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Friday, December 27, 2013

मौत की तैयारी कर लें

हर इंसान को चाहिये कि अपनी मौत से पहले अपनी मौत की तैयारी कर ले. मौत की तैयारी का मतलब यह नही कि अपनी क़ब्र खोदकर रखी जाये या दाह-संस्कार की सामग्री जुटा कर रखी जाये बल्कि मौत की तैयारी का मतलब यह है कि जिंदा रहते रहते पूर्ण रूप से अच्छाई पर चला जाये और बुराई से दूर रहे. मौत के बाद इंसान न तो एक अच्छाई कर सकता है और न ही बुराई. मौत से पहले पहले किये हुये कार्यों पर ही उसके भाग्य का फैसला होगा.
    मित्रों, यह 60-70 साल की जिंदगी सिर्फ एक परीक्षा है. इस परीक्षा मे जो पास हो गया वही कामयाब है. इसी 60-70 साल की जिंदगी मे किये गये कार्य पर मरने के बाद की असंख्य सालों की जिंदगी का फैसला होगा. जिसने यहाँ की जिंदगी अपने ईश्वर के दिशा निर्देशों के अनुरूप गुजारी, वह असंख्य सालों वाली जिंदगी आराम और सुकून से गुजारेगा और जिसने यहाँ की जिंदगी मनमाने ढंग से बुराइयों की राह पर चलकर गुजारी उसके लिये वह जिंदगी बड़ा ही कष्टदायक होगा.
   इसलिये मित्रों, हम हर हाल मे कोशिश करें कि हम हमेशा नेक काम करें और बुराई से दूर रहें. चोरी, डकैती, बेईमानी, भ्रष्टाचार, यौन शोषण, बेगुनाहों के साथ मार पिट, कत्ले आम आदि ईश्वर के नजदीक बड़े गुनाह हैं और ह्मे हर हाल मे इससे बचने की कोशिश करना चाहिये.
  हर इंसान एक दूसरे से मित्रवत व्यवहार करे. ग़रीबों और कमजोरों की मदद करने वाले बनें. ताक़त हो तो अपनी ताक़त से बुराई को रोकने वाले बनें, इतनी ताक़त ना हो तो बातों से रोकने की कोशिश करें, यह भी न हो सके तो बुराई को बुराई समझने और मानने वाले बनें.


  हमारा ईश्वर हमसे क्या चाहता है, यह जानने वाले बनें और फिर ईश्वर की इच्छाओं पर चलने वाले बनें. दोनो संसार की कामयाबी का यही मूल मंत्र है.

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Sunday, December 22, 2013

मुसलमानों के मसीहा या दुश्मन

मुलायम सिंह यादव के लिये 'मौलाना मुलायम' या 'मुसलमानों के मसीहा' जैसे विशेषन सबने सुना होगा. लेकिन यह विशेषन क्या सचमुच उन पर सटीक बैठता है या कुछ लोगों ने मुसलमानो को बेवकूफ बनाने के लिये ऐसा प्रचारित किया है.
    लोगों की राय अलग अलग हो सकती है लेकिन मैं तो उन्हे ' मुसलमानों के दुश्मन' के तौर पर ही देखता हूँ. ये मुसलमानों के लिये 'मीठा ज़हर' हैं जबकि नरेन्द्र मोदी 'कड़वा ज़हर'. कड़वा ज़हर तो पिया ही नही जाता जबकि मीठा ज़हर पीकर अपना नुकसान किया जा सकता है.
    मुलायम सिंह यादव ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहते हुये जब कारसेवकों पर गोलियाँ चलवाई थी, तभी से वे भोले भाले मुसलमानों के लिये मसीहा बन गये.लेकिन इस गोलीकांड को मैं न सिर्फ मुसलमानों के लिये बल्कि समाजवादी और वामपंथी विचारधारा सबको नुकसान पहुँचाने का सबसे बड़ा कारण मानता हूँ. इसी गोलीकांड के बाद भाजपा की ताकत पूरे देश मे अचानक बढ गई और पूरे देश मे साम्प्रदायिकता की लहर फैल गई. अगर वे चाहते तो कारसेवकों को पूर्व से ही घटना स्थल पर पहुंचने नही देते और अगर पहुंच भी गये तो लाठियाँ भाँजकर, हवाई फायरिंग कर और अश्रु गैस छोड़कर उनको भगाया जा सकता था. लेकिन उन्होने हिंसक तरीके को अपना कर परोक्ष रूप से भाजपा की मदद की.
  बाद मे उनकी छिपी हुई 'साम्प्रदायिक नीतियों' की पोल तब भी खुली जब बाबरी मस्जिद के विध्वंस के जिम्मेदार कल्याण सिंह को अपनी पार्टी मे लिया.
  अब रही सही कसर मुज़फ़्फरनगर के दंगे ने कर दी. जिस कदर कई दिनो तक पुलिस मूकदर्शक बनकर दंगाइयों को खुली छूट दी उसकी भारी कीमत अगले चुनाव मे उनको चुकानी पड़ेगी. राहत कैंपों मे भी बलात्कारियों का घुसना, बड़ी मात्रा मे बच्चों का इलाज और दवा के अभाव मे मरना और डर की वजह से शरणार्थियों का वापस घर न लौटना समझदारों के लिये बहुत कुछ इशारा करती है.    
उत्तर प्रदेश के चुनाव के वक्त उन्होने मुसलमानों के लिये आरक्षण देने की भी घोषणा की थी पर सरकार बन जाने के बाद अभी तक उस पर अमल नही किया गया.


