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Tuesday, October 25, 2016

Talaq is like Effective Poison

Difference between One and Three Talaq:

Many Muslims think that a Talaq (Divorce) will be valid when it will be pronounce 3 times (Triple Talaq). So if a husband wants to be separate from his wife, he gives 3 Talaq. But this recognition is just an error. Truth is that Talaq will be valid even if it will be pronounced 1 or 2 times.

          With one or two Talaq also, couples may be separate forever. After one or two Talaq, wife, after 'Iddat' period, can do a second marriage and she can be of other forever. Or if she wishes, can marry former husband again.

               In case of 3 Talaq, a man can marry his ex-wife if the ex-wife makes a marriage with other man and other man divorces her or the other man dies. So it's better that if a husband wants to be separate from his wife One Talaq (or 2 Talaq) should be pronounced. Similarly, if a wife asks divorce from husband through 'Khula', she should take One Talaq (or 2 Talaq) only. This One Talaq (or 2 Talaq) will give advantage in the future and if they wish to marry again each other, can marry without any embarrassment.


Differences about Triple Talaq:

There are some differences about Triple Talaq among Islamic scholars. Some believe that if Triple Talaq are pronounced at one time or same gathering, it will be treated as One. As per these Islamic scholars, Triple Talaq will be counted as Three if Triple Talaq are pronounced in 3 different gatherings.
        But other Islamic scholars believe that Triple Talaq will be counted Three even if it pronounced together or separately. As per their explanation, Triple Talaq are like "three cups of effective poison’, it will impact a man if he drink in a joke, anger or intoxication position.

Allah dislikes divorce:
Talaq is even Halal but Allah dislikes it. According to a hadith, when a husband divorces his wife, chair of Allah, is shaken. So, it should be avoided as far as possible. Before divorce, should be resolve the differences. To resolve the differences, a meeting should be organized with parents, guardians and Islamic scholars. It should be noted that every human being has some error and nobody is 100 percent perfect. Proceed with life and ignore each other's mistakes.
      If there is no option remaining to live together in harmony then use a “cup of poison of divorce” and use only one “cup of poison of divorce” to be separate so that if you repent in the future, you can atone .
 - Mohammad Khurshid Alam

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Sunday, October 23, 2016

एक और तीन तलाक का फर्क (Difference between One and Three Talaq)

एक और तीन तलाक का फर्क (Difference between One and Three Talaq)

मुसलमानों के बीच आम तौर पर यह  गुमराही फैली हुयी है कि ‘तीन तलाक’ (Triple Talaq) से ही तलाक होता है. इसलिए अगर कोई पुरुष अपनी पत्नी से अलग होना चाहता है तो ‘तीन तलाक’ दे देता है. लेकिन यह मान्यता एक गुमराही भर है. 

     सच यह है कि एक या दो तलाक से भी पति-पत्नी सदा के लिए अलग हो सकते हैं. एक या दो तलाक के बाद पत्नी ‘इद्दत’ का वक़्त गुजरने के बाद दूसरी शादी कर सकती है और सदा के लिए दुसरे की  हो सकती है. और अगर चाहे तो अपने पूर्व पति से भी शादी कर सकती है. ‘तीन तलाक’ कि स्थिति में यह सुविधा बाकी नहीं रह पाती है.  ‘तीन तलाक’ से अलग हुए पति-पत्नी चाह कर भी आपस में फिर से निकाह नहीं कर सकते जब तक कि पत्नी कोई दुसरे मर्द से निकाह करे और फिर उसका तलाक हो जाए या दुसरे  शौहर का इन्तिकाल हो जाए.


    इसलिए बेहतर यही है कि अगर कोई पुरुष अपनी पत्नी से अलग होना चाहे तो ‘एक तलाक’ से ही अलग हो जाए. इसी तरह अगर कोई पत्नी ‘खुला’ के ज़रिये तलाक मांग रही है तो उसे भी चाहिए कि ‘एक तलाक’ ले और अलग हो जाए. इस एक (या दो) तलाक का फायदा यह होगा कि भविष्य में जब वे आपस में फिर से निकाह करना चाहें तो बिना किसी शर्मिंदगी के कर सकते हैं.

