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Wednesday, April 30, 2014

शाज़ीया, सच्चा मुसलमान कभी स्वार्थी नही होता


आम आदमी पार्टी की नेत्री शाज़ीया इल्मी भारतीय मुसलमानो को साम्प्रदायिक होने का मशवरा देकर अपने विरोधियों के निशाने पर है. शाज़ीया अपने उसी विवादास्पद बयान मे यह भी सच स्वीकार करती हैं कि भारतीय मुसलमान धर्मनिरपेक्ष है जो कि एक निर्विवाद सत्य है.

       जब शाज़ीया के इस गलत मशवरे की निन्दा चारों ओर से होने लगी तो शाज़ीया ने अपना बचाव किया कि उसके कहने का मतलब था कि मुसलमान स्वार्थी बन जाएं और अपने हित का ख्याल करें. फिर 'आप' के सुप्रिमो अरविन्द केजरीवाल ने भी यही बात कही कि शाज़ीया ने कभी दूसरे धर्म वालों के नुकसान की बात नही कही, दूसरे धर्म वालों से नफरत की बात नही कही बल्कि अपना भला सोच कर वोट करने की बात कही.

       संभव है कि शाज़ीया का मकसद यही हो कि मुसलमान स्वार्थी बन कर वोट करें. लेकिन क्या 'स्वार्थी' होना अवगुण या बुराई नही है? हम अक्सर एक दूसरे को स्वार्थी कह कर दूसरे की बुराई की ओर इशारा करते हैं. फिर शाज़ीया का मुसलमानों को एक बुराई पर अमल करने को कहना गलत ही माना जायेगा.

       एक सच्चा मुसलमान कभी स्वार्थी नही हो सकता. स्वार्थी होना एक बुराई है और बुराई से दूर रहना मुसलमानों के ईमान का हिस्सा है. एक सच्चे मुसलमान को तो यह भी फिक्र करनी है कि उसका कोई पड़ोसी भूखा न रहे चाहे वह पड़ोसी हिन्दू हो या मुस्लिम या सिख हो या ईसाई. इसी ईमान की वजह से कई किस्से सुनने को मिलते हैं कि मेहमान को खाना खिलाया भले ही मेज़बान भूखा सो गया. सामूहिक खाना खाने के आदाब मे यह सिखाया जाता है कि हमारा साथी हमसे ज्यादा खाना खाएं, इसकी कोशिश करें. हम अपना हक दबाकर दूसरे का हक अदा करने वाले बनें, इसकी प्रेरणा दी जाती है.
       
      इसलिये शाज़ीया इल्मी ने कुछ वोटों की खातिर मुसलमानों को बुराई पर अमल करने को कह कर गलत काम किया है. शाज़ीया को चाहिये कि भविष्य मे ऐसी बातें न करें, अपनी गलतियों पर पश्चाताप करे और इसके लिये माफी मांगे.

Saturday, April 26, 2014

एक पत्र 'संपादक, नवभारत टाइम्स ऑनलाइन' के नाम


सेवा मे,
श्रीमान संपादक महोदय,
नवभारत टाइम्स ऑनलाइन

विषय: नवभारत टाइम्स ऑनलाइन को और बेहतर बनाने के सम्बंध मे
महाशय,
             मैं नवभारत टाइम्स ऑनलाइन को और बेहतर बनाने के लिये कुछ सुझाव देना चाहता हूँ. मुझे पूरी उम्मीद है कि आप मेरे सुझावों पर संजीदगी से गौर करेंगे और उपयुक्त पाये जाने पर जल्द से जल्द इस को अमल मे लायेंगे. मेरे सुझाव निम्नलिखित हैं.

1. चूंकि अब इस वेबसाइट के रजिस्टर्ड यूज़र्स बहुत हैं, बिना लॉग इन के किसी को टिप्पणी करने न दिया जाये. इससे आपत्तिजनक टिप्पणी को बंद करने मे आसानी होगी.