   हक़ीक़त यही है कि मुलायम सिंह यादव मुसलमानों को सिर्फ वोट के लिये इस्तेमाल करते हैं और कल्याण ज़्यादातर अपने परिवार और यादवों का करते हैं.

Wednesday, December 18, 2013

मजबूरी का नाम तलाक हो

ऋत्विक रोशन और सुजैन खान की शादी टूटने के बाद तलाक का विषय फिर चर्चाओं मे है. कभी आमिर खान, सैफ अली खान, अज़हरुद्दीन भी तलाक के लिये चर्चा का विषय बने थे. कुछ मियां बीवी आपसी सहमति से अलग हो जाते हैं और कुछ के झगड़े इतने बढ जाते हैं कि मामला पुलिस और कोर्ट तक पहुंच जाते हैं. कुछ दिन पहले युक्ता मुखी का मामला सुर्खियों मे था.          
           तलाक का नियम हर मजहब मे और विश्व के हर कोने मे है और यह नियम भी पुराना है. मियां बीवी अगर साथ हों तो एक कमरा, एक बेड शेयर करते हैं. ठंडी का मौसम हो तो एक ही रजाई या कंबल भी शेयर करते हैं. ऐसे मे अगर दो दिल ना मिलें या दोनो के विचारों मे आसमान जमीन का फर्क हो तो बात बनती नही बल्कि बिगड़ने लगती है.
       अगर तलाक मजबूरी बन जाये तो बेहतर यह है कि मियां बीवी शांतिपूर्वक और आपसी सहमति से अलग अलग होने का फैसला करे. पुलिस और कोर्ट तक बात पहुंचने से दोनो का नुकसान होता है. कुछ मजबूरिया मैं गिनाना चाहूंगा जिसमे तलाक अच्छा विकल्प है.
१. जब पत्नी को पति के अलावे किसी और से प्यार हो जाए और उससे शारीरिक संबंध भी रखे. ऐसी हालत मे पत्नी को चाहिए की अपनी मजबूरी अपने पति को बताए. कोई भी पति ऐसी हालत मे पत्नी को अपने पास ज़बरदस्ती नही रखना चाहेगा और आपसी सहमति से अलग हुआ जा सकता है.

२. पति की शारीरिक शक्ति और इच्छा रोज संबंध बनाने की हो पर पत्नी सप्ताह मे एक या दो बार से ज़्यादा बनाने नही देती. ऐसे मे पत्नी को चाहिए कि वह अपनी फ्रीक़वेंसी बढ़ाए और पति को खुद से दूर होने से बचाए और बुराई से बचाए. अगर यह भी संभव न हो तो पति को एक और शादी करने का ऑफर दे और यह भी संभव ना हो तो बेहतर है कि अलग होने का फ़ैसला किया जाए.

३. अगर पति की जिंदगी मे पत्नी के अलावा कोई और आ जाए तो पहली कोशिश उसको भूलने की होनी चाहिए क्योंकि आपके प्यार की हक़दार आपकी बीवी है. अगर यह संभव न हो तो पत्नी से बात कर दोनो को रखने की कोशिश करें और यह भी संभव न हो तो पत्नी से अलग होना मजबूरी है.
        ये तो नमूने हैं. मजबूरियाँ कई तरह की हो सकती है. लेकिन यह ध्यान रखना चाहिए कि अलग होते वक़्त पति पत्नी एक दूसरे का हक़ अदा करें और कोई किसी को न सताए. अगर बच्चे हों तो उनका ध्यान दोनो को रखना है, उन पर आप दोनो के अलगाव का कोई असर नही आना चाहिए.

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Sunday, December 15, 2013

दिल्ली के चुनाव नतीजे और मुसलमान

दिल्ली हमारे भारत की राजधानी है, कुछ लोग इसे भारत का दिल भी कहते हैं. जब भारत की राजधानी क्षेत्र मे सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े मुसलमानों को सही प्रतिनिधित्व नही मिल रहा तो दूर दराज के राज्यों और क्षेत्रों का कहना ही क्या.

11.72 मुस्लिम आबादी वाले इस राजधानी क्षेत्रमे इस बार विधान सभा के चुनाव मे सिर्फ़ ५ मुस्लिम प्रत्याशी विजयी हुए. ७० सीटों वाले इस विधानसभा मे ५ का जितना सिर्फ़ ७.१४% है. ये नतीजे मुसलमानों के पिछड़े होने और उनके साथ होनेवाले भेद भाव को दर्शाते हैं. अगर इस राजधानी क्षेत्र मे भी समुचित भागीदारी नही मिलेगी तो दूसरे जगहों पर इंसाफ़ की उम्मीद कैसे की जाए.


इन पांच जीते प्रत्याशियों मे चार कॉंग्रेस के हैं और एक जद-यू का. भाजपा तो समुचित टिकट ही नही देती तो उनकी बात करना ही बेकार है. 'आप' के लहर मे भी 'आप' से कोई मुस्लिम प्रत्याशी क्यों नही जीत सका, यह चिंता जनक और विचारणीय प्रश्न है. भाजपा के सी. एम. प्रत्याशी के सामने 'इशरत अंसारी' को खड़ा करना क्या 'आप की सिर्फ़ नाम करने वाली नियत' को नही दर्शाता? उनके खिलाफ केजरीवाल खुद क्यों नही खड़ा हुए या किसी और मजबूत प्रत्याशी को क्यों ना खड़ा किए?

