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Sunday, October 8, 2023

Population of All Castes of Muslims in Bihar 2023

Know population of all castes of Muslims in Bihar here. Such as Sheikh, Syed, Mallik, Pathan, Ansari, Darji, Kalal/ Iraqui/ Eraqui etc and all from Bihar. 

Kindly click link to check PDF file.


For check related video, kindl click following link: 

Know population of all castes of Muslims in this video.  Sheikh, Syed, Mallik, Pathan, Ansari, Darji, Kalal/Eraqui/ Iraqui, Dhuniya, Dhobi etc and all of Muslims.   https://youtu.be/FbpunH9GbYE



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Tuesday, May 4, 2021

Breaking। 04.05.2021। Bihar Lockdown Guidelines। Status of Construction Work। क्या खुला। क्या बंद





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Thursday, November 19, 2020

Bihar Government Jobs for Civil, Electrical & Mechanical Engineers

https://youtu.be/FBbzml8LHKo

बिहार सरकार मे  Civil, Electrical,  Mechanical Engineer  की Bumper Vacancy. जल्द Apply करें। Click karke video dekhen.

CIJK चैनल में सभी का स्वागत है. इस चैनल में आपको Construction Industry, Job & Knowledge संबंधित जानकारी मिलती है. साथ ही इस फील्ड के अपने अनुभव आपसे साझा करता हूँ.

- मोहम्मद खुर्शीद आलम
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Tuesday, October 13, 2020

बिहार का अगला मुख्यमंत्री या तो तेजस्वी होंगे या उपेन्द्र कुशवाहा या भाजपा से कोई भी Next CM of Bihar will be Tejaswai or Upendra or anyone from BJP

 बिहार का अगला मुख्यमंत्री या तो तेजस्वी होंगे या उपेन्द्र कुशवाहा या भाजपा से कोई भी Next CM of Bihar will be Tejaswi or Upendra or anyone from BJP

मेरी राय मे बिहार अगला मुख्यमंत्री या तो तेजस्वी होंगे या उपेन्द्र कुशवाहा या भाजपा से कोई भी। नीतीश को चिराग इतना कमजोर करेंगे कि वे अब CM पोस्ट क्लेम ही नही कर पाएँगे।

AIMIM के समर्थन से उपेन्द्र कुशवाहा पहले से मजबूत होंगे।  मुस्लिम, दलित, कोईरी जाति समेत कई पिछडी जाति का अच्छा खासा वोट इस गठबंधन को मिलने की उम्मीद कर सकते हैं।

भाजपा प्रेमी जदयू को कमजोर और लोकजन शक्ति पार्टी को मजबूत कर सकते हैं ताकि CM पोस्ट क्लेम कर सकें।

Sunday, October 11, 2020

रामविलास पासवान कर्मठ इंसान भी कहलाए, और राजनीति के मौसम वैज्ञानिक भी, आखिर क्यों? Ram Vilas Paswan

रामविलास पासवान कर्मठ इंसान भी कहलाए,

और राजनीति के मौसम वैज्ञानिक भी,

आखिर क्यों?  जानिए इस वीडियो मे। 

https://youtu.be/LDdSTjeDG88 

#रामविलासपासवान,

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Monday, April 29, 2019

कन्हैया कुमार के गुण (Merits of Kanhaiya Kumar)

A. बिहार मे सामाजिक न्याय के मसीहा:

1- कर्पूरी ठाकुर
2- लालू यादव
3- कन्हैया कुमार

B. तेजस्वी आज जो कुछ भी हैं, लालू की वजह से, जबकि कन्हैया अपनी मेरिट की वजह से।

C. लालू के बाद बिहार का लालू कन्हैया बनेगा, तेजस्वी नहीं।

D. कन्हैया की ईमानदारी देखिए कि चुनाव प्रचार के लिए वैध तरीके से प्राप्त चंदे रू 70 लाख को चुनाव प्रचार पर ही खर्च कर रहा है।

E. कुछ लोग कन्हैया से जलन कर  सकते हैं पर उसे रोक नहीं सकते. अपने मेरिट से  वो बड़ा नेता बन चुके हैं.  

F. अफवाह और गलतफहमी को दरकिनार कर बेगुसराय से कन्हैया का समर्थन करें।

G. क्या बिहार के अगला मुख्यमंत्री  कन्हैया हो सकते हैं  BMC(भूमिहार-मुस्लिम-कम्युनिस्ट) समीकरण से? तेजस्वी जम नहीं रहे आजकल।

H. जो इंसाफ की बात करेगा। हमारा साथ उसे रहेगा। वह चाहे यादव (लालू) हों या हों भूमिहार (कन्हैया)।

I. मुसलमान धर्म के आधार पर वोट नहीं करता। अगर करता तो सैयद शाहनवाज हुसैन और मुख्तार नकवी को भी वोट करता। बेगुसराय मे तनवीर हसन के होते हुए भी ज्यादातर मुसलमान कन्हैया को वोट करेंगे क्योंकि कन्हैया तनवीर के मुकाबले साम्प्रदायिकता के खिलाफ ज्यादा सशक्त और मुखर हैं।