2. लॉग इन के साथ भी आपत्तिजनक टिप्पणी करने वालों को चेतावनी स्वरूप शुरु मे हर ऐसी टिप्पणी के लिये 100 से 500 तक पॉइंट्स काटे जाएं.

3. नियमित रूप से आपत्तिजनक टिप्पणी करने वालों को पूरी तरह ब्लॉक कर दिया जाये.

4. टिप्पणी के जवाब वाली आपत्तिजनक टिप्पणी को समाचार सेक्सन से कभी हटा दिया जाता है पर यह सम्बंधित लोगों के प्रोफाइल पर बना रहता है. कृपया इसे भी दुरुस्त करें.

5. बार बार अभद्र भाषा वाली टिप्पणी से बचने के लिये लोगों को एक दूसरे प्रोफाइल को ब्लॉक करने का अधिकार दिया जाये जैसे कि सोशल नेटवर्किंग साइट पर होता है.

6. 3 दिन के अंदर कोई ब्लॉगर दूसरा पोस्ट न डाल सके, इसकी व्यवस्था ऑटोमॅटिक कर दें.

7. ब्लॉग पोस्टिंग के लिये ताजा-बासी का रूल भी खत्म किया जाये. कई लोग इस रूल के तहत डेली पोस्ट कर रहे हैं.

8. महीने के टॉप 30 ब्लोगों को नकद पारिश्रमिक भी दिया जाये और इन्हे अपने प्रिंट एडिशन पर भी जगह दें.

9. टॉप 30 का चुनाव नभाटा की टीम ब्लॉग की भाषा, गुणवत्ता, उद्येश्य आदि के आधार पर करे.  

10. चोर ब्लॉगरों के सारे पायंट्स सीज़ किये जाएं और उन्हे ब्लॉक कर दिया जाये. संभव हो तो कानूनी कार्र्वाई भी की जाये.

11. बिना वजह पायंट्स सिस्टम काम करना अक्सर बंद कर देता है, इस तकनीकी खराबी पर कंट्रोल किया जाये.

12. इस ब्लॉग की टिप्पणी मे आये सुझाव को भी मद्देनजर रखा जाये.

                              पाठकगण और ब्लॉग लेखकों से अनुरोध है कि उपरोक्त विषय पर अपने सुझाव भी यहाँ टिप्पणी कर के दें ताकि नवभारत टाइम्स वेबसाइट को और भी अच्छा बनाया जा सके.

Thursday, April 24, 2014

भाजपा को बुरी तरह हराने के फायदे


भाजपा के समर्थक हों या विरोधी, हर पाठक मेरे दिये गये तर्कों को ध्यान से पढ़ें, अपने दिल पर हाथ रखें, अपनी अंतरात्मा की सुनें और सच का साथ दें. क्या भाजपा को बुरी तरह हराना देश हित मे नही है? मुझे पूरा यकीन है कि अगर भाजपा को बार बार हर चुनाव मे बुरी तरह हराया जाये तो हमारे देश भारत का समुचित विकास होगा. भाजपा को बुरी तरह बार बार हराने के बहुत फायदे हैं जिनका उल्लेख निम्नलिखित है:

1. भाजपा को बार बार बुरी तरह हराने से सर्वप्रथम भाजपा वाले अपनी नीतियों की विवेचना करेंगे और देश तथा समाज विरोधी नीतियों को बदलने पर मजबूर होंगे.

2. अगर भाजपा अपनी साम्प्रदायिक, देश विरोधी, समाज विरोधी नीतियाँ बदल लेती हैं तो देश को एक बड़ी पार्टी के रूप मे अच्छा विकल्प मिलेगा.

3. वर्तमान भाजपा को बार बार हराने से यह भाजपा कमजोर होगी तो जनता के बीच भाजपा का खौफ खत्म हो जायेगा.

4. भाजपा का डर खत्म हो जाने के बाद जनता सही मुद्दों पर वोट करेगी.

