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Saturday, November 15, 2014

बीजेपी और मुसलमान: आशंकाएं और उम्मीदें

उत्तरदायित्व का ज्ञान बहुधा हमारे संकुचित विचारों का सुधारक होता है. मुंशी प्रेमचंद का यह कथन बहुधा सत्य होता है. लेकिन मुंशी प्रेमचंद ने कथन मे 'बहुधा' शब्द का प्रयोग किया है 'हमेशा' का नही. इसलिए इसी कथन के अनुसार उत्तरदायित्व का ज्ञान कभी कभार हमारे संकुचित विचारों का सुधारक नही भी हो सकता है.

 

हाल के लोकसभा चुनाव मे भारतीय जनता पार्टी का पूर्ण बहुमत से चुनाव जीतना और नरेन्द्र मोदी का प्रधानमंत्री बनना मुसलमानों के लिए कई आशँकाओं को लेकर आया था. वहीं मैं आश्वस्त था कि उनकी आशंकाएं निर्मूल साबित होगीं क्योंकि उत्तरदायित्व का ज्ञान बहुधा हमारे संकुचित विचारों का सुधारक होता है. लेकिन सरकार बनने के बाद राष्‍ट्रीय स्वयंसेवक संघ, भारतीय जनता पार्टी और नरेन्द्र मोदी द्वारा कुछ ऐसे काम हुए जिससे उनकी आशँकाओं को बल मिला है. सर्वप्रथम आशंका बढाने वाले कुछ कामों का जिक्र कर देता हूँ:

 
1. केन्द्रीय मंत्रिमण्डल में नजमा हेपतुल्ला के अलावे किसी और मुस्लिम को प्रतिनिधित्व नहीं दिया गया जबकि शाहनवाज हुसैन और मुख्तार अब्बास नकवी जैसे योग्य और वफादार नेता भाजपा मे मौजूद हैं. शाहनवाज हुसैन चुनाव हारे थे लेकिन यह समुचित आधार नहीं था, उनको मंत्रिमण्डल से बाहर रखने का क्योंकि अरुण जेटली और स्मृति ईरानी को हार के बावजूद अच्छे मंत्री पद से नवाजा गया.
 
2. उत्तर प्रदेश के उप-चुनाव में मुसलमानों के खिलाफ भडकाऊ और अनर्गल बयान देने वाले योगी आदित्यनाथ को स्टार प्रचारक बनाना.
 
3. उप-चुनाव में काल्पनिक 'लव जिहाद' को मुद्दा बनाना.
 
4. योगी आदित्यनाथ और गिरिराज सिंह के विवादित बयान पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का खामोश रहना.
 
5. अमित शाह को भाजपा का अध्यक्ष बनाया जाना.
 
6. संघ से जुड़े लोगों को पार्टी में प्राथमिकता देना.
 
7. दिनांक 09.11.2014 के मंत्रिमण्डल विस्तार मे विवादित गिरिराज सिंह को शामिल करना. 
 
केन्द्र में भारतीय जनता पार्टी के सत्ता में आने के बाद भारतीय मुसलमानों की उम्मीदें भी वही हैं, जो आम जनता की हैं. भारतीय मुसलमान भी यही चाहता है प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अगुवाई वाली सरकार भ्रष्टाचार पर जल्द से जल्द लगाम लगाए. बेतहाशा बढ़ती महंगाई पर काबू करे. चुनावी वादों को पूरा करे. पूरे देश मे शान्ति और सद्भाव का माहौल पैदा करे. अभी सरकार बने ज्यादा दिन नही हुए हैं. सरकार के पास पूरा वक़्त है कि मुसलमानों की आशँकाओं को दूर करे और उन्हें समुचित प्रतिनिधित्व दे और भारत के विकास में समान रूप से भागीदार बनाएं.