J. जिनके लिए  कन्हैया का स्वर्ण होना पाप है, क्या वे ऐसा इरादा कर सकते हैं कि किसी भी पार्टी के किसी भी स्वर्ण को वोट नहीं करेंगे। मेरी राय तो यह है कि उम्मीदवार चाहे किसी भी धर्म या किसी भी जाति से हो, अगर वह न्यायप्रिय पार्टी से हो, आपका और देश का हित चाहता हो, तो उसका समर्थन कीजिए।

K. कन्हैया कुमार तेजस्वी से ज्यादा काबिल हैं। लालू के सामाजिक न्याय को आगे बढ़ाने के लिए कन्हैया को ही आगे करना चाहिए।

L. @kanhaiyakumar को अगला मुख्यमंत्री  बनाने के लिए, CPI को अगला बिहार विधान सभा चुनाव  की तैयारी शुरू कर देना चाहिए।

Friday, March 29, 2019

बेगुसराय से कन्हैया को जीतना चाहिए (Kanhaiya should win from Begusaray)

          राष्ट्रीय जनता दल द्वारा कन्हैया कुमार को बेगुसराय लोकसभा सीट से समर्थन न देना निंदनीय है। भविष्य मे इसका खामियाजा पार्टी को भुगतना पड़ सकता है जो कि साम्प्रदायिकता, गरीबी, कुपोषण से लड़ने का दावा करती है।


       जिनके लिए  कन्हैया का स्वर्ण होना पाप है, क्या वे ऐसा इरादा कर सकते हैं कि किसी भी पार्टी के किसी भी स्वर्ण को वोट नहीं करेंगे। मेरी राय तो यह है कि उम्मीदवार चाहे किसी भी धर्म या किसी भी जाति से हो, अगर वह न्यायप्रिय पार्टी से हो, आपका और देश का हित चाहता हो, तो उसका समर्थन कीजिए।


    उम्मीद है कि राजद के तनवीर हसन कन्हैया के समर्थन मे अपनी उम्मीदवारी जल्द ही वापस लेंगे।

Thursday, March 21, 2019

बिहार सरकार मे 6379 इंजीनियर की वैकेन्सी आई है( 6379 engineers required in Bihar government)

     बिहार सरकार मे 6379 इंजीनियर की वैकेन्सी आई है( 6379 engineers required in Bihar government):

       बिहार सरकार के विभिन्न विभागोंं के लिए सिविल, यांंत्रिक और इलेक्ट्रिकल इंजीनियर के लिए बम्पर वैकेन्सी आई है।

           शैक्षणिक योग्यता इंजीनियरिंग मे डिप्लोमा है। न्यूनतम उम्र सीमा 01-08-2018 को 18 वर्ष है जबकि अधिकतम उम्र सीमा जेनरल कैटेगरी के लिए 37 वर्ष है। आरक्षित कैटेगरी के लिए अधिकतम उम्र सीमा मे नियमानुसार छूट मिलेगी। औनलाईन आवेदन करने की अंतिम तारीख 15-04-2019 है। अधिक जानकारी के लिए www.btsc.bih.nic.in या www.pariksha.nic.in वेेवसाइट पर जाएँ।

Wednesday, October 5, 2016

शहाबुद्दीन मुस्लिमों के रहनुमा नहीं बन सकते (Shahabuddin can't be leader of Muslims)

राजद के पूर्व सांसद और दबंग नेता मो० शहाबुद्दीन आजकल चर्चा के केंद्र में हैं. हर कोई उनकी चर्चा कर रहा है चाहे उनके विरोधी हों या फिर समर्थक. कुछ दिन पहले तक शायद उनको भी यह अहसास नहीं होगा कि उनकी चर्चा सिर्फ देश में नहीं बल्कि विदेशों में भी होगी. उनकी सनसनी अगर पूरी दुनिया में है तो इसका क्रेडिट भारतीय मीडिया और भारतीय जनता पार्टी को जाता है.