5. फिर चुनाव मे जनता के मुद्दे साम्प्रदायिकता के बजाये विकास, भ्रष्टाचार, गरीबी, कुपोषण, स्वास्थ्य, सड़क, बिजली, पानी, घर आदि होंगे.

6. फिर कोई भी पार्टी सिर्फ भाजपा का डर दिखाकर वोट नही मांगेगी.

7. पार्टियों के बीच विकास और भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों पर काम करने की होड़ पैदा होगी जिससे भारत का विकास होगा.

8. धर्म की राजनीति करने वालों का हौसला पस्त होगा.

9. फिर भाजपा भी अपनी पार्टी मे वाजपेयी जैसे लोगों की खोज करेगी और मोदी, अमित जैसे लोगों से किनारा करेगी.

10. विश्व मे भारत का सम्मान बढ़ेगा और किसी देश को हमारे बड़े नेता पर 'वीसा प्रतिबंध' की जरूरत नही पड़ेगी.

11. भारत का लोकतंत्र साफ सुथरा होगा जिसमे साम्प्रदायिकता की कोई जगह नही होगी.

          आशा है कि पाठकगण मेरी बातों पर निष्पक्षता से विचार करेंगे और एक समृद्ध और विकसित भारत बनाने मे अपना सहयोग देंगे.

Sunday, April 20, 2014

भाजपा से दुबारा मिलने का सवाल ही नही: डा. भीम सिंह

         बिहार के ग्रामीण कार्य और पंचायती राज विभाग के मंत्री और जनता दल युनाइटेड के वरिष्ठ नेता डा. भीम सिंह ने इस ब्लॉग के लिये दिये गये साक्षात्कार मे कहा है कि उनकी पार्टी अब भविष्य मे कभी भी भाजपा गठबंधन का हिस्सा नही बनेगी. उन्होने यह भी कहा कि उनके नेता श्री नीतीश कुमार की विश्वसनीयता की वजह से ही मुस्लिम समुदाय भी काफी संख्या मे उनकी पार्टी से जुड़ रहा है.


        पाठकगण पूरा साक्षात्कार पढ़ें, इसके पहले मैं मंत्री जी को हार्दिक धन्यवाद देना चाहता हूँ कि उन्होने अपने व्यस्त और कीमती समय मे से कुछ वक्त मेरे इस ब्लॉग के लिये निकाला. बिहार मे कल गुरुवार को दूसरे चरण का महत्वपूर्ण चुनाव था और अभी कई चरण बाकी हैं, ऐसे मे उनका इसके लिये समय निकालना उनकी महानता और सरलता को दर्शाता है.   उनका जवाब आज शुक्रवार की सुबह ही प्राप्त हुआ है. 

अब पेश है उनसे लिया गया साक्षात्कार:
 
खुर्शीद:          आप बिहार मे सामाजिक न्याय के संघर्ष के लिए जाने जाते हैं, आपने इसकी शुरुआत कब और कहाँ से की, क्या कोई घटना आपको इसके लिए प्रोत्साहित किया?
 
 
डा. भीम सिंह: आपने बिलकुल दुरुस्त फरमाया है। मेरी पहचान सामाजिक न्याय के लिए लड़ने वालों में होती है। दरअसल मैं सन 1978 से ही आरक्षण समर्थक आन्दोलन में भाग लेता रहा हूँ। वैसे मैंने स्कूली जीवन में '74 आन्दोलन में भी भाग लिया था। पर तब अपनी समझ से नहीं अपितू सीनियर्स के कहने पर। लेकिन किसी एक घटना को मैं अपने राजनीतिक रुझान का श्रेय या जिम्मेवार नहीं कह सकता। दरअसल एक प्रतिभावान छात्र के एक राजनीतिज्ञ के रूप में परिणति का एक सिलसिला है।
 
 
 
खुर्शीद:          आप लालू जी और नीतीश जी, दोनो के साथ काम कर चुके हैं, दोनों मे क्या फ़र्क महसूस किया?
 