दूसरे राज्य के चुनाव नतीजे तो मुसलमानों के भागीदारी के लिए और भी बुरे हैं. इन नतीजों को आप भी ( इलेक्शन कमिशन की साइट) पर देख सकते हैं. सर्व जन हिताय की बात करने वालों को इस पर गौर करना चाहिए और दबे कुचले, पिछड़े मुसलमानों के कल्याण के लिए ठोस उपाय करना चाहिए.

Friday, December 13, 2013

'आप' बनाए सरकार

दिल्ली विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद यह स्पष्ट है 'आप', भाजपा और कॉंग्रेस मे से कोई भी दो पार्टी मिलकर सरकार बना सकती है. चूँकि भाजपा और कॉंग्रेस के मिलने की कोई संभावना नही बनती, इसलिए दो विकल्प ही सामने है. पहला आप कॉंग्रेस के साथ मिलकर बनाए और दूसरा आप और भाजपा मिले. दूसरा विकल्प अपनाने पर आप का भविष्य मे दाँव कमजोर पड़ जाएगा क्योंकि नतीजों से साफ है कि भाजपा के वोटर तो भाजपा के साथ ही रहे पर कॉंग्रेस के धर्मनिरपेक्ष, समाजवादी और वामपंथी विचारों वाले मतदाता कॉंग्रेस से खिसककर आप से जुड़ गये. अगर आप ने भाजपा से तालमेल किया तो इसका नुकसान अगले चुनाव मे ज़रूर पड़ेगा. अभी आप के हित मे यही है कि कॉंग्रेस से मिलकर सरकार बनाए.

            जैसा कि रिपोर्ट आ रही है कि आप सरकार बनाने के मूड मे नही है तो मुझे तो यह आप का आत्मघाती कदम लगता है.

सरकार बनाने के ठोस कारण निम्नलिखित हैं:

१. दुबारा चुनाव मे भी किसी पार्टी को पूर्ण बहुमत मिले, यह ज़रूरी तो नही.
२. वक़्त के साथ समीकरण भी चेंज होते रहते हैं, जनता का मूड भी चेंज हो सकता है और दुबारा चुनाव मे आप की सीटें घट भी सकती है.
३. सरकार नही बनाने पर पार्टी टूट भी सकती है, विधायकों की खरीद फ़रोख़्त भी हो सकती है जिसका फ़ायदा भाजपा को मिलने की संभावना है.
४. दुबारा चुनाव से जनता पर अतिरिक्त बोझ पड़ेगा जिसका ज़िम्मेदार आप होगी.
५. आप पार्टी नई है और उसकी संरचना अभी कमजोर है. लोकसभा के साथ चुनाव हुए तो पार्टी इसे ठीक से सम्हाल नही पाएगी.

Friday, December 6, 2013

फ़तवा: मीडिया और हक़ीक़त

मीडिया को फ़तवे का हौआ खड़ा करते अक्सर देखा होगा लेकिन क्या फ़तवा वही है जो मीडिया पेश करते आया है. दरअसल फ़तवा वह नही है जो मीडिया ने बता रखा है बल्कि यह किसी भी मसले या समस्या का एक धार्मिक व्याख्या है जो कि इस्लाम धर्म की रोशनी मे इस्लाम के मानने वाले विद्वान 'मुफ़्ती' द्वारा दिया जाता है.

यह फ़तवा किसी के मांगने पर दिया जाता है और यह जटिल विषयों के लिये होता है पर आजकल इसका दुरुपयोग आम बात हो गयी है. फ़तवा इस्लाम पर पूरी तरह अमल करने वाले और पढ़ाई मे मुफ़्ती का खिताब हासिल करने वाले द्वारा ही दिया जा सकता है और यह अधिकार इमाम, मौलवी, मौलाना, हाफ़िज़ और क़ारी तक को नही है.
यह दुर्भाग्य की बात है कि इमाम बुखारी और दूसरे मौलाना के राजनीतिक 'सलाह' को फ़तवा कह दिया जाता है. 'फलां पार्टी को वोट दो' एक सलाह है ना कि फ़तवा. आप इसे मान भी सकते हैं और नही भी, यह आपके विवेक पर निर्भर है. इसे एक 'सलाह' से ज्यादा कुछ नही समझना चाहिये.
हर व्यक्ति का अपना ओपीनियन होता है, अपनी सोच होती है. हम और आप भी एक दूसरे को मशवरा देते रहते हैं. यह इंसान की फितरत है. लेकिन नेक इंसान वह है जो नेक मशवरा दे. खुद भी नेक अमल करें और दूसरों को नेक अमल करने का मशवरा दें. यह धर्म है. सभी धर्म का सार यही है कि खुद भी अच्छाई को अपनाएं और दूसरों को अच्छाई की दावत दें. यह काम पहले पैगंबर किया करते थे, अब इंसान को ही करना है क्योंकि अब पैगंबर नही आने वाले. इसलिये एक ईश्वर के संदेश को, अच्छाई, सच्चाई और शान्ति के पैगाम को लोगों तक पहुँचाया जाये.
फ़तवे का उपयोग तभी किया जाये जब किसी मसले पर इस्लाम का नजरिया सामान्य रूप से उपलब्ध ना हो. आम मुसलमानों से भी आग्रह है कि क़ुरान और हजार हदीसों का अनुवाद पढ़कर हम फ़तवा देने वाले ना बनें बल्कि उन मुफ़्ती का क़द्र करें जो इस्लाम को बचपन से ही पढ और सीख रहे हैं और अमल भी कर रहे हैं.


http://www.darululoom-deoband.com/ और  http://www.darulifta-deoband.org/  वेबसाइट पर जाकर दारुल उलूम देवबंद के द्वारा दिये गये फतवों को पढ़ा जा सकता है. आप चाहें तो पूछ भी सकते हैं.

