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Tuesday, October 25, 2016

Talaq is like Effective Poison

Difference between One and Three Talaq:

Many Muslims think that a Talaq (Divorce) will be valid when it will be pronounce 3 times (Triple Talaq). So if a husband wants to be separate from his wife, he gives 3 Talaq. But this recognition is just an error. Truth is that Talaq will be valid even if it will be pronounced 1 or 2 times.

          With one or two Talaq also, couples may be separate forever. After one or two Talaq, wife, after 'Iddat' period, can do a second marriage and she can be of other forever. Or if she wishes, can marry former husband again.

               In case of 3 Talaq, a man can marry his ex-wife if the ex-wife makes a marriage with other man and other man divorces her or the other man dies. So it's better that if a husband wants to be separate from his wife One Talaq (or 2 Talaq) should be pronounced. Similarly, if a wife asks divorce from husband through 'Khula', she should take One Talaq (or 2 Talaq) only. This One Talaq (or 2 Talaq) will give advantage in the future and if they wish to marry again each other, can marry without any embarrassment.


Differences about Triple Talaq:

There are some differences about Triple Talaq among Islamic scholars. Some believe that if Triple Talaq are pronounced at one time or same gathering, it will be treated as One. As per these Islamic scholars, Triple Talaq will be counted as Three if Triple Talaq are pronounced in 3 different gatherings.
        But other Islamic scholars believe that Triple Talaq will be counted Three even if it pronounced together or separately. As per their explanation, Triple Talaq are like "three cups of effective poison’, it will impact a man if he drink in a joke, anger or intoxication position.

Allah dislikes divorce:
Talaq is even Halal but Allah dislikes it. According to a hadith, when a husband divorces his wife, chair of Allah, is shaken. So, it should be avoided as far as possible. Before divorce, should be resolve the differences. To resolve the differences, a meeting should be organized with parents, guardians and Islamic scholars. It should be noted that every human being has some error and nobody is 100 percent perfect. Proceed with life and ignore each other's mistakes.
      If there is no option remaining to live together in harmony then use a “cup of poison of divorce” and use only one “cup of poison of divorce” to be separate so that if you repent in the future, you can atone .
 - Mohammad Khurshid Alam

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Sunday, October 23, 2016

एक और तीन तलाक का फर्क (Difference between One and Three Talaq)

एक और तीन तलाक का फर्क (Difference between One and Three Talaq)

मुसलमानों के बीच आम तौर पर यह  गुमराही फैली हुयी है कि ‘तीन तलाक’ (Triple Talaq) से ही तलाक होता है. इसलिए अगर कोई पुरुष अपनी पत्नी से अलग होना चाहता है तो ‘तीन तलाक’ दे देता है. लेकिन यह मान्यता एक गुमराही भर है. 

     सच यह है कि एक या दो तलाक से भी पति-पत्नी सदा के लिए अलग हो सकते हैं. एक या दो तलाक के बाद पत्नी ‘इद्दत’ का वक़्त गुजरने के बाद दूसरी शादी कर सकती है और सदा के लिए दुसरे की  हो सकती है. और अगर चाहे तो अपने पूर्व पति से भी शादी कर सकती है. ‘तीन तलाक’ कि स्थिति में यह सुविधा बाकी नहीं रह पाती है.  ‘तीन तलाक’ से अलग हुए पति-पत्नी चाह कर भी आपस में फिर से निकाह नहीं कर सकते जब तक कि पत्नी कोई दुसरे मर्द से निकाह करे और फिर उसका तलाक हो जाए या दुसरे  शौहर का इन्तिकाल हो जाए.


    इसलिए बेहतर यही है कि अगर कोई पुरुष अपनी पत्नी से अलग होना चाहे तो ‘एक तलाक’ से ही अलग हो जाए. इसी तरह अगर कोई पत्नी ‘खुला’ के ज़रिये तलाक मांग रही है तो उसे भी चाहिए कि ‘एक तलाक’ ले और अलग हो जाए. इस एक (या दो) तलाक का फायदा यह होगा कि भविष्य में जब वे आपस में फिर से निकाह करना चाहें तो बिना किसी शर्मिंदगी के कर सकते हैं.

‘तीन तलाक’ के मतभेद:

आलिमों के बिच ‘तीन तलाक’ पर कुछ मतभेद हैं. कुछ आलिमों का मानना है कि ‘तीन तलाक’ अगर एक ही बार में यानी एक ही मजलिस में दे दिया गया तो उसे एक ही माना जाएगा. इन आलिमों के नजदीक ‘तीन तलाक’ अगर अलग अलग मजलिस में (कुछ अन्तराल पर ) दिया गया तभी माना जाएगा. जबकि कुछ आलिम यह मानते हैं कि ‘तीन तलाक’ एक साथ दें या अलग अलग, दोनों ही स्थिति में इसे ‘तीन तलाक’ ही माना जाएगा. इनके नजदीक ‘तीन तलाक’ बाअसर ज़हर के तीन प्याले की तरह हैं. इसे चाहे मजाक में पी लें, नशे की  हालत में पी लें या फिर गुस्से में, यह असर करेगा ही. (Talaq is like a effective poison, it will effect you if you eat or drink even in anger, joke or intoxication condition)

अल्लाह को नापसंद है तलाक: 
तलाक हलाल जरुर है लेकिन यह अल्लाह के नजदीक एक नापसंदीदा अमल है. एक हदीस के अनुसार जब कोई पति अपनी पत्नी को  तलाक देता है तो अल्लाह का अर्श हिल जाता है. इसलिए जहाँ तक हो इस से बचना चाहिए. तलाक के पहले आपसी अनबन को हल करने के लिए अपने अभिभावक और उलेमा के साथ मीटिंग करना चाहिए. यह हमेशा ध्यान रखना चाहिए कि हर इंसान में कुछ न कुछ कमी रह सकती है. एक दुसरे की गलतियों को नज़र अंदाज़ कर आगे बढ़ना चाहिए. अगर मिल जुल कर एक साथ रहने की कोई  सूरत बाकी न रहे तभी तलाक का ज़हर पीना चाहिए. और अगर तलाक का ज़हर पीना ही पड़े तो एक ही प्याली पियें यानी एक तलाक से अलग हों ताकि भविष्य में अगर पश्चाताप हो तो इसका प्रायश्चित कर सकें.