 
डा. भीम सिंह: जी हाँ मैंने दोनों के साथ काम किया है। दोनों एक ही राजनीतिक स्कूल के हैं। दोनों ने लम्बे समय तक एक साथ काम भी किया है।दोनों के नेता जननायक कर्पूरी ठाकुर जी थे। सच पूछा जाये तो मैं भी इसी धारा का हूँ और जननायक कर्पूरी ठाकुर जी ही हमारे भी नेता रहे हैं। स्वाभाविक है कि इन दोनों से मेरी नजदीकियाँ हों।
                  जहाँ तक इन दोनों में फर्क का है तो वह अंतर कार्यशैली का है। आपने स्वंय भी इसका अनुभव किया होगा।नीतीश जी के नेत्रित्व में बिहार ने चमात्कारिक विकास किया है।
 
 
 
खुर्शीद:         भाजपा से अलग होने के बाद बड़ी संख्‍या मे मुस्लिम लोग आप की पार्टी से जुड़ रहे हैं, इसका राज क्या है? क्या आपकी पार्टी भाजपा से दुबारा मिल सकती है अगर भाजपा अपना नेता बदलेंगे?
 
 
डा. भीम सिंह: जी नहीं, बिलकुल नहीं। नेत्रित्व की विश्वसनीयता के कारण मुस्लिम समुदाय का झुकाव हमारी पार्टी की तरफ हुआ है।
 
 
खुर्शीद:          आपकी सरकार भ्रष्टाचार के खिलाफ पुरजोर मुहिम चलाए हुए है लेकिन मीडिया मे आपकी नही 'आप' की चर्चा होती है, ऐसा क्यों?
 
 
डा. भीम सिंह: मिडिया अपनी गाइड की सोच से प्रभावित है.
 
 
 
खुर्शीद:           आप अपने पंचायती राज विभाग मे होने वाले कार्यों पर कैसे नज़र रखते हैं ताकि लाभ सही लोगों को मिले और कार्यों मे भ्रष्टाचार न हों?
 
 
डा. भीम सिंह: विभाग पर चुनाव बाद चर्चा की जाये तो बेहतर होगा ।
 

इमाम बुखारी का मशवरा देश हित मे है


         कुछ दिन पहले जामा मस्जिद, दिल्ली के शाही इमाम अहमद बुखारी ने देशवासियों को मशवरा दिया कि लोकसभा चुनाव मे किसे वोट दिया जाये और किसे नही. इस पर बहुत से लोगों ने बेवजह हाय तौबा मचाया. आजकल हर कोई मशवरा दे रहा है. नवभारत टाइम्स के इसी पेज पर हजारों ब्लोग्गर्स हैं जो किसी न किसी को वोट देने की पैरवी कर रहे हैं. फेसबूक और ट्विट्टेर पर लाखों लोग मशवरा देने मे लगे हुये हैं. धर्मगुरु, योगा गुरु, पत्रकार, लेखक, नेता, अभिनेता सभी लोग मशवरा दे रहे हैं. फिर इमाम बुखारी के मशवरे से क्या आफत आ गई? वे भी भारत के नागरिक हैं और उन्हे भी अपनी बात रखने का अधिकार है.
         
           मशवरा भी उन्होने वही दिया है जो एक आम धर्मनिरपेक्ष और शान्तिप्रिय नागरिक की राय है. जिस ढंग से आजकल साम्प्रदायिक ताकतों की झूठी हवा बनाई जा रही है उसमे उनका कांग्रेस गठबंधन को समर्थन करने का मशवरा देना बिल्कुल ठीक है. आज की तारीख मे कांग्रेस गठबंधन ही साम्प्रदायिक शक्तियों को रोकने मे सक्षम है क्योंकि वामपंथी पार्टियों और तीसरे मोर्चे की हालत आज ठीक नही है.