अरविन्द केजरीवाल: चूक और चुनौतियां

दिल्ली के उप-राज्यपाल श्री नजीब जंग द्वारा दिल्ली विधानसभा को भंग करने की सिफारिश के साथ ही केन्द्र और दिल्ली की राजनीति मे हलचल सी आ गई है. मीडिया, राजनीतिक पार्टियां सहित आम जनता का सारा ध्यान दिल्ली विधानसभा चुनाव की तरफ खींच गया है.

 

चुनाव तो झारखण्ड और जम्मू कश्मीर मे भी हो रहे हैं पर दिल्ली जितना रोमांचक चुनाव शायद ही हों. इसकी खास वजह 'राजधानी दिल्ली' और अरविन्द केजरीवाल हैं. वर्तमान हालत को देखते हुए यह साफ लग रहा है दिल्ली मे मुख्य मुकाबला अरविन्द केजरीवाल की 'आम आदमी पार्टी' और नरेन्द्र मोदी की 'भारतीय जनता पार्टी के बीच होगी. कुछ दिन पहले हुए उप चुनाव मे कांग्रेस की सफलता से कांग्रेस की वापसी की उम्मीद जगी थी जिसे हरियाणा और महाराष्ट्र चुनाव के नतीजों ने खत्म कर दिया. इन दोनों राज्यों के चुनाव के नतीजे ने कांग्रेस का हौसला तोड़ा है और ऐसा लगता है कि शायद ही कोई कॉंग्रेसी यहाँ मुकाबले मे होने की बात सोंचे.

 
निवर्तमान विधानसभा के त्रिशंकु होने की वजह से यह चुनाव हो रहा है, इसलिये तीनों पार्टियाँ पुरजोर कोशिश करेगी कि यह चुनाव पूर्ण बहुमत से जीते. अरविन्द केजरीवाल 'आप' की तरफ से मुख्यमंत्री के उम्मीदवार हैं. आज इन्ही की बात करते हैं. सबसे पहले मैं इनसे हुई कुछ महत्वपूर्ण चूक की बात करते हैं.
 
1. मुख्यमंत्री रहते हुए धरना पर बैठना इनकी बड़ी भूल थी. इस वजह से मीडिया समेत एक बड़ा वर्ग इनसे खिसकने लगा.
 
2. मुख्यमंत्री पोस्ट से इस्तीफा देने की जल्दी करना. इससे लोगों मे यह संदेश गया कि ये सरकार नहीं चला सकते और लोगों मे एक 'भगौड़ा' की छवि स्थापित हो गई.
 
3. कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनाने के बावजूद इनका मुख्य टारगेट कांग्रेस ही रहा. यह एक 'अहसानफरामोशी' जैसा कार्य था.
 
अरविन्द केजरीवाल के सामने इस चुनाव मे बहुत सारी चुनौतियाँ हैं. वाराणसी मे नरेन्द्र मोदी के हाथों हुई पराजय का बदला दिल्ली चुनाव जीत कर लेना पहली बड़ी चुनौती होगी. भाजपा भी केजरीवाल के कद से भयभीत है, यही कारण है कि वह मुख्यमंत्री के दावेदार का नाम लेने से बच रही है. चुनाव मुख्यमंत्री का हो रहा है पर भाजपा इसे केजरीवाल बनाम मोदी बनाने मे लगी हुई है क्योंकि भाजपा को लगता है कि मोदी के नाम से वह विजय पा सकती है.
 
कुछ दिनों से दिल्ली मे साम्प्रदायिक ध्रवीकरण का भी प्रयास हो रहा है. इसलिये इनको हर जगह 'न्याय का पक्षधर' साबित करने की चुनौती भी होगी. कांग्रेस अभी से ही वहां तीसरे स्थान पर दिख रही है. इस बात का केजरीवाल को ध्यान रखना होगा. उनका पहला टारगेट भाजपा, मोदी, इनके वादे और महंगाई, भ्रष्टाचार जैसे बड़े मुद्दे पर असफलता को बनाना होगा.

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