‘तीन तलाक’ के मतभेद:

आलिमों के बिच ‘तीन तलाक’ पर कुछ मतभेद हैं. कुछ आलिमों का मानना है कि ‘तीन तलाक’ अगर एक ही बार में यानी एक ही मजलिस में दे दिया गया तो उसे एक ही माना जाएगा. इन आलिमों के नजदीक ‘तीन तलाक’ अगर अलग अलग मजलिस में (कुछ अन्तराल पर ) दिया गया तभी माना जाएगा. जबकि कुछ आलिम यह मानते हैं कि ‘तीन तलाक’ एक साथ दें या अलग अलग, दोनों ही स्थिति में इसे ‘तीन तलाक’ ही माना जाएगा. इनके नजदीक ‘तीन तलाक’ बाअसर ज़हर के तीन प्याले की तरह हैं. इसे चाहे मजाक में पी लें, नशे की  हालत में पी लें या फिर गुस्से में, यह असर करेगा ही. (Talaq is like a effective poison, it will effect you if you eat or drink even in anger, joke or intoxication condition)

अल्लाह को नापसंद है तलाक: 
तलाक हलाल जरुर है लेकिन यह अल्लाह के नजदीक एक नापसंदीदा अमल है. एक हदीस के अनुसार जब कोई पति अपनी पत्नी को  तलाक देता है तो अल्लाह का अर्श हिल जाता है. इसलिए जहाँ तक हो इस से बचना चाहिए. तलाक के पहले आपसी अनबन को हल करने के लिए अपने अभिभावक और उलेमा के साथ मीटिंग करना चाहिए. यह हमेशा ध्यान रखना चाहिए कि हर इंसान में कुछ न कुछ कमी रह सकती है. एक दुसरे की गलतियों को नज़र अंदाज़ कर आगे बढ़ना चाहिए. अगर मिल जुल कर एक साथ रहने की कोई  सूरत बाकी न रहे तभी तलाक का ज़हर पीना चाहिए. और अगर तलाक का ज़हर पीना ही पड़े तो एक ही प्याली पियें यानी एक तलाक से अलग हों ताकि भविष्य में अगर पश्चाताप हो तो इसका प्रायश्चित कर सकें.

- मोहम्मद खुर्शीद आलम (Mohammad Khurshid Alam)

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Tuesday, October 11, 2016

क्यों (Why)


     क्यों (Why)

जमाने को आज हो क्या गया है,
कातिल मुंसिफ बन क्यों गया है?


कानून बनते थे जिन पर शिकंजे को,
वही आज कानून बना क्यों रहा है?


गाँधी को समझते थे जो अपना दुश्मन,
वाह वाह गाँधी’ आज  कर क्यों रहा है?


अक्सर करते हैं जो गन्दी राजनीति,
स्वच्छता की बात आज कर क्यों रहा है?


लड़ा ही नहीं जो आजादी का जंग,
खुर्शीद’ को देशभक्ति सीखा  क्यों रहा है?

   -    मोहम्मद खुर्शीद आलम (Mohammad Khurshid Alam)

Sunday, October 9, 2016

प्रतियोगी परीक्षाओं का खर्च सरकार उठाये (Government Should Bear Expenses of Competitive Examination)

प्रतियोगी  परीक्षाओं का खर्च सरकार उठाये (Government  Should Bear Expenses of Competitive Examination)

      केंद्र सरकार की रिक्तियां हों या राज्य सरकार की या शैक्षणिक संस्थानों में दाखिले के लिए विद्यार्थियों का चयन  , अधिकांश मामलों में प्रतियोगिता परीक्षा का आयोजन होता है. इसके लिए आवेदकों से परीक्षा शुल्क के नाम पर अच्छी खासी राशि ली जाती है. कुछ परीक्षाओं में SC, ST और दिव्यांग आवेदकों से  या तो यह राशि नहीं ली जाती या अन्य आवेदकों के मुकाबले कम ली जाती है. बहुत ही कम ऐसी परीक्षाएं होती हैं जिनमे परीक्षा शुल्क नहीं लिया जाता है.



इन आवेदकों में अधिकांश या तो बेरोजगार होते हैं या फिर विद्यार्थी. बहुत ही कम आवेदक ऐसे होते हैं जो पहले से नौकरी कर रहे हों और बेहतर नौकरी या बेहतर  पढाई के लिए आवेदन किये हों.


केंद्र सरकार या राज्य सरकार गरीबों, मजदूरों, किसानों, पिछड़े, दलितों, अल्पसंख्यकों आदि लोगों के लिए भिन्न भिन्न योजनाओं के जरिये मदद पहुंचाती है या सबसिडी देती है. अगर बेरोजगारों और विद्यार्थियों के कल्याण की  नियत से उपरोक्त परीक्षा शुल्क को केंद्र सरकार या राज्य सरकार या उनके नियोक्ता विभाग वहन करे तो सरकारों पर कोई पहाड़ टूट  नहीं पड़ेगा.


मेरे विचार से बेरोजगारों और विद्यार्थियों के भलाई के  लिए सम्बंधित सरकारों को यह जिम्मेदारी उठानी चाहिए क्योंकि ये लोग या तो अपने माता पिता पर आश्रित  होते हैं या फिर किसी अभिभावक पर. बेरोजगारी के डंक से पीड़ित इन लोगों को बार बार परीक्षा शुल्क के डंक से निजात दिलाना ही चाहिए.