            उत्तर प्रदेश मे सपा को वोट न करने का मशवरा मुज़फ़्फरनगर दंगों मे सरकार की असफलता और राज्य मे दंगे और गुंडई की बढ़ती संख्या का नतीजा है. बसपा दुबारा भाजपा से मिल न जाये, इसलिये बसपा से भी परहेज करने का उन्होने मशवरा दिया है.

             पश्चिम बंगाल मे ममता बैनर्जी की तृणमूल कांग्रेस को समर्थन की वजह ममता के अच्छे काम और पूरे किये जा रहे वादे हैं. वैसे वहां के लिये मेरी राय कांग्रेस या वामपंथी को समर्थन देने की है क्योंकि सरकार बनाते समय जरूरत पड़ने पर ममता नाटक कर सकती हैं. तृणमूल को विधानसभा तक ही समर्थन करना बेहतर होगा.

           कुल मिलाकर इमाम बुखारी का मशवरा देश हित मे है. साम्प्रदायिक, अवसरवादी और गुंडई को बढ़ावा देने वाली ताकतों को सत्ता मे आने से रोकना ही उनका उद्येश्य है.

इलेक्ट्रॉनिक मीडिया क्यों बेईमान हो गयी है?


                        कुछ वर्षों पहले तक निष्पक्ष रहने वाली इलेक्ट्रॉनिक मीडिया आज कल क्यों बेईमान हो गयी है, समझ मे नही आता. इन्हे तो सिर्फ सच्ची खबर देना चाहिये पर आजकल भाजपा और मोदी का महिमामंडन कर खुद को बेईमान साबित कर रही हैं. हद तो तब महसूस किया हूँ जब अर्नब गोस्वामी और रजत शर्मा को इनके पक्ष मे बोलते देखा.

                           अभी अभी अर्नब गोस्वामी का डिबेट सुना. अर्नब राहुल गाँधी द्वारा नरेन्द्र मोदी के शादी के मुद्दे को उठाने को पर्सनल अटॅक बता रहे हैं. जब एक प्रधानमंत्री का उम्मीदवार देश को झूठी सूचना दे रहे हैं, देश को गुमराह कर रहे हैं तो क्या इस मुद्दे को उठाना पर्सनल अटॅक है?

                          अर्नब को तो भाजपा वालों से प्रधानमंत्री का उम्मीदवार बदलने के लिये कहना चाहिये था क्योंकि उनके उम्मीदवार का बड़ा झूठ देश के सामने उजागर हो चुका था. इसके बजाये झूठ का साथ देना अर्नब की छवि खराब करता है. विनोद मेहता ने सत्य का पक्ष लेकर यह जताया कि आज भी सच्चे लोगों की संख्या कम नही है.

Friday, April 11, 2014

देश हित मे कांग्रेस-गठबंधन सरकार ही चाहिये

         आज कल शान्ति, सद्भाव और अमन, चैन, सुकून विरोधी ताकतें चाह रही हैं कि कैसे भी मोदी या भाजपा सरकार बन जाये. इस प्रयत्न मे न जाने कैसे कैसे जोड़-तोड किये जा रहे हैं. इसके लिये वर्षों के विरोधी खेमे के लोगों को साथ ले रहें तो अपनी ही पार्टी के बुज़ुर्ग और सम्मानीय नेताओं का अपमान कर रहे हैं. 'चायवाले' की इतनी और ऐसे चर्चा हो रही है जैसे प्रधानमंत्री बनने के लिये सबसे बड़ी योग्यता 'चायवाला' होना है.प्रधानमंत्री के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी भाषणों मे अपना स्तर इतना गिरा रहे हैं जिसे एक सभ्य और ईमानदार आदमी कभी भी सोच भी नही सकता और न ही स्वीकार करेगा. वे बार बार खुद को चायवाला और दलित तो बोल ही रहे हैं,एक भाषन मे तो यहाँ तक बोल दिया कि उनकी मां दूसरे के घरों मे घरेलू कार्य करती थी. क्या यह प्रधानमंत्री बनने के लिये योग्यता है?