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Friday, November 29, 2013

धर्मनिरपेक्ष पार्टियाँ और मुसलमान

कांग्रेस और अन्य धर्मनिरपेक्ष पार्टियों पर मुस्लिम तुष्टिकरण का आरोप अक्सर ही लगते रहता है.लेकिन सच क्या है, इसे जानने के लिये दिमाग पर ज्यादा जोर लगाने की जरूरत भी नही है. दिमाग पर थोड़ा सा ही जोर लगाने पर सच स्पष्ट हो जाता है कि अगर यह पार्टियाँ हक़ीक़त मे मुस्लिम कल्याण का काम करतीं तो मुस्लिम सबसे पिछडे नही होते. रंगनाथ मिश्रा आयोग और सच्चर कमिटि की रिपोर्ट मुस्लिम पिछड़ापन की हक़ीक़त बयान करती है. रंगनाथ मिश्रा आयोग और सच्चर कमिटि की रिपोर्ट से साफ हो जाता है कि इन पार्टियों ने मुस्लिम कल्याण की सिर्फ बात की, काम नही किया. अगर सही मे काम करते तो मुस्लिम भी अन्य धर्मावलम्बियों की तरह विकसित होते.
      मुस्लिमों के पिछड़ापन के लिये कांग्रेस सबसे ज्यादा जिम्मेदार है क्योंकि सबसे ज्यादा शासन उसी ने किया. फिर भी मुसलमान आज अगर कांग्रेस के साथ हैं तो वह उनकी मजबूरी है. कांग्रेस का एक विकल्प आर. एस. एस. की भाजपा है जो मुस्लिम कल्याण का काम तो दूर मुस्लिम कल्याण की बात भी करना नही चाहती. दूसरा विकल्प वामपंथी पार्टियाँ और सपा, राजद, जद यू, बसपा जैसी पार्टियाँ हैं जो एक होकर काम नही कर सकती और ना ही केन्द्र मे सरकार बना सकती है. जिस राज्य मे उनकी क्षमता है वहां तो मुसलमान उनके साथ भी हो लेते हैं पर केन्द्र के लिये मुश्किल आ जाती है.
     इसलिये कांग्रेस और अन्य धर्मनिरपेक्ष पार्टियों से आग्रह हैं कि मुसलमानों की मजबूरी का फ़ायदा ना उठाकर मुसलमानों के कल्याण के लिये निम्नलिखित काम करे:
1. केन्द्र और प्रत्येक राज्य मे नौकरी. शिक्षा, सरकारी योजना आदि सभी मे इनके आरक्षण को जल्द से जल्द लागू किया जाये.
2. आरक्षण सम्बंधी अगर कोई कानूनी अड़चन आये तो कानून बनकर इसे दूर किया जाये.
3. रंगनाथ मिश्रा आयोग और सच्चर कमिटि की रिपोर्ट पर पूरी तरह अमल किया जाये.
4. दंगों के जिम्मेदार लोगों पर कड़ी कारवाई की जाये.
5. मुसलमानों के साथ भेदभाव करनेवाले कर्मचारियों और अधिकारियों को नौकरी से बर्खास्त किया जाये.

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Saturday, November 23, 2013

एक से अधिक क्षेत्रों से चुनाव लड़ने पर रोक लगे

एक से अधिक सीटों से चुनाव लड़ने की परम्परा अभी तक बंद नही हुई है. इस बार फिर मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री द्वारा दो सीटों से चुनाव लड़ने की घोषणा हुई. 

         इसके पहले भी कई नेता एक से अधिक चुनाव क्षेत्रों से चुनाव लड चुके हैं और कुछ नेता एक ही साथ दो सीटों से जीते हैं. बाद मे उन्हे एक सीट छोड़ना पड़ा और वहां दुबारा से चुनाव कराना पड़ा. नुकसान ज़ान, माल और वक्त तीनो का हुआ. जनता को दुबारा वोट करना पड़ा और जनता के ही पैसे दुबारा खर्च हुआ. 

        इसलिये जब तक चुनाव आयोग इस पर रोक नही लगाती तब तक स्वार्थी नेता अपनी सुविधा के लिये एक से अधिक क्षेत्रों से चुनाव लड़ते रहेंगे और इसका बोझ आम जनता पर पड़ता रहेगा. 

      उम्मीद है कि चुनाव आयोग जल्द से जल्द इस पर ध्यान देगी और लोकसभा विधानसभा सहित हर तरह के चुनाव मे एक से अधिक सीटों से चुनाव लड़ने पर रोक लगायेगी.

समीर, खुश तो आज बहुत होगे तुम! (लघु कथा)

         समीर, खुश तो आज बहुत होगे तुम, फरहा ने मुस्कुराते हुये अपने पति समीर से सवाल किया. समीर खुश तो पहले ही बहुत था, फरहा की मुस्कुराते अंदाज और प्यारी बातों ने समीर को और भी रोमांटिक बना दिया. समीर ने अपनी गर्दन घुमाई और चारों तरफ नज़र डाली, बच्चे सब अभी तक सो ही रहे थे. मौका अच्छा था, फरहा को बाहों मे जकड़ा और जी भर के प्यार किया.