शायद इतिहास में पहली बार भारतीय जनता पार्टी जैसी बड़ी पार्टी ने हाई कोर्ट के बेल के फैसले को ‘राज्य सरकार’ का फैसला बता कर पुरे राज्य में आन्दोलन किया. देश की  कई निचली अदालतों ने दंगा, फेक एनकाउंटर, दलित नरसंहार, हत्या आदि कई बड़े अभियुक्तों को बेल दिया है या बरी किया है पर उसके खिलाफ इस ढंग का आन्दोलन नहीं देखा गया और न ही मीडिया में ज्यादा सुर्खियाँ पाई.
मीडिया और कुछ राजनितिक पार्टियों द्वारा किये इस अन्याय की  वजह से मो० शहाबुद्दीन के प्रति कुछ लोगों में सहानुभूति पैदा हुयी है. इस सहानुभूति को सोशल मीडिया और शहाबुद्दीन के समर्थकों द्वारा चलाये गए आन्दोलन में भारी भीड़ से समझा जा सकता है.
इस सहानुभूति और समर्थन से मो० शहाबुद्दीन के समर्थक उन्हें मुस्लिमों के रहनुमा के तौर पर पेश कर रहे हैं पर मुझे लगता है कि ऐसा नहीं हो सकता. मो० शहाबुद्दीन मुस्लिमों के रहनुमा नहीं बन सकते जैसी सोंच में  मुझे निम्नलिखित कारण दिखलाई पड़ते हैं.
१.      आजादी के बाद से ही मुस्लिम गैर-मुस्लिम को ही अपना नेता बनाते आये हैं. पहले गैर-मुस्लिम नेतृत्व वाली  कांग्रेस फिर सपा, राजद, बसपा आदि पार्टी को वोट देते हैं.
२.      मो० शहाबुद्दीन जिस पार्टी से आते हैं उसका नेतृत्व लालू यादव करते हैं जो कि मुस्लिमों में खूब लोकप्रिय हैं. लालू जैसा नेतृत्व कौशल उनके बस की बात नहीं.
३.      मो० शहाबुद्दीन की  पहचान अब एक अपराधी के रूप में हो चुकी है. इस पहचान से मुक्ति पाना आसान नहीं है. मुस्लिम किसी अपराधी या दागी चरित्र को अपने रहनुमा के तौर पर  स्वीकार नहीं कर सकते.
४.      अगर मुस्लिम को मुस्लिम नेतृत्व चुनना पड़ेगा तो असदुद्दीन ओवैसी उनसे बेहतर विकल्प हैं.
५.      रहनुमा  के तौर पर असदुद्दीन ओवैसी मो० शहाबुद्दीन पर भारी पड़ेंगे क्योंकि उनका जनाधार पुरे देश में है जबकि मो० शहाबुद्दीन का बिहार तक सीमित है.
६.      असदुद्दीन ओवैसी मो० शहाबुद्दीन पर भारी इसलिए भी हैं कि उनकी छवी साफ़ सुथरी है.
७.      असदुद्दीन ओवैसी मो० शहाबुद्दीन पर भारी इसलिए भी  हैं क्योंकि वो दलितों को साथ लेकर चलते हैं जबकि मो० शहाबुद्दीन की  सिवान में लड़ाई दलितों कि हितैषी वामपंथियों से रही है.
८.      असदुद्दीन ओवैसी मो० शहाबुद्दीन पर भारी इसलिए भी पड़ेंगे क्योंकि उनमे भाषण देने की  कला और वाक्पटुता में महारत हासिल है.
९.      मो० शहाबुद्दीन के जेल से जल्द बाहर निकलने के आसार कम हैं.
१०.  मो० शहाबुद्दीन में दबंगई के गुण तो है पर वे राजनीति के वो कुशल खिलाडी नहीं हैं जिसकी वजह से जेल से बाहर आते ही मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से पंगा ले लिए.

लेकिन मुझे यह भी लगता है कि अगर मो० शहाबुद्दीन और असदुद्दीन ओवैसी साथ आते हैं तो कांग्रेस, सपा, राजद, बसपा आदि पार्टी का काफी नुक्सान होगा.

Monday, October 3, 2016

शराब निर्माण और पैकिंग एवं बॉटलिंग भी बंद हो (Production, bottling and packing of liquor should be banned also in Bihar)

       एक तरफ बिहार सरकार बिहार में शराबबंदी को सफलता से लागू करने में जी जान से जुटी हुयी है तो दूसरी तरफ  बिहार में शराब निर्माण (दुसरे राज्यों में आपूर्ति के लिए) और इसके पैकिंग एवं बॉटलिंग को बढ़ावा दे रही है. सरकार का यह दूसरा कदम हास्यास्पद और घोर निराशाजनक है. 


      सरकार फिर किस मुंह से दुसरे राज्यों में भी शराबबंदी की मांग कर रही है? बिहार सरकार से अपील है कि बिहार में शराब निर्माण भी पूर्ण रूप से बंद होना चाहिए. 

        शराब से जुड़े उद्योगों को दुसरे व्यवसाय में बदलने कि सरकार सार्थक पहल करे चाहे इसके लिए इसके व्यवसायियों को मुआवजा ही क्यों न देना पड़े.
- मोहम्मद खुर्शीद आलम
   

Thursday, September 22, 2016

'पटना लाइव' और साप्ताहिक 'जॉब सर्च' (Patna Live and Job Search)

संपादक महोदय,
'हिन्दुस्तान', पटना



मैं कुछ दिन पटना मे रहकर जाना कि आप 'हिन्दुस्तान' पटना संस्करण के साथ प्रतिदिन 'पटना लाइव' और साप्ताहिक 'जॉब सर्च' भी प्रदान करते हैं.
   ये दोनो अतिरिक्त अंक तो पूरे बिहार के लिए उपयोगी है फिर यह सिर्फ़
पटनावासियों के लिए क्यों? पटना पूरे बिहार की राजधानी है और सभी को पटना की खबर रखने मे दिलचस्पी है. और फिर 'पटना लाइव' मे पटना के अलावे फिल्म, साहित्य आदि से जुड़ी रचनाएँ भी तो हैं. 

इसलिए महोदय से निवेदन है कि
पूरे बिहारवासियों के साथ न्याय करते हुए दोनो अतिरिक्त अंक को पूरे
बिहार मे सर्व सुलभ कराएँ.

- मोहम्मद खुर्शीद आलम

Monday, September 5, 2016

पत्र सूचना कार्यालय की सार्थक पहल (Useful Efforts of PIB)

भारत सरकार के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय की प्रमुख मिडिया इकाई, पत्र सूचना कार्यालय (प्रेस इन्फर्मेशन ब्यूरो) की पटना शाखा द्वारा औरंगाबाद, बिहार के वैष्णवी होटल मे दिनांक ३१ अगस्त २०१६ को 'ग्रामीण मिडिया कार्यशाला- वार्तालाप' के नाम से एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया. इस कार्यक्रम का उद्घाटन औरंगाबाद के जिलाधिकारी श्री कँवल तनुज ने दीप प्रज्ज्वलित कर किया. इस कार्यक्रम मे जिले के शहरी और ग्रामीण सभी पत्रकारों को आमंत्रित किया गया था. 