Wednesday, October 5, 2016

शहाबुद्दीन मुस्लिमों के रहनुमा नहीं बन सकते (Shahabuddin can't be leader of Muslims)

राजद के पूर्व सांसद और दबंग नेता मो० शहाबुद्दीन आजकल चर्चा के केंद्र में हैं. हर कोई उनकी चर्चा कर रहा है चाहे उनके विरोधी हों या फिर समर्थक. कुछ दिन पहले तक शायद उनको भी यह अहसास नहीं होगा कि उनकी चर्चा सिर्फ देश में नहीं बल्कि विदेशों में भी होगी. उनकी सनसनी अगर पूरी दुनिया में है तो इसका क्रेडिट भारतीय मीडिया और भारतीय जनता पार्टी को जाता है.

शायद इतिहास में पहली बार भारतीय जनता पार्टी जैसी बड़ी पार्टी ने हाई कोर्ट के बेल के फैसले को ‘राज्य सरकार’ का फैसला बता कर पुरे राज्य में आन्दोलन किया. देश की  कई निचली अदालतों ने दंगा, फेक एनकाउंटर, दलित नरसंहार, हत्या आदि कई बड़े अभियुक्तों को बेल दिया है या बरी किया है पर उसके खिलाफ इस ढंग का आन्दोलन नहीं देखा गया और न ही मीडिया में ज्यादा सुर्खियाँ पाई.
मीडिया और कुछ राजनितिक पार्टियों द्वारा किये इस अन्याय की  वजह से मो० शहाबुद्दीन के प्रति कुछ लोगों में सहानुभूति पैदा हुयी है. इस सहानुभूति को सोशल मीडिया और शहाबुद्दीन के समर्थकों द्वारा चलाये गए आन्दोलन में भारी भीड़ से समझा जा सकता है.
इस सहानुभूति और समर्थन से मो० शहाबुद्दीन के समर्थक उन्हें मुस्लिमों के रहनुमा के तौर पर पेश कर रहे हैं पर मुझे लगता है कि ऐसा नहीं हो सकता. मो० शहाबुद्दीन मुस्लिमों के रहनुमा नहीं बन सकते जैसी सोंच में  मुझे निम्नलिखित कारण दिखलाई पड़ते हैं.
१.      आजादी के बाद से ही मुस्लिम गैर-मुस्लिम को ही अपना नेता बनाते आये हैं. पहले गैर-मुस्लिम नेतृत्व वाली  कांग्रेस फिर सपा, राजद, बसपा आदि पार्टी को वोट देते हैं.
२.      मो० शहाबुद्दीन जिस पार्टी से आते हैं उसका नेतृत्व लालू यादव करते हैं जो कि मुस्लिमों में खूब लोकप्रिय हैं. लालू जैसा नेतृत्व कौशल उनके बस की बात नहीं.
३.      मो० शहाबुद्दीन की  पहचान अब एक अपराधी के रूप में हो चुकी है. इस पहचान से मुक्ति पाना आसान नहीं है. मुस्लिम किसी अपराधी या दागी चरित्र को अपने रहनुमा के तौर पर  स्वीकार नहीं कर सकते.
४.      अगर मुस्लिम को मुस्लिम नेतृत्व चुनना पड़ेगा तो असदुद्दीन ओवैसी उनसे बेहतर विकल्प हैं.
५.      रहनुमा  के तौर पर असदुद्दीन ओवैसी मो० शहाबुद्दीन पर भारी पड़ेंगे क्योंकि उनका जनाधार पुरे देश में है जबकि मो० शहाबुद्दीन का बिहार तक सीमित है.
६.      असदुद्दीन ओवैसी मो० शहाबुद्दीन पर भारी इसलिए भी हैं कि उनकी छवी साफ़ सुथरी है.
७.      असदुद्दीन ओवैसी मो० शहाबुद्दीन पर भारी इसलिए भी  हैं क्योंकि वो दलितों को साथ लेकर चलते हैं जबकि मो० शहाबुद्दीन की  सिवान में लड़ाई दलितों कि हितैषी वामपंथियों से रही है.
८.      असदुद्दीन ओवैसी मो० शहाबुद्दीन पर भारी इसलिए भी पड़ेंगे क्योंकि उनमे भाषण देने की  कला और वाक्पटुता में महारत हासिल है.
९.      मो० शहाबुद्दीन के जेल से जल्द बाहर निकलने के आसार कम हैं.
१०.  मो० शहाबुद्दीन में दबंगई के गुण तो है पर वे राजनीति के वो कुशल खिलाडी नहीं हैं जिसकी वजह से जेल से बाहर आते ही मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से पंगा ले लिए.