       दरअसल समीर की आज सुहागरात थी लेकिन फरहा के साथ नही बल्कि दूसरी बीवी हसीना के साथ. फरहा दो बच्चों की मां थी और बच्चे भी बड़े होने लगे थे. पर फरहा का स्वास्थ्य उस कदर नही था कि हट्टे कट्टे और रोमांटिक समीर को शयन कक्ष की खुशियाँ दे सके. फरहा समीर के तीसरे बच्चे की ख्वाहिश को भी भांप चुकी थी. लेकिन फरहा समीर से बेपनाह मोहब्बत करती थी और हमेशा और हर हाल मे समीर को खुश देखना चाहती थी. ऐसा ही प्यार समीर का फरहा के लिये था. एक दिन फरहा के दिमाग मे आया कि क्यों ना समीर की एक और शादी करा दी जाये. अक्सर औरतें सौतन के नाम से ही जल भुन जाती हैं लेकिन यह फरहा का प्यार था कि उसे सौतन स्वीकार थी पर समीर की खुशियों मे कमी हो, यह कदापि स्वीकार नही था.
 
        फरहा ने समीर को दूसरी शादी करने के ऑफर दिया. समीर अरबपति व्यवसायी था, चाहता तो शयन कक्ष की ज़रूरियात हराम तरीके से भी पूरा कर सकता था. लेकिन वह धार्मिक स्वभाव का था और हमेशा कोशिश करता था कि अवैध कामों से बचा रहे. समीर ने फरहा के ऑफर को स्वीकार कर लिया और कहा कि दुल्हन ढूँढने की ज़िम्मेदारी फरहा की होगी. फरहा ने अपनी ज़िम्मेदारी निभाई और खूबसूरत हसीना का चुनाव समीर की दूसरी दुल्हन के लिए किया.

      रात समीर और हसीना की सुहाग रात थी. फरहा दूसरे रूम मे अपने बच्चों के साथ सोई थी, लेकिन फरहा के आँखों मे नींद कहाँ? वह तो रात भर समीर की खुशी की कल्पना मे डूबकर खुद भी खुश हो रही थी. उसे इंतेज़ार सुबह का था. उसकी इंतेज़ार ख़त्म हुई. समीर के रूम का दरवाजा खुला और समीर बाहर निकला. फरहा तो इसी इंतेज़ार मे थी कि समीर की खुशियाँ बाटी जाए. नज़र मिलते ही फरहा बोल पड़ी,'समीर, खुश तो आज बहुत होगे तुम.'

Friday, November 15, 2013

फर्ज़ी मुकदमे और उनका समाधान

आज के कलियुगी दौर में अपने प्रतिद्वंद्वी के खिलाफ फर्जी मुकदमे दर्ज कराना फैशन सा हो गया है आप को किसी से दुश्मनी का बदला लेना है तो उसे किसी फर्जी मुकदमे मे फंसा दो, ऐसा मशवरा आप को देनेवाले सैंकड़ों फर्जी शुभचिंतक मिल जायेंगे। फर्जी शुभचिंतक इसलिये कि कभी भी आपका सच्चा शुभचिंतक आपको झूठ का रास्ता अख्तियार करने की राय नही देगा। आपका सच्चा दोस्त या शुभचिंतक वही है जो हमेशा आपको सच्चाई के रास्ते पर चलने के लिये प्रेरित करता है क्योंकि सच्चाई ही दोनों जहां मे कामयाबी का मूल मंत्र है।

फर्जी मुकदमों के समाधन बताने से पहले मैं कुछ फर्जी मुकदमों के प्रकार कुछ उदाहरण देकर बताना चाहता हूँ:
1. कुछ फर्जी मुकदमे व्यक्तिगत रूप से दर्ज कराये जाते हैं, जैसे आपको अपने पड़ोसी से जमीन सम्बंधी या नाली या रास्ता को लेकर विवाद है लेकिन आपका पड़ोसी आपको ज्यादा से ज्यादा परेशiन करने के लिये असली मुद्दे को छोड़ आप पर मार पीट का मुकदमा दर्ज कराता है। अगर सही मे मार पीट हुई है तो वह आप पर आर्म्स ऐक्ट के तहत फायरिंग करने और जान मारने के प्रयास का मुकदमा दर्ज कराता है ताकि आपको ज्यादा से ज्यादा नुकसान हो।

2. मियां बीवी के झगड़े मे फर्जी मुकदमा दर्ज कराना आम बात हो गयी है। अगर आप अपनी बीवी के नाजायज़ हरकतों का विरोध करते हों तो संभव है वह आप पर दहेज़ उत्पीड़न का झूठा मुकदमा ठोंक कर आपको जेल भी भिजवा दे। दहेज उत्पीड़न के केसों पर गौर किया जाय तो न्यायालय मे ऐसे मुकदमे ज्यादातर झूठ पाये गये हैं।

3. कुछ फर्जी मुकदमे सरकारी होते हैं। इन मुकदमों मे वादी केन्द्र सरकार या राज्य सरकार होती है। इसके दर्ज कराने वाले ज्यादातर सरकारी मुलाजिम होते हैं। यह फर्जी मुकदमे भी किसी से दुश्मनी निकालने के लिये किया गया होता है। ऐसे मुकदमों मे चूंकि वादी सरकार होती है, इसलिये सरकारी मुलज़िमों को अपने पैसे भी खर्च नही करने पड़ते हैं।

