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Sunday, January 11, 2015

आरक्षण खत्म करने का समय (Reservations should be end)

हाल ही मे BJP नेत्री और केंद्रीय अल्पसंख्यक विकास मंत्री नजमा हेपतुल्ला का बयान पढ़ा। उन्होंने कहा कि मुस्लिम समाज को किसी आरक्षण की जरूरत नहीं है। उसे इस काबिल बनाया जाए, जिससे कि उसे किसी तरह के आरक्षण की जरूरत ही नहीं हो। बयान तो स्वागत योग्य है लेकिन इतनी बढ़िया सोच सिर्फ मुसलमानों के लिए ही क्यों? यही सोच अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और पिछ़डे वर्गों के लिए क्यों नहीं? क्या यह बेहतर नहीं होगा कि इन्हें भी आरक्षण न देकर मुसलमानों की तरह ही इनका ऐसा विकास किया जाए कि इन्हें आरक्षण की जरूरत ही न पड़े।
 
महाराष्ट्र की पिछली कांग्रेस सरकार ने मराठा और मुसलमान दोनों के लिए आरक्षण की घोषणा की थी, जिस पर मुम्बई हाइ कोर्ट ने स्थगन आदेश दे दिया। वहां नई बनी BJP सरकार इस स्थगन आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट गई, लेकिन सिर्फ मराठा आरक्षण के लिए। इस तरह के न्यायिक और साहसी कदम की BJP से ही उम्मीद की जा सकती है।
 
केन्द्र में BJP की पूर्ण बहुमत वाली सरकार है। अच्छा मौका है कि नजमा हेपतुल्ला की सोच को विस्तृत तौर पर लागू किया जाए और सारे आरक्षण खत्म कर दिए जाएं। इससे सभी लोगों को समान अवसर भी उपलब्ध होगा। फिर मुसलमानों दवारा आरक्षण की मांग भी खत्म हो जाएगी। सवर्ण लोगों द्वारा आरक्षण की आलोचना भी बंद हो जाएगी। वोट बैंक की राजनीति भी खत्म होगी।
 
न्याय करने का दूसरा तरीका है 100% आरक्षण लागू करने का। जातीय जनगणना के अनुसार सवर्ण सहित सभी देशवासियों को आरक्षण की सुविधा दी जाए। इससे भी सभी लोगों को समान अवसर प्राप्त होगा और साथ ही वोट बैंक की राजनीति भी खत्म होगी। जहाँ तक मेधा का सवाल है तो मेधा किसी जाति की बपौती तो नही। हर धर्म और हर जाति मे मेधावी लोग हैं।
 

Tuesday, January 6, 2015

PK के कुछ दृश्यों ने कबाड़ा किया (Some scenes of PK are really bad)

फिल्मों पर विवाद करना हमेशा से फिल्म वालों का लाभ पहुंचाना होता है। विवाद बढ़ने से फिल्म को मीडिया मे खूब जगह मिलती है जिससे फिल्म के दर्शकों की संख्या बढ़ती है। इससे फिल्म से जुड़े लोगों को आर्थिक लाभ के साथ शोहरत भी खूब मिलती है। अगर PK फिल्म पर ज्यादा विवाद नहीं होता तो फिल्म को उतने दर्शक नहीं मिलते जितने अभी मिल रहे हैं। फिल्म के हद से ज्यादा विवाद ने मेरी उत्सुकता और जिज्ञासा इतनी बढ़ा दी कि लगभग 6 सालों बाद मुझे एक और फिल्म देखनी पड़ी।

 
फिल्म में धार्मिक आडंबर और फर्ज़ी बाबाओं तथा धर्म के फर्ज़ी ठेकेदारों के साथ पुलिस के भ्रष्टाचार और ब्रेकिंग न्यूज़ के लिए मीडिया के गन्दे काम को भी इसमें प्रदर्शित किया गया है। साथ ही सही न्यूज़ चलाने पर मीडिया को अंधभक्तों के हमले का सामना करना समाज की असहिष्णुता को भी दिखाता है। झूठ की दुकान चलाने वालों की अगर पोल खोली जाएगी तो ऐसे दुकानदारों का भड़कना स्वाभाविक ही है। भारतीय जनता पार्टी के श्री लाल कृष्ण आडवाणी, श्री सुशील कुमार मोदी आदि द्वारा फिल्म को समर्थन दिए जाने से फिल्म के विरोधियों की जहां मिट्टी पलीत हुई वहीं उत्तर प्रदेश और बिहार सरकार द्वारा फिल्म को टैक्स फ्री किए जाने से आम जनता और फिल्म वाले दोनों का लाभ हुआ।
 
अच्छे उद्देश्यों के लिए बनाई गई बेहतरीन और परिवारिक फिल्म के कुछ दृश्यों ने इसे कमजोर किया है। सुशांत सिंह और अनुष्का शर्मा के बीच का स्मूचिंग दृश्य परिवार के साथ बैठ कर देख रहे लोगों को असहज करता है। इस दृश्य की फिल्म मे कोई आवश्यकता नहीं थी। फिर आमिर ख़ान द्वारा एक आदमी के पिछवाड़े मे उंगली करना फूहड़ता का परिचायक है। भगवान का स्टाम्प खोजते हुए एक नवजात बालक के गुप्तांगों पर फोकस का दृश्य भी परेशान करने वाला है। सेन्सर बोर्ड अगर ऐसे दृश्यों को भी नजरअंदाज करता है तो इसकी जरूरत ही क्या है?


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