लेकिन मुझे यह भी लगता है कि अगर मो० शहाबुद्दीन और असदुद्दीन ओवैसी साथ आते हैं तो कांग्रेस, सपा, राजद, बसपा आदि पार्टी का काफी नुक्सान होगा.

Monday, October 3, 2016

शराब निर्माण और पैकिंग एवं बॉटलिंग भी बंद हो (Production, bottling and packing of liquor should be banned also in Bihar)

       एक तरफ बिहार सरकार बिहार में शराबबंदी को सफलता से लागू करने में जी जान से जुटी हुयी है तो दूसरी तरफ  बिहार में शराब निर्माण (दुसरे राज्यों में आपूर्ति के लिए) और इसके पैकिंग एवं बॉटलिंग को बढ़ावा दे रही है. सरकार का यह दूसरा कदम हास्यास्पद और घोर निराशाजनक है. 


      सरकार फिर किस मुंह से दुसरे राज्यों में भी शराबबंदी की मांग कर रही है? बिहार सरकार से अपील है कि बिहार में शराब निर्माण भी पूर्ण रूप से बंद होना चाहिए. 

        शराब से जुड़े उद्योगों को दुसरे व्यवसाय में बदलने कि सरकार सार्थक पहल करे चाहे इसके लिए इसके व्यवसायियों को मुआवजा ही क्यों न देना पड़े.
- मोहम्मद खुर्शीद आलम
   

Thursday, September 22, 2016

'पटना लाइव' और साप्ताहिक 'जॉब सर्च' (Patna Live and Job Search)

संपादक महोदय,
'हिन्दुस्तान', पटना



मैं कुछ दिन पटना मे रहकर जाना कि आप 'हिन्दुस्तान' पटना संस्करण के साथ प्रतिदिन 'पटना लाइव' और साप्ताहिक 'जॉब सर्च' भी प्रदान करते हैं.
   ये दोनो अतिरिक्त अंक तो पूरे बिहार के लिए उपयोगी है फिर यह सिर्फ़
पटनावासियों के लिए क्यों? पटना पूरे बिहार की राजधानी है और सभी को पटना की खबर रखने मे दिलचस्पी है. और फिर 'पटना लाइव' मे पटना के अलावे फिल्म, साहित्य आदि से जुड़ी रचनाएँ भी तो हैं. 

इसलिए महोदय से निवेदन है कि
पूरे बिहारवासियों के साथ न्याय करते हुए दोनो अतिरिक्त अंक को पूरे
बिहार मे सर्व सुलभ कराएँ.

- मोहम्मद खुर्शीद आलम

Thursday, September 8, 2016

मेरा परिचय (My Introduction)

मैं बिहार के औरंगाबाद जिले में पैदा हुआ और वहीं पला और बढ़ा भी। 

मैं पेशे से एक असैनिक अभियंता हूं और एक निजी कंपनी में कार्यरत हूं। 

लिखने की शुरुआत बिहार के अखबारों में 'संपाद्क के नाम पत्र' से की। 

फिर लेख, कहानी और कविताएं भी छपीं। आकाशवाणी पटना से रचनाएं 

प्रसारित हुईं। 

बेरोजगारी के दिनों मे पटना से प्रकाशित 'जागरण' और 'आज' दैनिक तथा

'रिपोर्टेर' साप्ताहिक के लिए कुछ दिनों के लिए निःशुल्क पत्रकारिता भी की। 
मेरी एक मगही कहानी 'नईम मास्टर के दुश्मन' बिहार के मगही के इंटर के 

छात्रों को पढ़ाई जाती है।



नोट : लेखक के सभी ब्लॉग पोस्ट पढ़ने के लिए लिंक
 
http://mka-mka.blogspot.com/   पर जाएँ.


Monday, September 5, 2016

पत्र सूचना कार्यालय की सार्थक पहल (Useful Efforts of PIB)

भारत सरकार के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय की प्रमुख मिडिया इकाई, पत्र सूचना कार्यालय (प्रेस इन्फर्मेशन ब्यूरो) की पटना शाखा द्वारा औरंगाबाद, बिहार के वैष्णवी होटल मे दिनांक ३१ अगस्त २०१६ को 'ग्रामीण मिडिया कार्यशाला- वार्तालाप' के नाम से एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया. इस कार्यक्रम का उद्घाटन औरंगाबाद के जिलाधिकारी श्री कँवल तनुज ने दीप प्रज्ज्वलित कर किया. इस कार्यक्रम मे जिले के शहरी और ग्रामीण सभी पत्रकारों को आमंत्रित किया गया था. 