इस कार्यक्रम का मुख्य उद्येश्य जिले के पत्रकारों का एक डाटा बेस तैयार करना था जिससे सरकारी योजनाओं के बारे मे जानकारी लोगों तक आसानी से पहुँच सके. सभी प्रतिभागी पत्रकारों का नाम, ईमेल और मोबाइल फोन नंबर पत्र सूचना कार्यालय द्वारा दर्ज किया गया.
कार्यक्रम के शुरुआत मे पत्र सूचना कार्यालय, पटना के सहायक निदेशक श्री अफ़रोज़ आलम ने लोगों को इस कार्यक्रम के बारे मे जानकारी दी. उसके बाद मुख्य रूप से पत्र सूचना कार्यालय, पटना के  निदेशक श्री दिनेश कुमार, औरंगाबाद के जिला जन संपर्क अधिकारी श्री मुकेश कुमार 'मुकुल', औरंगाबाद के जिलाधिकारी श्री कंवल तनुज और आकाशवाणी-दूरदर्शन के जिला संवाददाता श्री कमल किशोर  ने लोगों को संबोधित किया.


अन्य वक्ताओं मे उपेंद्र नारायण सिंह, गणेश जी, संजय सिंह, रवीन्द्र कुमार 'रवि', गोपाल जी, प्रियदर्शी कुमार, अलख़्देव प्रसाद 'अचल', मोहम्मद खुर्शीद आलम इत्यादि शामिल थे. कार्यक्रम का संचालन पत्र सूचना कार्यालय, पटना के सूचना सहायक श्री पवन कुमार ने किया.

कार्यक्रम मे श्री प्रेमेन्द्र मिस्र, बिरेन्द्र खत्री, विजय कर्ण, सचदेव सिंह, रणजीत कुमार, दिलीप कुमार उर्फ अनिरूद्ध विश्वकर्मा, सरोज पांडे आदि पत्रकार भी शामिल हुए.

प्रायः सभी वक्ताओं ने सरकारी योजनाओं की सफलता मे मीडीया की भूमिका को सराहा. कुछ वक्ताओं ने छोटे पत्रकारों की आर्थिक दुर्दशा की ओर ध्यान दिलाया.

कुल मिलाकर पत्र सूचना कार्यालय का यह प्रयास सार्थक और सराहनीय है. इससे जिले के सभी पत्रकारों को आपस मे मिलने का सुनहरा अवसर  प्राप्त हुआ और अपनी समस्याएँ एक दूसरे से साझा करने का भी.

Wednesday, August 24, 2016

बिहार में शराबबंदी पर नीतीश को फ़ायदे भी चुनौतियां भी (Benefits and challenges for Nitish Kumar on liquor ban in Bihar)

बिहार के मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार ने बिहार में शराबबंदी लागू करके बहुत बड़ा पुण्य का कार्य किया है. इससे पूरे बिहार में शांति का माहौल बना है. वैसे तो हर बिहारवासी इससे लाभान्वित हुआ है पर महिलाएँ और दलित-पिछड़े ज़्यादा लाभान्वित हुए हैं क्योंकि इस दुर्व्यसन के ज़्यादा शिकार और पीड़ित यही थे.

लेकिन बिहार की विपक्षी पार्टियों के कई लोग (सहयोगी पार्टियों के भी कुछ लोग) शराबबंदी क़ानून हटाने के लिए नए-नए हथकंडे अपना रहे हैं और ‪बिहार‬ के मुख्यमंत्री को बदनाम कर रहे हैं तो इसके पीछे कई कारण हैं जिनमे प्रमुख निम्नांकित हैं:
१. शराबबंदी से श्री नीतीश कुमार की छवि काफ़ी चमकी है और पूरे भारत में इनकी वाहवाही हो रही है जो विपक्षी पार्टियों को हजम नहीं हो रहा है.
२. गुजरात में पहले से शराबबंदी है पर इसका श्रेय भारतीय जनता पार्टी नहीं ले सकती क्योंकि यह कॉंग्रेस के जमाने से है. प्रधानमंत्री के ‘गुजरात मॉडल’ में भी यह शामिल नहीं है. अगर इसे इसमें शामिल करते तो भाजपा शासित अन्य प्रदेशों में भी इसे लागू करना पड़ता जो कि मुश्किल कार्य है.
३. शराब व्यवसाय में ज़्यादा भागीदारी पूंजीपतियों की है जिसका अधिकांश समर्थन भाजपा को है.
४.  श्री नीतीश कुमार की इस अच्छी छवि से सहयोगी पार्टियों में भी बेचैनी है क्योंकि इसका क्रेडिट सिर्फ़ नीतीश कुमार को मिल रहा है क्योंकि उन्हीं का यह चुनावी वायदा था जिसे सरकार बनने के बाद पूरा किया.
५. हर पार्टी में कुछ नियमित शराब पीने वाले हैं, उनको इस शराबबंदी से तकलीफ़ है. वे चाहते हैं कि श्री नीतीश कुमार यह फ़ैसला वापस ले लें.
शराबबंदी की मुश्किलें
१. जो लोग शराब के आदि थे वे इसे कैसे भी हासिल करना चाहते हैं.
२. पड़ोसी राज्यों मे शराबबंदी नहीं है.
३. बुरे तत्व अधिक आय की लालच में या तो इसे पड़ोसी राज्यों से लाकर लुके-छिपे बेच रहे हैं या अवैध ढंग से बिहार में ही निर्माण कर रहे हैं.
४. पुलिसकर्मियों पर काम का दबाव बढ़ गया है.
५. विपक्षी राजनीति की वजह से सब लोग सरकार का साथ नहीं दे रहे हैं.
होना क्या चाहिए
श्री नीतीश कुमार का यह फ़ैसला जनहित में है. सभी देशवासियों को उन्हें इस मसले पर समर्थन देना चाहिए और पूरे भारत में शराबबंदी लागू करने के लिए आंदोलन करना चाहिए. शराबियों को आदत से छुटकारा पाने में वक़्त लगेगा और अच्छे परिणाम आने में भी. शराबियों की हाय-तौबा पर ध्यान न देकर श्री नीतीश कुमार अपने फ़ैसले पर अडिग रहें और शराब पीने से होने वाले नुक़सान का ज़ोर-शोर से प्रचार करते रहें.