            मीडया और पूंजीपतियों का बहुत बड़ा तबका देश के सबसे बड़े खलनायक के महिमामंडन मे लगा हुवा है. आम भारतीय जनता जो कि शान्तिप्रिय है, इंसाफ का पक्षधर है, को इनसे सतर्क रहने की जरूरत है.देश हित मे यह जरूरी है कि ऐसी अहितकारी ताकतों को सत्ता मे आने से रोका जाय. क्योंकि तीसरा मोर्चा आज कमजोर है, इसलिये ऐसी विघटनकारी ताकतों को रोकने के लिये कांग्रेस और इसके सहयोगी दलों के समर्थन की महति आवश्यकता है. अगर किसी सीट पर कांग्रेस या इसके सहयोगी दल मुकाबले मे नही है तो वहां वामपंथी या तीसरे मोर्चे या अच्छे निर्दलीय उम्मीदवारों को समर्थन दिया जा सकता है.

Tuesday, April 8, 2014

मुलायम सिंह यादव को दोनो सीट से हरायें

मैं मुलायम सिंह यादव को आज़मगढ़ और मैनपुरी दोनो सीट से हारना देखना चाहता हूँ. आप पूछेंगे, क्यों, तो मेरे यह कारण है:


1. दो सीट से खड़ा होने को मैं गलत मानता हूँ. धन, जन और समय तीनों की बर्बादी होती है. दोनो सीट से जितने पर एक सीट खाली करना, फिर से चुनाव कराना, सभी को परेशानी देता है.

2. मुज़फ़्फरनगर दंगों को सही ढंग से हॅंडल नही करने की सजा इन्हे मिलना जरूरी है ताकि भविष्य मे सम्हल कर काम करें.

3. यू. पी. मे इनकी सरकार बनते ही दंगे और गुंडई दोनों अचानक बढ गये.

4. ये जातिवाद हद से ज्यादा करते हैं.

5. परिवारवाद का इससे बड़ा उदाहरण किसी भी लोकतांत्रिक देश मे नही मिलता.

               Mulayam Singh Yadav should loose both seats 


      I want to see Mulayam Singh Yadav losing both seats Azamgarh and Mainpuri  . You can ask me, why, this is so me :

1. I consider wrong to stand from two seats. Money , labors and time, all waste. After winning both seats, one has to vacate 1 seat , re- elections , all that trouble .

2 . He should be punished for not handling in proper way the Muzaffarnagar riots, to get him to work cautiously in the future .

3 . After making government in U. P., rioting and vandalizing both suddenly have increased significantly .

4 . These are overly casteist .

5 . The greatest example of dynastic, we do not see in any democratic country .

Sunday, April 6, 2014

बिहार मे राजद नंबर 1 होगी और भाजपा नंबर 3


आजकल लोकसभा चुनाव के नतीजों के सर्वे बार बार छप रहे हैं. इन सर्वे वालों की नियत और उद्येश्य सब लोग जान चुके हैं. मोदी विरोधी लहर होते हुये भी भाजपा को सबसे ज्यादा सीटें दिखा रहे हैं. बिहार की राजनीति पर गौर करते हुये मेरा आकलन है कि बिहार मे सबसे ज्यादा सीटें इस बार राजद जीतेगी. दूसरे नंबर पर जद-यू और तीसरे नंबर पर भाजपा आयेगी. इस आकलन के पीछे मेरा निम्नलिखित तर्क हैं:

1. कुर्मी जाति छोड़कर सभी पिछड़ी जातियों के अधिकांश वोट राजद को मिलेगी. बिहार मे पिछड़ी जातियों का मनोबल जितना उँचा लालू यादव ने किया है उतना कोई नही. यही कारण है कि भूमिहार और ब्राह्मण जैसी स्वर्ण जातियाँ सबसे ज्यादा विरोध लालू का करते हैं.

2. कोइरी जाति पहले नीतीश के साथ थी पर इस बार इस जाति के कई बड़े नेता नीतीश को छोड़ चुके हैं और लालू के साथ हो गये हैं. लालू यादव भी  इन लोगों को काफी सम्मान दे रहे हैं.