फर्जी मुक़दमों को रोकने के लिए निम्नलिखित उपाय किए जाने चाहिए:
1. मुक़दमा दर्ज करते वक़्त मुक़दमा करने वाले से लिखित और मौखिक अल्लाह/ ईश्वर, माता-पिता, भाई-बहन और बेटा-बेटी की कसम खिलवाई जाए कि उनका मुक़दमा सच है।
2. ऐसा ही कसम मुकदमों के अनुसंधान की रिपोर्ट लिखते समय पुलिसकर्मियों से खिलवाई जाए की उनकी रिपोर्ट सही है।
3. फर्जी मुक़दमा करने वाले और इसे अपने अनुसंधान मे सही ठहराने वाले पुलिसकर्मियों को कड़ी से कड़ी सज़ा दी जाए।
4. फर्जी मुक़दमा मे होने वाले सारे खर्च को फर्जी मुक़दमा करने वाले और इसे अपने अनुसंधान मे सही ठहराने वाले पुलिसकर्मियों से वसूला जाए।
5. ५ से ज़्यादा फर्जी मुक़दमा को अपने अनुसंधान मे सही ठहराने वाले पुलिसकर्मियों को नौकरी से निलंबित किया जाए।
6. १० से ज़्यादा फर्जी मुक़दमा को अपने अनुसंधान मे सही ठहराने वाले पुलिसकर्मियों को नौकरी से बर्खास्त किया जाए।
7. फर्जी मुक़दमा से पीड़ित व्यक्ति को समुचित मुआवज़ा दी जाए।
8. सभी मुक़दमों की सुनवाई जल्द से जल्द पूरी की जाए ताकि सच और झूठ का पता जल्द से जल्द चल सके।
9. आरक्षी अधीक्षक से लेकर आरक्षी महानिदेशक तक आम जनता के लिए आसानी से उपलब्ध हों ताकि घूसखोर पुलिसकर्मियों की शिकायत उन तक पहुँच सके।
10. घूसखोर पुलिसकर्मियों पर हमेशा नज़र रखा जाए और उन्हे दंडित किया जाए।

Monday, November 11, 2013

क्या बिहार के अगला उप-मुख्यमंत्री अभयानंद होंगे?

      बिहार मे होनेवाले किसी भी राजनीतिक चुनाव मे जातीय समीकरणों के प्रभाव को इंकार करना मूर्खता से कम कुछ भी नही. इस तथ्य से भी इंकार नही किया जा सकता कि जद यू का भाजपा से रिश्ता तोड़ने के बाद बिहार मे कोइरी-कुर्मी और भूमिहार के गठजोड़ को नुकसान पहुँचा है. अगर अगले चुनाव मे भूमिहार का अधिकांश वोट जद यू को नही मिला तो जद यू का नुकसान साफ दिख रहा .
     
       लेकिन राजनीति के चतुर खिलाड़ी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार क्या अपना नुकसान इतनी आसानी से होने देंगे? इसका जवाब है नही. संभावित नुकसान से बचने के लिये नीतीश दो मोर्चों पर काम कर रहे हैं. पहला मोर्चा है मुसलमानों के अधिकांश वोटों को अपनी ओर खींचने का प्रयास करना. इसके लिये मुसलमानों के कल्याण के लिये वे काफी ध्यान दे रहे हैं. दूसरा मोर्चा है भूमिहारों के वोट को अपनी ओर खींचने का प्रयास करना. इस प्रयास मे वह चाह रहे हैं कि उनके समर्थक मे से किसी को भूमिहार का नेता बनाया जाये. मुझे लगता है कि इसके लिये बिहार के वर्तमान आरक्षी महानिदेशक श्री अभयानंद का नाम सबसे उपर है. मुझे लगता है कि नौकरी से रिटायरमेंट के बाद श्री अभयानंद जद यू मे शामिल होंगे और उनकी गिनती बिहार के कद्दावर नेताओं मे होगी और नीतीश कुमार उन्हे बिहार का अगला उप-मुख्यमंत्री बनायेंगे.

         मेरे उपरोक्त विचारों के समर्थन मे पेश है कुछ दलीलें:
१. मुख्यमंत्री को अभयानंद मे खूब भरोसा है चाहे वह वक़्त भाजपा से साथ छोड़ने का हो, बोधगया बम ब्लास्ट हो या पटना का बम ब्लास्ट. उनके भरोसे मे कभी कमी नही आई और अभयानंद नौकरी से रिटायरमेंट के बाद इस भरोसे का फल उन्हे देना चाहेंगे.
२. अभयानंद का कद भूमिहारों के बीच काफ़ी बड़ा है. उनके पिताजी भी बिहार के आरक्षी महानिदेशक रह चुके हैं. बिहार के भूमिहारों के सर्वमान्य नेता वे आसानी से बन सकते हैं.
३. वर्तमान मे भूमिहारों का कोई सर्वमान्य नेता नही है जैसे यादवों के लालू और कुर्मियों के नीतीश.
४. अभयानंद ने नक्सलियों के खिलाफ काफ़ी बड़ा और सशक्त अभियान चलाया है जिसके टारगेट अक्सर भूमिहार होते रहते हैं.
५. अभयानंद की लोकप्रियता दूसरी जातियों मे भी है.
६. बोधगया और पटना ब्लास्ट को जिस ढंग से डील किया है उससे काफ़ी लोग खुश हैं कि इसमे किसी निर्दोष को फँसाने की कोई खबर नही मिली. बिहार के मुसलमानों को भी इनमे भरोसा है.
७. अभयानंद सामाजिक व्यक्तित्व के धनी हैं. वे इतने बड़े पोस्ट पर होते हुए भी आम जनता के फोन कॉल को डाइरेक्ट लेते हैं और उनकी समस्याओं को हल करते हैं.
८. उनके नाम का ब्लॉग और फ़ेसबुक पर पेज काफ़ी लोकप्रिय है.
९. उनका प्रारंभ किया गया प्रोग्राम Abhayanand Super 30 पूरे भारत मे लोकप्रिय हो रहा है जिसमे ग़रीब छात्रों को आइ. आइ. टी. मे प्रवेश के लिए निःशुल्क कोचिंग दी जाती है.
१०. उनका नौकरी का लंबा कैरियर बिना विवादों के रहा है.