Saturday, December 27, 2014

RJD और JDU में गठबंधन हो तो बेहतर (Alliance is better than merger of RJD and JDU)

पिछले कुछ महीनों से बिहार की राजनीति मे राष्‍ट्रीय जनता दल और जनता दल युनाइटेड पार्टी के विलय की चर्चा जोरों पर है। यह संभावित विलय कब होगा, होगा भी या नहीं होगा, कुछ कहा नहीं जा सकता क्योंकि दोनो पार्टियों के नेता इस मुद्दे पर बात करने से कतराते दिख रहे हैं। पूर्व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार तो एक बार इससे साफ इनकार कर चुके हैं। लेकिन इन दोनों पार्टियों के अन्य नेताओं के मार्फत मीडिया मे जो थोड़ी बहुत खबर आ रही है, उससे लगता है कि अंदर ही अंदर इसकी तैयारी चल रही है। जब तैयारी मुकम्मल हो जाएगी तो पूरी खबर भी बाहर आ जाएगी।
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अगर यह विलय हुआ भी तो इसके टिकाऊ होने की संभावना बहुत कम है। इसका मुख्य कारण यह है कि दोनों पार्टियों के सुप्रीमो बिहार के मुख्यमंत्री के रूप मे कई वर्षों तक सत्ता सुख भोग चुके हैं और दोनों की महत्वाकांक्षाएं ज्यादा दिन साथ रहने पर टकराएंगी। मुख्य टकराव चुनाव के वक्त टिकट वितरण में होगा। आरजेडी के सुप्रीमो लालू यादव की कोशिश होगी कि उनके करीबी को ज्यादा टिकट मिले। फिर यही कोशिश जेडीयू के सुप्रिमो नीतीश कुमार की भी होगी। पार्टी पर पकड़ और वर्चस्व बनाए रखने के लिए भी दोनों नेताओं मे होड़ होगी और साथ ही सत्ता मिलने पर सत्ता मे हिस्सेदारी के लिए भी दोनों नेता लड़ सकते हैं।
 
दोनों पार्टियों के हित में यही है कि दोनों अलग-अलग रहकर ईमानदरीपूर्वक गठबंधन कर चुनाव लड़े। सीटों का आपसी सहमति से न्यायपूर्वक बंटवारा करें और चुनाव में एक-दूसरे को ईमानदारी से सहयोग करें। विलय की अपेक्षा दोनों पार्टियों का गठबंधन ज्यादा टिकाऊ होने की उम्मीद है क्योंकि इसमे आपसी टकराव की संभावना बहुत कम रहेगी और पार्टी के अंदर रहकर पार्टी को कमजोर करने वाले तत्व भी कमजोर रहेंगे। गठबंधन की स्थिति मे दोनों नेताओं का अपनी पार्टी पर पूर्ण नियंत्रण भी कायम रहेगा जिससे पार्टी को मजबूत रखने मे मदद मिलेगी।

Wednesday, December 17, 2014

दलितों के नायक जीतन राम मांझी (Jitan Ram Manjhi is hero for dalits)

लक बाइ चान्स यानी किस्मत से बने बिहार के मुख्यमंत्री श्री जीतन राम माँझी स्वयम् को दलितों के नायक के रूप में पेश करने मे कामयाब हुये हैं. मुख्यमंत्री की गद्दी सम्हालते वक्त हर कोई को यही लगा था कि ये पूर्व मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार के रिमोट के रूप मे काम करेंगे. लेकिन लोगों की गलत धारणा को खत्म करने में इन्हें ज्यादा वक्त नही लगा. कुछ ही हफ्तों मे विपक्षी पार्टी भारतीय जनता पार्टी के लोगों ने भी मान लिया कि श्री माँझी 'हटकर' हैं और सारे फैसले खुद ले रहे हैं.

