राजद के पूर्व सांसद और दबंग नेता मो० शहाबुद्दीन आजकल चर्चा के केंद्र में हैं. हर कोई उनकी चर्चा कर रहा है चाहे उनके विरोधी हों या फिर समर्थक. कुछ दिन पहले तक शायद उनको भी यह अहसास नहीं होगा कि उनकी चर्चा सिर्फ देश में नहीं बल्कि विदेशों में भी होगी. उनकी सनसनी अगर पूरी दुनिया में है तो इसका क्रेडिट भारतीय मीडिया और भारतीय जनता पार्टी को जाता है.
शायद इतिहास में पहली बार भारतीय जनता पार्टी जैसी बड़ी पार्टी ने हाई कोर्ट के बेल के फैसले को ‘राज्य सरकार’ का फैसला बता कर पुरे राज्य में आन्दोलन किया. देश की कई निचली अदालतों ने दंगा, फेक एनकाउंटर, दलित नरसंहार, हत्या आदि कई बड़े अभियुक्तों को बेल दिया है या बरी किया है पर उसके खिलाफ इस ढंग का आन्दोलन नहीं देखा गया और न ही मीडिया में ज्यादा सुर्खियाँ पाई.
मीडिया और कुछ राजनितिक पार्टियों द्वारा किये इस अन्याय की वजह से मो० शहाबुद्दीन के प्रति कुछ लोगों में सहानुभूति पैदा हुयी है. इस सहानुभूति को सोशल मीडिया और शहाबुद्दीन के समर्थकों द्वारा चलाये गए आन्दोलन में भारी भीड़ से समझा जा सकता है.
इस सहानुभूति और समर्थन से मो० शहाबुद्दीन के समर्थक उन्हें मुस्लिमों के रहनुमा के तौर पर पेश कर रहे हैं पर मुझे लगता है कि ऐसा नहीं हो सकता. मो० शहाबुद्दीन मुस्लिमों के रहनुमा नहीं बन सकते जैसी सोंच में मुझे निम्नलिखित कारण दिखलाई पड़ते हैं.
१. आजादी के बाद से ही मुस्लिम गैर-मुस्लिम को ही अपना नेता बनाते आये हैं. पहले गैर-मुस्लिम नेतृत्व वाली कांग्रेस फिर सपा, राजद, बसपा आदि पार्टी को वोट देते हैं.
२. मो० शहाबुद्दीन जिस पार्टी से आते हैं उसका नेतृत्व लालू यादव करते हैं जो कि मुस्लिमों में खूब लोकप्रिय हैं. लालू जैसा नेतृत्व कौशल उनके बस की बात नहीं.
३. मो० शहाबुद्दीन की पहचान अब एक अपराधी के रूप में हो चुकी है. इस पहचान से मुक्ति पाना आसान नहीं है. मुस्लिम किसी अपराधी या दागी चरित्र को अपने रहनुमा के तौर पर स्वीकार नहीं कर सकते.
४. अगर मुस्लिम को मुस्लिम नेतृत्व चुनना पड़ेगा तो असदुद्दीन ओवैसी उनसे बेहतर विकल्प हैं.
५. रहनुमा के तौर पर असदुद्दीन ओवैसी मो० शहाबुद्दीन पर भारी पड़ेंगे क्योंकि उनका जनाधार पुरे देश में है जबकि मो० शहाबुद्दीन का बिहार तक सीमित है.
६. असदुद्दीन ओवैसी मो० शहाबुद्दीन पर भारी इसलिए भी हैं कि उनकी छवी साफ़ सुथरी है.
७. असदुद्दीन ओवैसी मो० शहाबुद्दीन पर भारी इसलिए भी हैं क्योंकि वो दलितों को साथ लेकर चलते हैं जबकि मो० शहाबुद्दीन की सिवान में लड़ाई दलितों कि हितैषी वामपंथियों से रही है.
८. असदुद्दीन ओवैसी मो० शहाबुद्दीन पर भारी इसलिए भी पड़ेंगे क्योंकि उनमे भाषण देने की कला और वाक्पटुता में महारत हासिल है.
९. मो० शहाबुद्दीन के जेल से जल्द बाहर निकलने के आसार कम हैं.
१०. मो० शहाबुद्दीन में दबंगई के गुण तो है पर वे राजनीति के वो कुशल खिलाडी नहीं हैं जिसकी वजह से जेल से बाहर आते ही मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से पंगा ले लिए.
लेकिन मुझे यह भी लगता है कि अगर मो० शहाबुद्दीन और असदुद्दीन ओवैसी साथ आते हैं तो कांग्रेस, सपा, राजद, बसपा आदि पार्टी का काफी नुक्सान होगा.
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