3. मुसलमानों के अधिकांश वोट राजद को ही मिलेंगे. भाजपा से अलग होने के बाद नीतीश कुमार अच्छा काम कर रहे हैं पर मुसलमान उन पर विश्वास अभी नही करेंगे. अगले पांच साल तक अगर नीतीश भाजपा से अलग रहते हैं तो मुसलमानों को उन पर विश्वास करने मे आसानी होगी.

4. नीतीश कुमार की पार्टी विकास कार्यों के कारण 2 नंबर पर पहुंचने मे कामयाब हो जायेगी. कुर्मी और महादलित के लगभग सारे वोट इन्ही को मिलेंगे.

5. नरेन्द्र मोदी विरोधी लहर के चलते भाजपा के 3 नंबर पर जाने का अनुमान है. भूमिहार और अमीर वैश्य लोगों के अधिकांश वोट भाजपा को मिलेंगे.

6. भूमिहार विरोध के कारण राजपूतों के ज्यादातर वोट राजद को जायेंगे और कुछ वोट नीतीश को.

7. ब्राह्मण के वोट कॉंग्रेस और भाजपा दोनो को मिलेंगे.

8. राजद से गठबंधन की वजह से कॉंग्रेस को भी अच्छी सीटें मिलेगी.

9. कांग्रेस के परंपरागत वोट दोनो को मिल जायेंगे.

10. बिहार मे 'आप' के कमजोर होने का लाभ भाजपा विरोधी पार्टियों को मिलेगी.

11. सोनिया और राहुल की स्वच्छ छवि का लाभ कांग्रेस और राजद दोनो को मिलेगा.

Thursday, April 3, 2014

नरेन्द्र मोदी दोनों सीट से हारेंगे


मीडिया और झूठे सर्वे नरेन्द्र मोदी के पक्ष मे चाहे जितनी हवा बनाये, नरेन्द्र मोदी का दोनो सीटों से हारना लगभग तय है. इस हार की निश्चितता के लिये मुझे कुछ ठोस कारण दिखाई देते हैं जो मैं नवभारत टाइम्स के पाठकों के सामने रखना चाहता हूँ.

1. वाराणसी सीट से अरविन्द केजरीवाल कड़ी टक्कर दे रहे हैं. दिल्ली मे पोल खुल जाने के बाद केजरीवाल अपनी तोप का मुंह कांग्रेस के बजाये भाजपा पर तान दिया है जिससे सारे धर्मनिरपेक्ष, समाजवादी और वामपंथी वोटों को ध्रवीकरण केजरीवाल के पक्ष मे हो रहा है. नरेन्द्र मोदी की सबसे ज्यादा पोल दिग्विजय सिंह के बाद केजरीवाल ने खोली है. इसलिये लोग मोदी के खिलाफ केजरीवाल को ही वोट देंगें. केजरीवाल की गुजरात यात्रा ने मोदी के विकास के दावों को बिल्कुल ही झुठला दिया है और इसका फायदा केजरीवाल को मिलेगा ही.

2. मीडिया और झूठे सर्वे यह सोच रही है कि जब वे सुनियोजित अभियान चलाकर केजरीवाल को मुख्यमंत्री की गद्दी तक पहुँचा सकते हैं तो वे मोदी को भी प्रधानमंत्री बनवा देंगे. मीडिया यह भूल जाती है कि केजरीवाल ने भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाया था जिससे सारे भारतीय पीड़ित हैं.

सोनिया गाँधी की क़ुर्बानियाँ


    अक्सर मैं भाजपा और RSS समर्थक द्वारा सोनिया गाँधी की निन्दा करते सुना हूँ और पढ़ा हूँ. लेकिन अगर गौर से और निष्पक्ष भाव से सोनिया गाँधी के बारे मे विचार किया जाये तो उनकी क़ुर्बानियाँ ज्यादा दिखती हैं. सोनिया गाँधी की क़ुर्बानी के कुछ नमूने आप सब के सामने रखना चाहता हूँ जिससे उनके विरोधी भी सोंचने पर मजबूर हो जाएं.