इस कार्यक्रम का मुख्य उद्येश्य जिले के पत्रकारों का एक डाटा बेस तैयार करना था जिससे सरकारी योजनाओं के बारे मे जानकारी लोगों तक आसानी से पहुँच सके. सभी प्रतिभागी पत्रकारों का नाम, ईमेल और मोबाइल फोन नंबर पत्र सूचना कार्यालय द्वारा दर्ज किया गया.
कार्यक्रम के शुरुआत मे पत्र सूचना कार्यालय, पटना के सहायक निदेशक श्री अफ़रोज़ आलम ने लोगों को इस कार्यक्रम के बारे मे जानकारी दी. उसके बाद मुख्य रूप से पत्र सूचना कार्यालय, पटना के  निदेशक श्री दिनेश कुमार, औरंगाबाद के जिला जन संपर्क अधिकारी श्री मुकेश कुमार 'मुकुल', औरंगाबाद के जिलाधिकारी श्री कंवल तनुज और आकाशवाणी-दूरदर्शन के जिला संवाददाता श्री कमल किशोर  ने लोगों को संबोधित किया.


अन्य वक्ताओं मे उपेंद्र नारायण सिंह, गणेश जी, संजय सिंह, रवीन्द्र कुमार 'रवि', गोपाल जी, प्रियदर्शी कुमार, अलख़्देव प्रसाद 'अचल', मोहम्मद खुर्शीद आलम इत्यादि शामिल थे. कार्यक्रम का संचालन पत्र सूचना कार्यालय, पटना के सूचना सहायक श्री पवन कुमार ने किया.

कार्यक्रम मे श्री प्रेमेन्द्र मिस्र, बिरेन्द्र खत्री, विजय कर्ण, सचदेव सिंह, रणजीत कुमार, दिलीप कुमार उर्फ अनिरूद्ध विश्वकर्मा, सरोज पांडे आदि पत्रकार भी शामिल हुए.

प्रायः सभी वक्ताओं ने सरकारी योजनाओं की सफलता मे मीडीया की भूमिका को सराहा. कुछ वक्ताओं ने छोटे पत्रकारों की आर्थिक दुर्दशा की ओर ध्यान दिलाया.

कुल मिलाकर पत्र सूचना कार्यालय का यह प्रयास सार्थक और सराहनीय है. इससे जिले के सभी पत्रकारों को आपस मे मिलने का सुनहरा अवसर  प्राप्त हुआ और अपनी समस्याएँ एक दूसरे से साझा करने का भी.

Wednesday, August 24, 2016

बिहार में शराबबंदी पर नीतीश को फ़ायदे भी चुनौतियां भी (Benefits and challenges for Nitish Kumar on liquor ban in Bihar)

बिहार के मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार ने बिहार में शराबबंदी लागू करके बहुत बड़ा पुण्य का कार्य किया है. इससे पूरे बिहार में शांति का माहौल बना है. वैसे तो हर बिहारवासी इससे लाभान्वित हुआ है पर महिलाएँ और दलित-पिछड़े ज़्यादा लाभान्वित हुए हैं क्योंकि इस दुर्व्यसन के ज़्यादा शिकार और पीड़ित यही थे.