मुसलमान बैंकों से मिलने वाले सूद का क्या करें?

         यह बात तो सब जानते हैं कि इस्लाम में सूद का लेना-देना दोनों हराम हैं पर यह बात बहुत कम मुसलमानों को पता है कि भारतीय बैंकों से मिलने वाले सूद की इस्लाम में क्या स्थिति है। मैं कोई आलिम या मुफ़्ती या इस्लाम का विद्वान तो नही हूं पर इस सवाल का जवाब पाने की जिज्ञासा ने मेरा ऐसे लोगों से संपर्क करवाया। उन्हीं लोगों के उत्तर पर आधारित है मेरा यह ब्लॉग। फिर भी मैं इस विषय पर अपने नज़दीकी इस्लामिक विद्वानों से आपको संपर्क करने की राय देता हूं:

          सूद का लेन-देन किसी व्यक्ति से हो या किसी संस्था से, सूद हर हाल मे हराम ही है। लेकिन भारतीय बैंकों से मिलने वाले सूद का मुसलमान करें तो क्या करें? इसका आलिमों ने जो हल निकाला है वह यह है:

1. जमा हुए सूद के पैसों को बैंक से निकाल लें।
2. इसे गरीब लोगों को जो ज़कात और फ़ितरा के हक़दार हैं, उन्हे दे दें।
3. इसे शहर या गांव या मोहल्ले की सडकों या नालियों जैसी कामन चीजों के निर्माण पर खर्च कर सकते हैं।
4. इस पैसे को देते हुये सवाब की नीयत ना करें क्योंकि यह हराम का पैसा है।
5. हराम काम से बचने का जो आप प्रयास करेंगे, उसका सवाब आपको जरूर मिलेगा।

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Thursday, November 7, 2013

हिंसक नक्सलियों और उग्रवादियों के विध्वंश के १५ शांतिपूर्ण उपाय

आए दिन हम भारत के विभिन्न राज्यों मे हिंसक नक्सलियों और उग्रवादियों के खिलाफ पुलिस कार्रवाई करते रहते हैं. इसका नतीजा हमे यह मिलता है कि कुछ दिनों के लिए ये कमजोर पड़ जाते हैं लेकिन जैसे ही पुलिस कार्रवाई बंद होती है या कम होती है तो ये फिर मजबूत हो जाते हैं और हिंसक गतिविधियों को अंजाम देते हैं.


       इन हिंसक नक्सलियों और उग्रवादियों को जड़ से मिटाने के लिए हमे ठोस और दीर्घकालीन उपायों पर काम करने की ज़रूरत है. यहाँ पेश है ऐसे १५ उपाय:


१. प्रत्येक गावों का तेज़ी से विकास किया जाए.
२. अमीरी और ग़रीबी के बीच की खाई को कम से कम किया जाए.
३. प्रत्येक युवक को रोज़गार उपलब्ध कराया जाए.
४. उच्च और नीच जाति का भेद मिटाया जाए.
५. किसी के साथ नाइंसाफी नही हो, इसका ख्याल रखा जाए.
६. किसी को भी फर्जी मुकदमों मे फँसाया नही जाए.
७. फर्जी मुक़दमा करने वाले और इसे अपने अनुसंधान मे सही ठहराने वाले पुलिसकर्मियों को कड़ी सज़ा दी जाए.
८. फर्जी मुक़दमा से पीड़ित व्यक्ति को समुचित मुआवज़ा दी जाए.
९. न्याय प्रणाली को सरल, सुलभ और सस्ता बनाया जाए.
१०. पुलिस अराजक तत्वों को छोड़ कर सभी ग्रामीणों के साथ मित्रवत व्यवहार करे.
११. दबंगई, गुंडई पर काबू रखा जाए.
१२. सभी को शिक्षित होना अनिवार्य किया जाए और इसके लिए सब को निःशुल्क शिक्षा की व्यवस्था हो.
१३. अच्छे आचरण अपनाने के लिए और इसके प्रोत्साहन के लिए सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन सुचारू रूप से हो.
१४. सभ्य, सुसंस्कृत और शालीन ग़रीबों, शोषितों और पिछड़े लोगों को पुरस्कार देकर सम्मानित किया जाए.
१५. गुमराह और भटके हुए युवकों, नक्सलियों, माओवादियोंऔर उग्रवादियों को बातचीत के मेज पर बुलाकर उनसे उनकी समस्याएँ पूछी जाए और जायज़ माँगों पर गंभीरतापूर्वक विचार किया जाए.