 

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने चाय बेचा है या चायपत्ती (जो कि उद्योगपति टाटा ने भी बेचा है), संदिग्ध हो सकता है पर श्री जीतन राम माँझी द्वारा चूहा पकडना और चूहे के मांस के प्रयोग की बात असंदिग्ध है. बिहार मे महादलित में शुमार मुसहर जाति से आने वाले श्री जीतन राम माँझी द्वारा हाल फिलहाल मे दलितों और पिछड़ों के पक्ष मे दिया गया बयान और कार्य उन्हें दलितों के नायक के तौर पर पेश कर दिया है. यही कारण है कि अब भारतीय जनता पार्टी उन पर डाइरेक्ट हमले करने से बच रही है ताकि दलित वोट उनसे छिटक न जाये. भारतीय जनता पार्टी मुख्यमंत्री श्री जीतन राम माँझी के बजाये बिहार के पूर्व मुख्यमंत्रीश्री नीतीश कुमार पर हमले कर रही है.

 
श्री माँझी द्वारा दलितों और पिछड़ों के समर्थन मे दिये गये बयान की वजह से उनका विरोध पार्टी के अंदर से भी हुआ और मुख्यमंत्री की गद्दी जाने का खतरा भी पैदा हुआ. पर इसकी परवाह न करते हुये अपने बयानों पर कायम रखकर दलितों और पिछड़ों के बीच लोकप्रियता हासिल करने मे कामयाब हुये हैं. चाहे वे अब जितना दिन भी मुख्यमंत्री बने रहें पर बिहार सहित पूरे भारत में एक लोकप्रिय दलित नेता के रूप मे उन्होने जगह तो बना ही ली है. इसका श्रेय बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार को भी जाता है जिन्होंने सत्ता लोभ को त्यागते हुये अपनी कुर्सी छोड़ी और एक निम्नवर्गीय परिवार से आनेवाले दलित को मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी सौंपी.

Sunday, July 27, 2014

सासाराम और औरंगाबाद गोलीकांड

                यूरॉप के देशों के पास अनियंत्रित भीड़ को काबू करने के लिए अच्छी तकनीक है. भारत को और ख़ासकर बिहार पुलिस को उनसे सीखना चाहिए. गोली चलाने से पहले अश्रु गैस और लाठी चार्ज का उपयोग होना चाहिए. सासाराम और औरंगाबाद गोलीकांड मे अश्रु गैस और लाठी चार्ज का उपयोग क्यों नही किया गया, सरकार को इसका जवाब देना चाहिए. थानों के आसपास बहुत बड़ी भीड़ इकट्ठा होने नही देना चाहिए. हर जिले मे ५० पुलिस का एक दस्ता बनाना चाहिए जिसे भीड़ को नियंत्रित करने मे ट्रैनिंग मिली हो और उनके पास अश्रु गैस का स्टॉक होना चाहिए. इनके पास तीव्र गति का वाहन होना चाहिए और इन्हे जिले के केंद्र मे रखा जाना चाहिए ताकि घटना स्थल पर जल्द पहुँच सकें.    

                 शायद 2011 का इंग्लेंड दंगा सबको याद होगा. बड़े पैमाने पर युवाओं के कुछ ग्रूप ने दंगा किया था. यह दंगा 6 अगस्त से 11 अगस्त तक चला था लेकिन पुलिस ने जिस ढंग से काबू पाया था वह काबिल-ए-तारीफ है. अधिक से अधिक अश्रु गैस और लाठी चार्ज का इस्तेमाल किया गया और फाइरिंग न के बराबर. इसलिये जान का कम से का नुकसान हुआ था.

                      
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                     आम आदमी को भी ऐसे अनियंत्रित भीड़ मे शामिल होने से बचना चाहिये. विरोध का तरीका हमेशा शांतिपूर्ण होना चाहिये. साथ ही विरोध अन्याय और ज़ुल्म का होना चाहिये न कि किसी गुनाहगार के पकड़े जाने पर. दोषी आदमी की गिरफ्तारी पर पुलिस का साथ देना चाहिये. अगर गलती से निर्दोष पर कार्र्वाई हो तो इसका शांतिपूर्ण विरोध होना चाहिये और पुलिस को उसकी निर्दोषिता का सबूत देना चाहिये.

Saturday, June 28, 2014

सिर्फ महादलितों के लिये योजनाएं क्यों?

              बिहार के नये मुख्यमंत्री श्री जीतन राम माँझी आजकल कई अहम और कड़े फैसले ले रहे हैं. उन्होने वो फैसले भी लिये जिसे लेने मे पिछले मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार हिचक रहे थे. इससे यह बात साफ हो गयी है कि श्री माँझी रेमोट कंट्रोल वाले मुख्यमंत्री नही हैं और खुद फैसला लेने मे सक्षम हैं. इससे श्री नीतीश कुमार की अच्छाई का भी पता चलता है कि वे नये मुख्यमंत्री को सभी फैसले लेने की आजादी दे रखी है और किसी भी ढंग का हस्तक्षेप नही कर रहे हैं.

            अहम और कड़े फैसले मे एक फैसला बिहार के पुलिस प्रमुख का चेंज करना है. यह तो आने वाला वक़्त ही बतायेगा कि श्री माँझी का लिया गया फैसला कितना सही है और कितना गलत. लेकिन यह सही है कि श्री अभयानंद के विनम्र स्वभाव का उनके कुछ जूनियर ऑफीसर नाजायज़ फायदा उठाते थे और उनके दिशा निर्देश को ठंडे बस्ते मे डाले रखते थे.