लेकिन बिहार की विपक्षी पार्टियों के कई लोग (सहयोगी पार्टियों के भी कुछ लोग) शराबबंदी क़ानून हटाने के लिए नए-नए हथकंडे अपना रहे हैं और ‪बिहार‬ के मुख्यमंत्री को बदनाम कर रहे हैं तो इसके पीछे कई कारण हैं जिनमे प्रमुख निम्नांकित हैं:
१. शराबबंदी से श्री नीतीश कुमार की छवि काफ़ी चमकी है और पूरे भारत में इनकी वाहवाही हो रही है जो विपक्षी पार्टियों को हजम नहीं हो रहा है.
२. गुजरात में पहले से शराबबंदी है पर इसका श्रेय भारतीय जनता पार्टी नहीं ले सकती क्योंकि यह कॉंग्रेस के जमाने से है. प्रधानमंत्री के ‘गुजरात मॉडल’ में भी यह शामिल नहीं है. अगर इसे इसमें शामिल करते तो भाजपा शासित अन्य प्रदेशों में भी इसे लागू करना पड़ता जो कि मुश्किल कार्य है.
३. शराब व्यवसाय में ज़्यादा भागीदारी पूंजीपतियों की है जिसका अधिकांश समर्थन भाजपा को है.
४.  श्री नीतीश कुमार की इस अच्छी छवि से सहयोगी पार्टियों में भी बेचैनी है क्योंकि इसका क्रेडिट सिर्फ़ नीतीश कुमार को मिल रहा है क्योंकि उन्हीं का यह चुनावी वायदा था जिसे सरकार बनने के बाद पूरा किया.
५. हर पार्टी में कुछ नियमित शराब पीने वाले हैं, उनको इस शराबबंदी से तकलीफ़ है. वे चाहते हैं कि श्री नीतीश कुमार यह फ़ैसला वापस ले लें.
शराबबंदी की मुश्किलें
१. जो लोग शराब के आदि थे वे इसे कैसे भी हासिल करना चाहते हैं.
२. पड़ोसी राज्यों मे शराबबंदी नहीं है.
३. बुरे तत्व अधिक आय की लालच में या तो इसे पड़ोसी राज्यों से लाकर लुके-छिपे बेच रहे हैं या अवैध ढंग से बिहार में ही निर्माण कर रहे हैं.
४. पुलिसकर्मियों पर काम का दबाव बढ़ गया है.
५. विपक्षी राजनीति की वजह से सब लोग सरकार का साथ नहीं दे रहे हैं.
होना क्या चाहिए
श्री नीतीश कुमार का यह फ़ैसला जनहित में है. सभी देशवासियों को उन्हें इस मसले पर समर्थन देना चाहिए और पूरे भारत में शराबबंदी लागू करने के लिए आंदोलन करना चाहिए. शराबियों को आदत से छुटकारा पाने में वक़्त लगेगा और अच्छे परिणाम आने में भी. शराबियों की हाय-तौबा पर ध्यान न देकर श्री नीतीश कुमार अपने फ़ैसले पर अडिग रहें और शराब पीने से होने वाले नुक़सान का ज़ोर-शोर से प्रचार करते रहें.

Tuesday, May 31, 2016

Think Twice Before Buying Samsung Phone

                        I wrote following email to CEO of Samsung through their website 

http://www.samsung.com/in/info/contactus.html

Dear Sir,
I purchased new phone Samsung J7 in KSA and found that it will work KSA'a SIM network only. You can't imagine that how I became disturb. In natural, most people know that a mobile will work in whole world, so I. After that, I called your customer care in KSA and told to go service center.  I went there but its was closed at time said by C.C. Now, I returned India but facing problems. Please solve my problems and in future, make all phones restriction free.

Sunday, May 15, 2016

आज का सबक़ (Aaj Ka Sabaq)

    आज कल इंटरनेट पर जहाँ कई  लोग बुराई और झूठ  फैलाने में लगे रहते  हैं  तो कुछ लोग ऐसे भी हैं जो यहाँ भी अच्छाई और सच की बात करते हैं और भलाई  का काम करते हैं। 


   अच्छाई और सच की बात करने और भलाई  का काम करने वालों  मे एक  नाम है मौलाना यूनुस पालनपुरी का. ये प्रतिदिन ५  से १० मिनट  की इस्लाम और दीन की बातें रिकॉर्ड करते हैं और फिर अपने वेबसाइट http://www.aajkasabaq.in/ पर  'आज  का सबक़' नाम से अपलोड करते हैं।  


मेरा गुमान है कि जो भी इसे नियमित रूप से सुनेंगे उनके इस्लाम की जानकारी मे  जरूर वृद्धि होगी और साथ ही नेकियों पर अमल करना आसान होगा और बुराई से बचने मे भी मदद मिलेगी। 

'आज  का सबक़' प्रतिदिन सुनने के लिए या तो 
१. प्रतिदिन http://www.aajkasabaq.in/ वेबसाइट पर जाएँ, या 
२. एक बार वेबसाइट पर जाकर अपना ईमेल रजिस्टर्ड करवाएँ, या 
३. इसे अपने मोबाइल के 'व्हाट्सएप' पर प्रतिदिन पाने के  लिए अपने मोबाइल के 'व्हाट्सएप' से मोबाइल   नंबर +919967040922  
पर रिक्वेस्ट भेजें। 

Nowadays many persons are spreading badness and lies on the Internet, where some people are engaged in speaking of good and truth and  do good work.

Maulana Yunus Palanpuri is one name  from those who speak Goodness and truth and do gentle work on internet . Daily 5 to 10 minutes, he records the words of Islam and the goodness and uploads it at their website http://www.aajkasabaq.in/ from name 'AAJ KA SABAQ' i.e. 'Today's lesson.

My vanity that whoever will listen to it regularly in the course will enhance their knowledge of Islam and the goodness would be easy to implement and will also help in avoiding evil.

