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Friday, January 31, 2014

राजनीति और परिवारवाद

राजनीति और परिवारवाद का बहुत ही गहरा सम्बंध है. अक्सर नेताओं पर परिवारवाद का आरोप लगते आया है. नेहरू परिवार इसके केन्द्र मे रहे हैं. लेकिन क्या वाकई नेहरू परिवार राजनीति मे परिवारवाद का बड़ा उदाहरण है.
   
    मैं तो ऐसा नही मानता. नेहरू परिवार अक्सर अपना उत्तराधिकारी चुनता है और राजनीति मे एक साथ परिवार से 1-2 लोग होते हैं. परिवारवाद के आरोप लालू यादव, मायावती, करुणानिधि, जयललिता आदि कई नेताओं पर लगे हैं.
  
   लेकिन जो परिवारवाद मुलायम सिंह यादव करते हैं उससे बड़ा उदाहरण देखने को कहीं और नही मिलता. उनके परिवार के शिवपाल सिंह यादव, रामगोपाल यादव, अखिलेश यादव, डिंपल यादव , धर्मेन्द्र यादव नाम से तो सब लोग परिचित हैं. अगले लोकसभा चुनाव तक इसमे कुछ और नाम जुड़ने की भी संभावना है.
  
   ऐसा परिवारवाद तो विश्व के अन्य लोकतांत्रिक देशों मे भी देखने को न मिले. परिवारवाद की गुंजाइश तो लोकतंत्र मे बिल्कुल ही नही है लेकिन हमारे देश के स्वार्थी और बेशर्म लोगों ने यहाँ भी इस पर रहम नही की. जातीय आधार पर वोटिंग भी इन स्वार्थी नेताओं की मुराद पूरी करता है.


    भारत के चुनाव आयोग और संवैधानिक लोगों को समुचित उपाय करना चाहिए जिससे राजनीति से परिवारवाद को ख़त्म किया जा सके.

बिहार और भ्रष्टाचार (Bihar and Corruption)

        भ्रस्टाचार से लड़ाई मे आजकल बिहार सरकार बहुत ही अच्छा काम कर रही है. पिछले कई वर्षों मे कई भ्रष्ट अधिकारियों और कर्मचारियों को जेल के पीछे भेजा गया और उनकी संपत्तियों को जब्त किया गया.

       आज के बिहार के अखबारों पर नज़र डालें तो इसे झुठलाया नही जा सकता बल्कि हक़ीक़त है. भ्रष्टाचार की लड़ाई मे बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बिना प्रसिद्धि के अच्छा काम कर रहे है पर यह दुर्भाग्य है कि सारा प्रसिद्धि अरविन्द केजरीवाल ले रहे हैं.   

     लेकिन मैं यह ब्लॉग नीतीश जी की खामियों को बताने के उद्येश्य से लिख रहा हूँ ताकि वे और भी अच्छा काम कर सकें. यह तो सारे लोग स्वीकार करते हैं कि सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार पुलिस विभाग मे है लेकिन यह बिहार का दुर्भाग्य है कि अधिकांश छापे और निगरानी दूसरे विभागों की हो रही है. थानों मे बिना रिश्वत के किन लोगों का काम होता है चाहे मुकदमा सही हों या फर्ज़ी. नीतीश जी के साथ ही बिहार के बड़े और ईमानदार पुलिस अधिकारियों को इस पर ध्यान देना चाहिये.
     बिहार सरकार के आला अधिकारियों को चाहिये कि दूसरे विभागों के साथ ही पुलिस विभाग से भी भ्रष्टाचार खत्म करें. मुकदमों के जांच अधिकारी, थानाध्यक्ष और डी. एस. पी. लेवेल के अधिकारियों पर निगरानी रखें, इनके कार्यालयों मे और आवासों के बाहर सी. सी. टी. वी. कैमरे लगाएँ. यह सुनिश्चित होना चाहिये की सही मुकदमे बिना रिश्वत और बिना परेशानी के दर्ज हों तथा फर्ज़ी मुकदमे किसी भी स्थिति मे दर्ज न होने पाये.

धार्मिक आरक्षण मे बुराई क्या है?

जो इंसान भारत मे सरकारी नौकरियों, शिक्षण संस्थानो आदि मे जातीय आरक्षण को सही ठहराते हैं और धार्मिक आरक्षण को गलत, उन्हे सरासर बेईमान कहने मे हिचक नही होनी चाहिये. जो लोग जातीय आरक्षण का विरोध करते हैं और चाहते हैं कि आरक्षण आर्थिक आधार पर हो, वे तो सही हैं पर उन्हे भी धार्मिक आरक्षण का विरोध तब तक नही करना चाहिये जब तक कि आरक्षण जातीय आधार से हटकर आर्थिक आधार पर न हो. जब जातीय आरक्षण हो सकता है तब धार्मिक आरक्षण मे क्या बुराई है, समझ मे नही आता. लोग जातीय आधार पर भेदभाव के शिकार होते हैं, इसलिये जातीय आरक्षण का प्रावधान हुआ. इसी तरह धार्मिक आधार पर भेदभाव हो रहे हैं (जिसे कई सरकारी व न्यायिक रेपोर्टों ने स्वीकार किया है) तो धार्मिक आधार पर आरक्षण देने मे कौन सा पहाड़ टूट जाता है. ताज्जुब तो तब होती है जब जातीय आधार पर आरक्षण लेने वाले लोग भी धार्मिक आरक्षण का विरोध करते हैं. और यह धार्मिक भेदभाव का बड़ा उदाहरण है.

    इसे भेदभाव कहें या संवैधानिक गड़बड़ी, देश के आजादी के बाद से ही चली आ रही है. हिन्दू धोबी, डोम, मेहतर आदि जातियाँ तो SC मे शामिल हुईं पर मुस्लिम धोबी, डोम, मेहतर को इससे बाहर रखा गया जो कि OBC मे शामिल है. यह सरासर अन्याय नही तो क्या है? इस मामले मे सुप्रीम कोर्ट मे पेटिशन डाली गयी है पर यह मामला कई वर्षों से लम्बित है. सब कहते हैं कि न्याय मे देर भी अन्याय है परंतु अमल नही करते. सुप्रीम कोर्ट को चाहिये कि इस मामले मे अपना हक का फैसला जल्द से जल्द करे. सभी आम जनता से भी अपील हैं कि अपने दिलों मे किसी के लिये पूर्वाग्रह या दुराग्रह न रखें और हक का साथ दें और जैसे जातीय आरक्षण लागू है उसी तरह धार्मिक आरक्षण के लिये पहल करें ताकि किसी का हक न मारा जाये.

      एक बात की ओर और ध्‍यान दिलाना चाहता हूँ कि अक्सर लोग मुसलमानो के पिछड़ापन का कारण उनके जन्म दर मे तीव्र वृद्धि को मानते हैं. जन्म दर मे तीव्र वृद्धि की वजह ही पिछड़ापन है. हिन्दू दलितों भी मे स्वर्ण हिन्दुओं से ज्यादा जन्म दर है. लालू यादव तो आसानी से उपलब्ध उदाहरण हैं. ऐसे ही उदाहरण हर गांव और हर शहर मे देखने को आपको मिलेंगे. इसलिये सबसे आग्रह है कि सच को स्वीकार करें और वंचित लोगों को उनका हक दिलाने मे मदद करें.


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