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Saturday, June 28, 2014

सिर्फ महादलितों के लिये योजनाएं क्यों?

              बिहार के नये मुख्यमंत्री श्री जीतन राम माँझी आजकल कई अहम और कड़े फैसले ले रहे हैं. उन्होने वो फैसले भी लिये जिसे लेने मे पिछले मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार हिचक रहे थे. इससे यह बात साफ हो गयी है कि श्री माँझी रेमोट कंट्रोल वाले मुख्यमंत्री नही हैं और खुद फैसला लेने मे सक्षम हैं. इससे श्री नीतीश कुमार की अच्छाई का भी पता चलता है कि वे नये मुख्यमंत्री को सभी फैसले लेने की आजादी दे रखी है और किसी भी ढंग का हस्तक्षेप नही कर रहे हैं.

            अहम और कड़े फैसले मे एक फैसला बिहार के पुलिस प्रमुख का चेंज करना है. यह तो आने वाला वक़्त ही बतायेगा कि श्री माँझी का लिया गया फैसला कितना सही है और कितना गलत. लेकिन यह सही है कि श्री अभयानंद के विनम्र स्वभाव का उनके कुछ जूनियर ऑफीसर नाजायज़ फायदा उठाते थे और उनके दिशा निर्देश को ठंडे बस्ते मे डाले रखते थे.


        श्री माँझी ने कई कल्याणकारी योजनायों की घोषणा की है जिसमे से अधिकतम योजनाएं महादलितों के कल्याण की है. श्री माँझी को याद रखना होगा कि वे सभी वर्गों के लिये मुख्यमंत्री है. इसलिये उनसे गुजारिस है कि सारी योजनाएं महादलित, दलित, पिछडे वर्ग, अल्पसंख्यक, गरीब स्वर्ण आदि सभी कमजोर और वंचित लोगों के हित मे हो, इसका वे ध्यान रखें.

Wednesday, June 25, 2014

नमो से मेरी सहमति

           कुछ दिन पहले एक समाचार पढ कर ग्यात हुआ था कि भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी आडवाणी और जोशी जैसे बुजुर्ग नेता को कॅबिनेट से बाहर इसलिये रखा क्योंकि उनकी उम्र 75 वर्ष से ज्यादा है. मैं नमो के इस अघोषित नियम से सहमत हूँ बल्कि इसको 65 वर्ष करने की मांग करता हूँ.

            भारत के सरकारी कार्यालयों मे काम करने की अधिकतम उम्र कहीं 58, कही 60, कहीं 62 और कहीं 65 वर्ष है. इसके बाद इन्हे काम के योग्य नही समझा जाता और रिटाइर कर दिया जाता है. जब एक आम आदमी 65 वर्ष उम्र पार करने के बाद बच्चों को पढ़ाने के योग्य भी नही रह जाता तो 65 वर्ष के बाद देश और राज्य चलाने की क्षमता कैसे रह जाती है, यह सोंचने वाली बात है.

            इसलिये मैं प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी, राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी और सभी सम्बंधित लोगों से मांग करता हूँ कि कानून बनाकर राष्ट्रपति, राज्यपाल, सांसद, विधायक, विधान परिषद सदस्य जैसे पदों के लिये अधिकतम उम्र सीमा 65 वर्ष तय करें.

Wednesday, June 4, 2014

16 मई 2014 : 6 बेगुनाहों की जीत का दिन

        16 मई 2014 को भारतीय इतिहास मे दो कारणो के लिये हमेशा याद किया जायेगा. एक उस जीत के लिये जो भाजपा ने श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व मे केन्द्र सरकार बनाने के लिये जीता और दूसरे उन 6 बेगुनाह मुस्लिम लोगों के लिये जिसे सुप्रीम कोर्ट ने निर्दोष बता कर जेल से रिहा करवाया. पहली जीत की सुर्खियाँ न सिर्फ भारत मे बल्कि विदेशों की मीडिया मे भी छाई रही और हरेक लोग इसे भली भांती जानते हैं. यह दुर्भाग्य की बात है कि दूसरी जीत को मीडिया मे उतनी जगह नही मिली जितनी की अपेक्षा थी. दर असल अक्षरधाम मंदिर हमले के मामले मे 6 बेगुनाह मुस्लिमों को गुजरात पुलिस ने पकड़ा और झूठे केस मे फंसा दिया. 11 साल इन लोगों ने जेल मे गुजारा और न जाने कितने ज़ुल्म सहे.


     यह बात ध्यान देने योग्य है कि जब इन बेगुनाहों को झूठे केस मे फंसाया गया तो उस वक्त गुजरात के मुख्यमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ही थे और गृह विभाग भी उन्ही के जिम्मे था. ज़ुल्म की हद तो तब हो गई जब कुछ फर्ज़ी एनकाउंटर और बेगुनाहों को झूठे केस मे फँसाने के अभियुक्त पुलिस ऑफीसर जी एल सिंघल का निलंबन केन्द्र मे नई सरकार बनते ही खत्म कर दिया गया. इन बेगुनाहो की कहानी BBC हिन्दी ने अपने वेबसाइट पर प्रकाशित की है. किसी बेगुनाह मुस्लिम को आतंकी कह कर झूठे केस मे फँसाने का जो दर्द और उत्पीड़न होता है, इनकी कहानी पढ़कर महसूस किया जा सकता है.  पाठकों से गुजारिस है कि थोड़ा वक्त निकालकर इसे जरूर पढ़ें. लिंक मैं नीचे दे रहा हूँ.


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