1. भारत के लिये उन्होने अपने देश इटली की क़ुर्बानी कर दी. जीना मरना सब भारत के नाम कर दिया. इटली दौरा का समाचार भी नही मिलता. हम मे से कितने हैं जो अपनी मातृभूमि को दूसरे देश के लिये भूल सकते हैं. यह क़ुर्बानी उनकी महानता को दर्शाती है.

2. भारत के लिये अपने धर्म ईसाई की भी क़ुर्बानी दी और हिन्दू धर्म मे शामिल हो गयीं. अक्सर दर्शन के लिये मंदिर जाती रहती हैं.

3. अपने पति की मृत्यु के बाद भी संयम से काम लिया. भारत को नही छोड़ा और एक भारतीय नारी की तरह पतिव्रता बनी रहीं और दूसरी शादी से परहेज किया. 

4. प्रधानमंत्री बनने का मौका मिलते हुये भी दूसरे को प्रधानमंत्री बनाकर सोनिया गाँधी ने अद्भुत मिसाल पेश की. ऐसी कुर्बानी विश्व इतिहास मे देखने को नही मिलती.

5. सोनिया गाँधी ने सत्ता के लिये कभी नीतियों से समझौता नही किया बल्कि लगभग समान नीतियों वाली पार्टी से ही समझौता किया.

          उम्मीद है कि सोनिया गाँधी की क़ुर्बानी के इन नमूनों से उनके विरोधी भी अपने विचार बदलने पर मजबूर होंगें.

काराकाट लोकसभा सीट से राजद के जीतने की उम्मीद है.


काराकाट लोकसभा क्षेत्र पिछली बार के परिसीमन के बाद अस्तित्व मे आया है. यह रोहतास ज़िले के तीन और औरंगाबाद के तीन विधानसभा क्षेत्रों से मिलकर बना है. यहाँ से पिछले लोकसभा चुनाव मे जद-यू के महाबली सिंह की विजय हुई थी.

     निवर्तमान सांसद महाबली सिंह इस बार भी जद-यू के टिकट पर चुनाव लड रहे हैं. लेकिन इस बार की लड़ाई अलग है. पिछली बार भाजपा इनके साथ थी जिसकी वजह से कोइरी-कुर्मी वोट के साथ इन्हे स्वर्ण भूमिहारों का वोट भी खूब मिला था. इस बार भाजपा के समर्थन से रालोसपा के उपेन्द्र कुशवाहा चुनाव लड रहे हैं. ये दोनो स्वजातीय कोइरी जाति से हैं, इसलिये कोइरी जाति का वोट बँटना तय माना जा रहा है.

    यहाँ से राजद ने कांग्रेस के समर्थन से यादव जाति की कांति सिंह को चुनाव मैदान मे उतारा है. ये पूर्व मे मंत्री भी रह चुकी हैं. लेकिन राजद का यहाँ दुर्भाग्य यह है कि ओबरा के राजद विधायक सत्यनारायण सिंह (यादव) ने बगावत कर दिया है. उन्होनें भी अपना नामांकन निर्दलीय से किया है. अगर यह बगावत चुनाव होने से पहले थम गयी और यादव वोटों का बंटवारा नही हुवा तो यहाँ से राजद की जीत तय है.

     पिछले चुनाव मे भी राजद के हार का अंतर कम था बल्कि 6 मे से 2 विधानसभा क्षेत्रों मे तो राजद आगे थी. इस क्षेत्र मे अक्सर देखा गया है कि राजपूत जाति के लोग भूमिहार के खिलाफ मतदान करते हैं. अगर भूमिहार रालोसपा के साथ जाते हैं तो राजपूत राजद के साथ जायेंगे. यही वजह है कि इस सीट से राजद के जीतने की उम्मीद ज्यादा है.

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