फिल्मों पर विवाद करना हमेशा से फिल्म वालों का लाभ पहुंचाना होता है। विवाद बढ़ने से फिल्म को मीडिया मे खूब जगह मिलती है जिससे फिल्म के दर्शकों की संख्या बढ़ती है। इससे फिल्म से जुड़े लोगों को आर्थिक लाभ के साथ शोहरत भी खूब मिलती है। अगर PK फिल्म पर ज्यादा विवाद नहीं होता तो फिल्म को उतने दर्शक नहीं मिलते जितने अभी मिल रहे हैं। फिल्म के हद से ज्यादा विवाद ने मेरी उत्सुकता और जिज्ञासा इतनी बढ़ा दी कि लगभग 6 सालों बाद मुझे एक और फिल्म देखनी पड़ी।
फिल्म में धार्मिक आडंबर और फर्ज़ी बाबाओं तथा धर्म के फर्ज़ी ठेकेदारों के साथ पुलिस के भ्रष्टाचार और ब्रेकिंग न्यूज़ के लिए मीडिया के गन्दे काम को भी इसमें प्रदर्शित किया गया है। साथ ही सही न्यूज़ चलाने पर मीडिया को अंधभक्तों के हमले का सामना करना समाज की असहिष्णुता को भी दिखाता है। झूठ की दुकान चलाने वालों की अगर पोल खोली जाएगी तो ऐसे दुकानदारों का भड़कना स्वाभाविक ही है। भारतीय जनता पार्टी के श्री लाल कृष्ण आडवाणी, श्री सुशील कुमार मोदी आदि द्वारा फिल्म को समर्थन दिए जाने से फिल्म के विरोधियों की जहां मिट्टी पलीत हुई वहीं उत्तर प्रदेश और बिहार सरकार द्वारा फिल्म को टैक्स फ्री किए जाने से आम जनता और फिल्म वाले दोनों का लाभ हुआ।
अच्छे उद्देश्यों के लिए बनाई गई बेहतरीन और परिवारिक फिल्म के कुछ दृश्यों ने इसे कमजोर किया है। सुशांत सिंह और अनुष्का शर्मा के बीच का स्मूचिंग दृश्य परिवार के साथ बैठ कर देख रहे लोगों को असहज करता है। इस दृश्य की फिल्म मे कोई आवश्यकता नहीं थी। फिर आमिर ख़ान द्वारा एक आदमी के पिछवाड़े मे उंगली करना फूहड़ता का परिचायक है। भगवान का स्टाम्प खोजते हुए एक नवजात बालक के गुप्तांगों पर फोकस का दृश्य भी परेशान करने वाला है। सेन्सर बोर्ड अगर ऐसे दृश्यों को भी नजरअंदाज करता है तो इसकी जरूरत ही क्या है?
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Very nice KHURSHID sahab, wonderful
ReplyDeleteThanks Wasim.
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