        श्री माँझी ने कई कल्याणकारी योजनायों की घोषणा की है जिसमे से अधिकतम योजनाएं महादलितों के कल्याण की है. श्री माँझी को याद रखना होगा कि वे सभी वर्गों के लिये मुख्यमंत्री है. इसलिये उनसे गुजारिस है कि सारी योजनाएं महादलित, दलित, पिछडे वर्ग, अल्पसंख्यक, गरीब स्वर्ण आदि सभी कमजोर और वंचित लोगों के हित मे हो, इसका वे ध्यान रखें.

Wednesday, May 21, 2014

शरद यादव से सतर्क रहें नीतीश कुमार

                      बिहार के निवर्तमान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सिद्धान्तों की खातिर जो क़ुर्बानियाँ की है वैसे उदाहरण राजनीति मे कम ही मिलते हैं. नैतिकता के आधार पर अपने पद से इस्तीफा देना किसी को सीखना है तो नीतीश कुमार से सीखे. नीतीश कुमार को बिहार की जनता ने 5 साल के लिये जनादेश दिया था और इस्तीफे की जरूरत भी नही थी क्योंकि उनकी पार्टी की हार तो लोकसभा चुनाव मे हुई थी, फिर भी इस्तीफा देना और मुख्यमंत्री एक दलित नेता को बना देना, उनकी महानता की कहानी कहती है. लोकसभा चुनाव मे नीति के आधार पर भाजपा से गठबंधन तोड़ना, हार को स्वीकार करना और नतीजों के बाद भी साम्प्रदायिक शक्तियों से दूरी बनाये रखना उनकी महानता को और उपर ले जाती है. 

                     लेकिन नीतीश कुमार की क़ुर्बानियों पर उनकी पार्टी के ही दूसरे वरिष्ठ नेता शरद यादव पानी न फेर दें, इसके लिये नीतीश कुमार को सतर्क रहने की जरूरत है.यह सब जानते हैं कि शरद यादव भाजपा से गठबंधन तोड़ने के खिलाफ थे और दबे स्वर मे विरोध कर रहे थे लेकिन नीतीश के आगे उनकी नही चली. गठबंधन टूटने की वजह से शरद यादव को एन डी ए के संयोजक की कुर्सी गँवानी पड़ी, फिर लोकसभा मे भी हार हुई जिसकी वजह से वो अंदर ही अंदर नीतीश से काफी नाराज़ है और नीतीश और उनकी पार्टी को कमजोर करने मे लगे हैं. नीतीश कुमार से इस्तीफा दिलवाकर, फिर दूसरे को मुख्यमंत्री बनवाकर शरद यादव ने अपनी चाल चल दी है. जीतन राम माँझी के कार्यकाल मे नीतीश की हैसियत कम जायेगी और साथ ही पार्टी भी कमजोर होगी. अगर पार्टी आगे चल कर टूटी तो शरद यादव भाजपा के साथ जाने वाले गुट का नेतृत्व करेंगे और बदले मे भाजपा से अच्छा पोस्ट पायेंगे.

                   इसलिये नीतीश कुमार को शरद यादव के हर कदम पर नज़र गड़ाये रखना चाहिये और पार्टी पर अपनी पकड बनाये रखना चाहिये ताकि बिहारवासियों को एक अच्छे नेता की सेवा लगातार मिलता रहे. साथ ही साथ अगले विधानसभा चुनाव की तैयारी हेतु राजद से सम्बंध अच्छा करना चाहिये ताकि आगे चलकर गठबंधन की संभावना बन सके. उन्हे यह भी ख्याल रखना चाहिये कि जिन लोगों ने उन्हे लोकसभा चुनाव मे धोखा दिया है वो लोग विधानसभा चुनाव मे भी देंगे.

Sunday, April 20, 2014

भाजपा से दुबारा मिलने का सवाल ही नही: डा. भीम सिंह

         बिहार के ग्रामीण कार्य और पंचायती राज विभाग के मंत्री और जनता दल युनाइटेड के वरिष्ठ नेता डा. भीम सिंह ने इस ब्लॉग के लिये दिये गये साक्षात्कार मे कहा है कि उनकी पार्टी अब भविष्य मे कभी भी भाजपा गठबंधन का हिस्सा नही बनेगी. उन्होने यह भी कहा कि उनके नेता श्री नीतीश कुमार की विश्वसनीयता की वजह से ही मुस्लिम समुदाय भी काफी संख्या मे उनकी पार्टी से जुड़ रहा है.


        पाठकगण पूरा साक्षात्कार पढ़ें, इसके पहले मैं मंत्री जी को हार्दिक धन्यवाद देना चाहता हूँ कि उन्होने अपने व्यस्त और कीमती समय मे से कुछ वक्त मेरे इस ब्लॉग के लिये निकाला. बिहार मे कल गुरुवार को दूसरे चरण का महत्वपूर्ण चुनाव था और अभी कई चरण बाकी हैं, ऐसे मे उनका इसके लिये समय निकालना उनकी महानता और सरलता को दर्शाता है.   उनका जवाब आज शुक्रवार की सुबह ही प्राप्त हुआ है. 

अब पेश है उनसे लिया गया साक्षात्कार:
 
खुर्शीद:          आप बिहार मे सामाजिक न्याय के संघर्ष के लिए जाने जाते हैं, आपने इसकी शुरुआत कब और कहाँ से की, क्या कोई घटना आपको इसके लिए प्रोत्साहित किया?
 