Saturday, November 2, 2013

धर्म और जाति छोड़ न्याय का पक्षधर बनें हम

समाज को बेहतर, शांतिपूर्ण, सुसंस्कृत बनाने के लिए यह आवश्यक है कि हर इंसान इंसाफ़ का पक्ष लेने वाला बने. धार्मिक और जातीय दंगों की सबसे बड़ी वजह यही होती है कि लोग धर्म या जाति की बिना पर दोषी का पक्ष ले लेते हैं. उदाहरण के लिए एक शहर मे किसी एक समुदाय की लड़की का कुछ दूसरे समुदाय के लड़के बलात्कार कर रहे थे.

खबर फैलने पर दूसरे समुदाय के लोग एकत्र हो गये और और उन बलात्कारी लड़कों को पकड़ कर पुलिस के हवाले करने जा रहे थे कि कुछ लड़कों के समुदाय के लोग आए और उन लोगों को छुड़ाने लगे. इससे दंगा भड़का और कई निर्दोष लोग मारे गये. यहां पर इंसाफ़ और न्याय का तक़ाज़ा यह था कि लड़कों के समुदाय के सारे लोग भी उन दोषियों को पकड़ने मे मदद करते और उनको पुलिस के हवाले करते. इससे सिर्फ़ दोषी लोग ही सज़ा पाते और निर्दोष लोगों की जानें बच जाती. उदाहरण इसका उल्टा भी हो सकता है. हम हर हाल मे दोषी का विरोध करने वाला बनें और निर्दोष की रक्षा करने वाला बनें. पैगंबर मोहम्मद (स.) के एक हदीस का मफूम है कि अगर उनकी बेटी फ़ातिमा (र.) भी चोरी करती तो उनका हाथ काट लेते.


बिहार मे उच्च जाति और निम्न जाति के लोगों के बीच झगड़े आम हैं. कभी उच्च जाति के लोग मारे जाते हैं तो कभी निम्न जाति के लोग. हमे हर नरसंहार की निंदा करना चाहिए. अगर दोषी उच्च जाति के लोग हों तो उन्हे भी सज़ा मिलना चाहिए और अगर दोषी निम्न जाति के लोग हों तो उन्हे भी सज़ा मिलना चाहिए.

अगर हम हमेशा इंसाफ़ का पक्ष लेने वाले बनेंगे तो समाज को बुरे और असामाजिक तत्वों से छुटकारा मिलेगा और शांति प्रिय और सुसंस्कृत समाज की स्थापना होगी.

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Friday, November 1, 2013

एक ही सिक्के के दो पहलू

              भाजपा के नरेन्द्र मोदी और जे. डी. (यू) के नीतीश कुमार एक ही सिक्के के दो पहलू से ज्यादा कुछ भी नही हैं. 17 वर्षों तक साथ रहने के बाद नीतीश द्वारा मोदी का अचानक सम्प्रदायिक बताना सब को आश्चर्यचकित कर गया. मोदी जो पहले थे, आज भी वही हैं, उनमे रत्ती भर भी परिवर्तन नही आया है. फिर वे अचानक नीतीश के लिये अछूत कैसे हो गये? 


          दरअसल सब वोट का चक्कर है. नीतीश की पार्टी को बिहार के मुस्लिम और धर्मनिरपेक्ष लोगों का पिछले चुनावों मे काफी वोट मिला था. लेकिन उस वक्त भाजपा के मुखिया नरेन्द्र मोदी नही थे. नरेन्द्र मोदी के मुखिया बनते देख नीतीश को अपने वोट बैंक मे कमी साफ साफ नजर आने लगा और भाजपा से ब्रेक अप का यह मुख्य कारण बना. लेकिन नीतीश का यह प्रयास धर्मपिरपेक्ष लोगों क़ो बेवकूफ बनाने का अच्छा प्रयास है. 


            क्या भाजपा मे सिर्फ मोदी ही आर. एस. एस. की नीतियों का पालन करते हैं या पार्टी के सारे लोग? नीतीश ने कभी भी भाजपा को सम्प्रदायिक पार्टी ना बताकर सिर्फ मोदी को सम्प्रदायिक बतलाया है. इसलिये जो लोग आर. एस. एस. की नीतियों का विरोध करते हैं उन्हे भाजपा के साथ साथ नीतीश का विरोध भी करना चाहिये क्योंकि नीतीश कभी भी भाजपा के साथ वापस जा सकते हैं.
 

Friday, June 7, 2013

बलात्कार को रोकने के लिए इस्लाम में कठोर सजा के प्रावधान

                 जो लोग इस्लाम को बुरा समझते हैं, उन्हें इस्लाम की जो चीज अच्छी लगती है, कम से कम उस पर अमल करना चाहिए. 

               बलात्कार को रोकने के लिए इस्लाम में कठोर सजा के प्रावधान के साथ precautions भी हैं, उस पर भी अमल किया जाना चाहिए. कपड़ों की पाबन्दी तो है ही, दो अजनबी मर्द औरत (गैर महरम, दूर के रिश्तेदार भी ) को तन्हाई अख्तियार करने से मना भी किया गया है. 

अश्लील फोटो औरअश्लील विडिओ को देखना भी हराम माना गया है.

-- मोहम्मद खुर्शीद आलम

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