To listen, 'Today's lesson' daily, 
1. Visit http://www.aajkasabaq.in/ daily, or
2. Registered your email by visiting the website, or
3. To listen daily on your mobile, send request from 'WhatsApp' of your mobile to mobile number +919967040922

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Tuesday, May 10, 2016

साम्प्रदायिकता और झूठ के दुश्मन : श्री नीरेन्द्र नागर (Nirendra Nagar is enemy of Communalism and lie)

श्री नीरेन्द्र नागर नवभारत टाइम्स डॉट कॉम (navbharattimes.com) के संपादक  हैं।    आज कल इनके जैसे ईमानदार और निर्भीक  पत्रकार बहुत कम   रह गए हैं।  ये  साम्प्रदायिकता  और  झूठ के बहुत बड़े दुश्मन हैं।  ये अपने वेबसाइट पर  ही  अपना ब्लॉग  लिखते हैं। इनके कुछ ब्लॉग पढ़कर ही आप  उपरोक्त गुणों की गवाही देंगे। 

मैं उनके कुछ  ब्लॉग का लिंक  दे रहा हूँ।   बाकी आप खुद ही तय कर लें। 










Thursday, April 28, 2016

Looking for part time work of an office boy or cleaner

      A candidate is looking for part time work of an office boy or cleaner or helper in Riyadh. He is available after 5 PM (Sunday to Thursday) and full day on Friday-Saturday. He lives in Malaz area. You can give him 1 hour- 2 hours job also on lump sump basis. 

Please contact him at following number:

- Mr. Saddam

Sunday, April 17, 2016

समाजवादी पार्टी से मुस्लिमों का मोहभंग (Muslims are annoyed from Samajwadi Party)

उत्तर प्रदेश के पिछले विधानसभा चुनाव मे पिछड़ी जाति ख़ासकर यादव और मुस्लिमों के सपा की ओर ध्रुवीकरण से सपा को अप्रत्याशित जीत मिली थी पर इस समय यह समीकरण बिखराव पर है. सत्ता मे आने के बाद से समाजवादी पार्टी राज्य मे दंगों को रोकने मे नाकाम रही जिससे मुस्लिमों का मोहभंग होना शुरू हो गया. मुसलमानों के लिए किए अधिकांश वादे खोखले साबित हुए. इस मोहभंग को भुनाने मे ओवैसी की पार्टी सबसे ज़्यादा कामयाब हुई है. लेकिन सत्ता तो इनके बूते नही इसलिए फिर से मायावती को नेता चुनने के लिए तैयार हैं.


समाजवादी पार्टी से मुस्लिमों के मोहभंग ने जहाँ सुश्री मायावती को फिर से सत्ता मे आने की उम्मीद जगा दी है वहीं एआईएमआईएम प्रमुख श्री असदुद्दीन ओवैसी उत्तर प्रदेश मे जनाधार बढ़ने का ख्वाब देख रहे हैं. समाजवादी पार्टी क़ानून व्यवस्था के नाम पर श्री ओवैसी की जनसभाओं पर बार बार प्रतिबंध लगाकर उत्तर प्रदेश मे उनके असर को कम करना चाहती है लेकिन अक्सर देखा गया है कि प्रतिबंधों का उल्टा ही असर होता है. ऐसे बार बार के प्रतिबंधों से लोगों की सहानुभूति भी मिल सकती है. सहानुभूति इस लिए भी हो सकती है क्योंकि भाजपा के कुछ विवादित नेता सभाओं मे कुछ भी बोल देते हैं पर उन पर किसी तरह की पाबंदी नही लगाई गई.


श्री ओवैसी ने महाराष्ट्र के पिछले विधानसभा और नगर निगम चुनाव से एक और चाल भी चल दी है. उन्होने वहाँ अपनी पार्टी से दलितों को भी टिकट दिया और मुसलमान और दलित दोनों से वोटों की अपील की. इस तरह वह अपनी पार्टी की सिर्फ़ मुस्लिम पहचान को धोना चाहते हैं. इसमे उन्हे कितनी कामयाबी मिली, साफ तौर पर कहा नही जा सकता. लेकिन उनके भाषणों की भाषा बदल गयी है, यह तो कहा ही जा सकता है.


२०१७ तक उत्तर प्रदेश की राजनीति किस करवट लेगी, यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा लेकिन अगर मायावती और ओवैसी का गठबंधन हुआ तो मुकाबला रोचक ज़रूर होगा.

समाजवादी पार्टी परंपरागत मुस्लिम वोट को खिसकने से रोकने की भरपूर कोशिश करेगी लेकिन नतीजों के बाद सत्ता मे बने रहने के लिए भारतीय जनता पार्टी से हाथ भी मिला सकती है. भारतीय जनता पार्टी की नज़र धर्मनिरपेक्ष वोटों के बिखराव पर टिकी होगी क्योंकि राहुल गाँधी की सक्रियता की वजह से दलित, पिछड़ी जाति और मुस्लिम के कुछ वोट कॉंग्रेस पार्टी को भी जाने की उम्मीद है.


