थिति में है. श्री अखिलेश यादव ने अपने पिता श्री मुलायम सिंह यादव और चाचा श्री शिवपाल सिंह यादव को हराकर पहली बाधा पार कर ली. कांग्रेस से गठबंधन कर के श्री अखिलेश ने दूसरी बाधा भी पार कर ली है. कांग्रेस से गठबंधन के पहले स्थिति साफ़ नहीं थी कि मुकाबला किसके बीच में है. अब यह बात साफ़ हो गई है कि मुकाबला त्रिकोणीय होगा, बाज़ी कौन मारेगा , वोटों की गिनती के बाद ही पता चलेगा. नोटबंदी की मार झेल रही जनता भाजपा को तीसरे स्थान पर भेज सकती है. सुश्री मायावती की बसपा पहले नंबर पर आती है या सपा-कांग्रेस गठबंधन, कुछ कहा नहीं जा सकता. श्री असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी “ऐमिम’’(AIMIM) कुछ सीटें प्राप्त कर उत्तर प्रदेश मे अपनी उपस्थिति पांचवीं पार्टी के रूप में दर्ज करा सकती है.
मेरे विचार में कांग्रेस ने सपा से गठबंधन करके गलती की है.
कांग्रेस और राहुल गाँधी ने जिस ढंग से उत्तर प्रदेश चुनाव अभियान की शुरुआत की थी, जनता में अच्छा सन्देश गया था. इस गठबंधन से
वह सन्देश जाता रहा है. अगर गठबंधन भी करना था तो बसपा से करना चाहिए था क्योंकि सपा
के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर (Ante
Incumbency Factor) भी काम कर सकती है. बसपा और
कांग्रेस के साथ अगर ‘ऐमिम’ भी आ जाती तो इस गठबंधन को हराना दूसरों के लिए काफी
मुश्किल था क्योंकि आजकल उत्तर प्रदेश के
अधिकांश मुसलमानों का झुकाव इस पार्टी की तरफ हुआ है.
बसपा और ऐमिम की संभावित गठबंधन की अफवाह कई बार उड़ चुकी है पर
ऐसा न हो सका. सूत्र बताते हैं कि इसके लिए मायावती ही जिम्मेदार है. उन्हें लगता
है कि अगर एक बार इनसे गठबंधन हो गया तो श्री ओवैसी मुसलमानों के निर्विवाद नेता
हो जायेंगे जिस तरह वह खुद दलितों की है और
भविष्य में हमेशा मुसलमानों के वोट के लिए ओवैसी पर आश्रित रहना पड़ेगा. लेकिन इस
बार अगर मुसलमानों के अधिकांश वोट ऐमिम को चला गया तो मायावती के सामने ५ साल के
लिए पश्चाताप करने के सिवा कुछ न मिलेगा. मायावती पूर्व मे भाजपा से मिलकर सरकार बना चुकी हैं और भविष्य मे वह ऐसा नहीं करेगी,
इसका वादा वह नहीं करतीं. हालाँकि मायावती ने इस बार टिकट बाँटने में मुसलमानों को तरजीह दिया है फिर भी
वह मुसलमानों के लिए संदिग्ध हैं. वैसे मायावती के शासन में जो उत्तर प्रदेश की कानून व्यवस्था थी वह अखिलेश शासन से तो बेहतर
ही कही जा सकती है.
आज से पहले, उत्तर प्रदेश
में मुसलमानों के वोट कांग्रेस, सपा और बसपा में बंटती रही है. कांग्रेस और ऐमिम
का गठबंधन पूर्व में आंध्र प्रदेश में रहा है है पर आज यह मुश्किल इसलिए दिखता है कि
दोनों एक दुसरे पर ‘बयानों’ के हमले कर रहे हैं ताकि मुसलमानों के वोट उनको मिले.
मुज़फ्फरनगर आदि दंगों और
कानून व्यवस्था को लेकर सपा से उत्तर प्रदेश के मुसलमान काफी नाराज हैं. मुसलमानों
के लिए आरक्षण का वादा भी अखिलेश ने पूरा नहीं किया. इस बार तो आरक्षण का वादा भी
नहीं किये. ऐसा लगता है कि सपा भी अब भाजपा कि नीतियों का अनुसरण कर रही है.
उत्तर प्रदेश के मुसलमानों का एक धड़ा
‘ऐमिम’ से इस बात पर नाराज है कि उसने उत्तर प्रदेश में पूर्व से मुस्लिम
हितों के लिए काम कर रही पार्टी पीस
पार्टी, राष्ट्रीय उलेमा कौंसिल और कौमी
एकता दल की अनदेखी की है और आपसी गठबंधन के लिए कोई प्रयास नहीं किया.
कुल मिलाकर उत्तर प्रदेश का
मुसलमान असमंजस की स्थिति में है कि वोट
किसे दें और किसे न दें.