 
डा. भीम सिंह: आपने बिलकुल दुरुस्त फरमाया है। मेरी पहचान सामाजिक न्याय के लिए लड़ने वालों में होती है। दरअसल मैं सन 1978 से ही आरक्षण समर्थक आन्दोलन में भाग लेता रहा हूँ। वैसे मैंने स्कूली जीवन में '74 आन्दोलन में भी भाग लिया था। पर तब अपनी समझ से नहीं अपितू सीनियर्स के कहने पर। लेकिन किसी एक घटना को मैं अपने राजनीतिक रुझान का श्रेय या जिम्मेवार नहीं कह सकता। दरअसल एक प्रतिभावान छात्र के एक राजनीतिज्ञ के रूप में परिणति का एक सिलसिला है।
 
 
 
खुर्शीद:          आप लालू जी और नीतीश जी, दोनो के साथ काम कर चुके हैं, दोनों मे क्या फ़र्क महसूस किया?
 
 
डा. भीम सिंह: जी हाँ मैंने दोनों के साथ काम किया है। दोनों एक ही राजनीतिक स्कूल के हैं। दोनों ने लम्बे समय तक एक साथ काम भी किया है।दोनों के नेता जननायक कर्पूरी ठाकुर जी थे। सच पूछा जाये तो मैं भी इसी धारा का हूँ और जननायक कर्पूरी ठाकुर जी ही हमारे भी नेता रहे हैं। स्वाभाविक है कि इन दोनों से मेरी नजदीकियाँ हों।
                  जहाँ तक इन दोनों में फर्क का है तो वह अंतर कार्यशैली का है। आपने स्वंय भी इसका अनुभव किया होगा।नीतीश जी के नेत्रित्व में बिहार ने चमात्कारिक विकास किया है।
 
 
 
खुर्शीद:         भाजपा से अलग होने के बाद बड़ी संख्‍या मे मुस्लिम लोग आप की पार्टी से जुड़ रहे हैं, इसका राज क्या है? क्या आपकी पार्टी भाजपा से दुबारा मिल सकती है अगर भाजपा अपना नेता बदलेंगे?
 
 
डा. भीम सिंह: जी नहीं, बिलकुल नहीं। नेत्रित्व की विश्वसनीयता के कारण मुस्लिम समुदाय का झुकाव हमारी पार्टी की तरफ हुआ है।
 
 
खुर्शीद:          आपकी सरकार भ्रष्टाचार के खिलाफ पुरजोर मुहिम चलाए हुए है लेकिन मीडिया मे आपकी नही 'आप' की चर्चा होती है, ऐसा क्यों?
 
 
डा. भीम सिंह: मिडिया अपनी गाइड की सोच से प्रभावित है.
 
 
 
खुर्शीद:           आप अपने पंचायती राज विभाग मे होने वाले कार्यों पर कैसे नज़र रखते हैं ताकि लाभ सही लोगों को मिले और कार्यों मे भ्रष्टाचार न हों?
 
 
डा. भीम सिंह: विभाग पर चुनाव बाद चर्चा की जाये तो बेहतर होगा ।
 

Friday, January 31, 2014

बिहार और भ्रष्टाचार (Bihar and Corruption)

        भ्रस्टाचार से लड़ाई मे आजकल बिहार सरकार बहुत ही अच्छा काम कर रही है. पिछले कई वर्षों मे कई भ्रष्ट अधिकारियों और कर्मचारियों को जेल के पीछे भेजा गया और उनकी संपत्तियों को जब्त किया गया.

       आज के बिहार के अखबारों पर नज़र डालें तो इसे झुठलाया नही जा सकता बल्कि हक़ीक़त है. भ्रष्टाचार की लड़ाई मे बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बिना प्रसिद्धि के अच्छा काम कर रहे है पर यह दुर्भाग्य है कि सारा प्रसिद्धि अरविन्द केजरीवाल ले रहे हैं.   

     लेकिन मैं यह ब्लॉग नीतीश जी की खामियों को बताने के उद्येश्य से लिख रहा हूँ ताकि वे और भी अच्छा काम कर सकें. यह तो सारे लोग स्वीकार करते हैं कि सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार पुलिस विभाग मे है लेकिन यह बिहार का दुर्भाग्य है कि अधिकांश छापे और निगरानी दूसरे विभागों की हो रही है. थानों मे बिना रिश्वत के किन लोगों का काम होता है चाहे मुकदमा सही हों या फर्ज़ी. नीतीश जी के साथ ही बिहार के बड़े और ईमानदार पुलिस अधिकारियों को इस पर ध्यान देना चाहिये.
     बिहार सरकार के आला अधिकारियों को चाहिये कि दूसरे विभागों के साथ ही पुलिस विभाग से भी भ्रष्टाचार खत्म करें. मुकदमों के जांच अधिकारी, थानाध्यक्ष और डी. एस. पी. लेवेल के अधिकारियों पर निगरानी रखें, इनके कार्यालयों मे और आवासों के बाहर सी. सी. टी. वी. कैमरे लगाएँ. यह सुनिश्चित होना चाहिये की सही मुकदमे बिना रिश्वत और बिना परेशानी के दर्ज हों तथा फर्ज़ी मुकदमे किसी भी स्थिति मे दर्ज न होने पाये.

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