अगर संभावित गठबंधन मे कॉंग्रेस भी शामिल हुई तो इनका पलड़ा भारी होने की उम्मीद है. पर समाजवादी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी के आपस मे सॉफ्ट कॉर्नर को देखते हुए यह कहना बहुत मुश्किल है कि आख़िर मे सत्ता किसके हाथ लगेगी.




Monday, April 11, 2016

कल्पना करें पर सकारात्मक (Imagine but positive)

        आपकी कल्पना आपको सुख पहुँचाती है या दुख, यह इस बात पर निर्भर है कि आप किस तरह की कल्पना करते हैं. अगर आपकी कल्पना सकारात्मक है तो यह आपको खुशी देगी और अगर नकारात्मक है तो गम. गम तो कोई नहीं चाहता, न हम, न आप और न कोई. फिर तो सकारात्मक कल्पना ही करें ताकि आपको, हमें और सबको खुशी मिले.

        उदाहरण के तौर पर आप 'रोड ट्रॅफिक' मे फँस गये हैं. वहाँ पर यह कल्पना कि ' आज तो ऑफीस पहुँच ही नही पाएँगे या इतना देर हो जाएगी कि बॉस मुझ पर चिल्लाएगा' करने से अच्छा है कि ' कोई फरिश्ता मेरे लिए आएगा और मुझे अपने परों मे डालकर गंतव्य स्थान तक छोड़ देगा या मेरे लिए सरकार हेलिकॉप्टोर् भेजेगी और गाड़ी सहित लिफ्ट करा के मेरे दफ़्तर छोड़ देगी, आदि, आदि.'

        कभी कभी ऐसा भी होता है कि जहाँ हँसने की जगह न हो पर कल्पनाशीलता की वजह से हँसी आने लगती है. जैसे मंदिर, मस्जिद, श्मशान घाट, कब्रिस्तान, बॉस या सीनियर लोगों के साथ मीटिंग आदि. यहाँ पर अगर कल्पनाशीलता की वजह से हँसी बाहर आ जाए तो असहज स्थिति बन जाती है. ऐसे मे अपनी कल्पना पर रोक लगाना ही सही होता है नहीं तो खुद ही हँसी के पात्र बन सकते हैं. इस असहज स्थिति से बचने के लिए ऐसे जगहों पर 'अपनी मौत को याद करना चाहिए' ताकि संभावित हँसी से बचा जा सके और हँसी का पात्र बनने से भी.

अपनी बात
     कुछ दिनों पहले मेरे 'बॅचलर' रूम मे चार अतिथि आ गये. वो खा पीकर जल्दी सो गये. मेरा भारी भरकम रूम पार्ट्नर को रूम मे देर से आने की आदत है. मैने उनके लिए उनका जगह खाली रखा पर यह कल्पना कि ' रात मे यह भारी भरकम आदमी आएगा और कम रोशनी की वजह से मेरे अतिथि पर गिर जाएगा और फिर...' मेरे लिए तब तक असहज स्थिति बनाए रखी जब तक कि मुझे नींद नही आ गयी. अगर खुदा न ख़ास्ता, मेरी हँसी बाहर आ जाती तो पता न अतिथि क्या सोचते. इसलिए मैने अपनी इस कल्पना को 'अपनी मौत को याद कर के दबाने की कोशिश की.

Saturday, March 12, 2016

To cure big diseases like cancer from verses of Quran



If you are suffering from big diseases like cancer, first of all listen bayan (2nd part of above video) of Maulana Yunus Palanpuri then for curing from diseases, listen (with care and belief of benefit) following video of selected AAYAATS (verses) OF QURAN.

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Friday, March 11, 2016

Suggestions for gulf jobs

If you are looking for jobs in gulf, please read my following suggestions:

1. If you are doing a job in your own country, try to continue it with your hard labors because at present, market is down in gulf even if few companies are hiring manpower but you will not get a good package.

2. If you are doing a job already in gulf, don't try to change at present time due to same reason as mentioned above.

3. Many companies of gulf are decreasing manpower at present. Your small mistakes can include your name in 'Termination List'. So, make hard work than usual. Try to keep your boss and colleagues happy.

4. Some times, it has been seen that 'due to internal politics of colleagues', an honest person looses job. Don't worry at all. Stick to your honesty, Allah / God can give you a better opportunity.

5. Allah is Owner of benefits and harms. No body can harm you if Allah does not wish and no body can benefit you if Allah does not wish. Make your belief in Allah stronger. Obey Allah in your every deeds and ask what you need from Allah in your supplications / dua.

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