- मोहम्मद खुर्शीद आलम (Mohammad Khurshid Alam)

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Tuesday, October 11, 2016

क्यों (Why)


     क्यों (Why)

जमाने को आज हो क्या गया है,
कातिल मुंसिफ बन क्यों गया है?


कानून बनते थे जिन पर शिकंजे को,
वही आज कानून बना क्यों रहा है?


गाँधी को समझते थे जो अपना दुश्मन,
वाह वाह गाँधी’ आज  कर क्यों रहा है?


अक्सर करते हैं जो गन्दी राजनीति,
स्वच्छता की बात आज कर क्यों रहा है?


लड़ा ही नहीं जो आजादी का जंग,
खुर्शीद’ को देशभक्ति सीखा  क्यों रहा है?

   -    मोहम्मद खुर्शीद आलम (Mohammad Khurshid Alam)

Sunday, October 9, 2016

प्रतियोगी परीक्षाओं का खर्च सरकार उठाये (Government Should Bear Expenses of Competitive Examination)

प्रतियोगी  परीक्षाओं का खर्च सरकार उठाये (Government  Should Bear Expenses of Competitive Examination)

      केंद्र सरकार की रिक्तियां हों या राज्य सरकार की या शैक्षणिक संस्थानों में दाखिले के लिए विद्यार्थियों का चयन  , अधिकांश मामलों में प्रतियोगिता परीक्षा का आयोजन होता है. इसके लिए आवेदकों से परीक्षा शुल्क के नाम पर अच्छी खासी राशि ली जाती है. कुछ परीक्षाओं में SC, ST और दिव्यांग आवेदकों से  या तो यह राशि नहीं ली जाती या अन्य आवेदकों के मुकाबले कम ली जाती है. बहुत ही कम ऐसी परीक्षाएं होती हैं जिनमे परीक्षा शुल्क नहीं लिया जाता है.



इन आवेदकों में अधिकांश या तो बेरोजगार होते हैं या फिर विद्यार्थी. बहुत ही कम आवेदक ऐसे होते हैं जो पहले से नौकरी कर रहे हों और बेहतर नौकरी या बेहतर  पढाई के लिए आवेदन किये हों.


केंद्र सरकार या राज्य सरकार गरीबों, मजदूरों, किसानों, पिछड़े, दलितों, अल्पसंख्यकों आदि लोगों के लिए भिन्न भिन्न योजनाओं के जरिये मदद पहुंचाती है या सबसिडी देती है. अगर बेरोजगारों और विद्यार्थियों के कल्याण की  नियत से उपरोक्त परीक्षा शुल्क को केंद्र सरकार या राज्य सरकार या उनके नियोक्ता विभाग वहन करे तो सरकारों पर कोई पहाड़ टूट  नहीं पड़ेगा.


मेरे विचार से बेरोजगारों और विद्यार्थियों के भलाई के  लिए सम्बंधित सरकारों को यह जिम्मेदारी उठानी चाहिए क्योंकि ये लोग या तो अपने माता पिता पर आश्रित  होते हैं या फिर किसी अभिभावक पर. बेरोजगारी के डंक से पीड़ित इन लोगों को बार बार परीक्षा शुल्क के डंक से निजात दिलाना ही चाहिए.

Wednesday, October 5, 2016

शहाबुद्दीन मुस्लिमों के रहनुमा नहीं बन सकते (Shahabuddin can't be leader of Muslims)

राजद के पूर्व सांसद और दबंग नेता मो० शहाबुद्दीन आजकल चर्चा के केंद्र में हैं. हर कोई उनकी चर्चा कर रहा है चाहे उनके विरोधी हों या फिर समर्थक. कुछ दिन पहले तक शायद उनको भी यह अहसास नहीं होगा कि उनकी चर्चा सिर्फ देश में नहीं बल्कि विदेशों में भी होगी. उनकी सनसनी अगर पूरी दुनिया में है तो इसका क्रेडिट भारतीय मीडिया और भारतीय जनता पार्टी को जाता है.

शायद इतिहास में पहली बार भारतीय जनता पार्टी जैसी बड़ी पार्टी ने हाई कोर्ट के बेल के फैसले को ‘राज्य सरकार’ का फैसला बता कर पुरे राज्य में आन्दोलन किया. देश की  कई निचली अदालतों ने दंगा, फेक एनकाउंटर, दलित नरसंहार, हत्या आदि कई बड़े अभियुक्तों को बेल दिया है या बरी किया है पर उसके खिलाफ इस ढंग का आन्दोलन नहीं देखा गया और न ही मीडिया में ज्यादा सुर्खियाँ पाई.
मीडिया और कुछ राजनितिक पार्टियों द्वारा किये इस अन्याय की  वजह से मो० शहाबुद्दीन के प्रति कुछ लोगों में सहानुभूति पैदा हुयी है. इस सहानुभूति को सोशल मीडिया और शहाबुद्दीन के समर्थकों द्वारा चलाये गए आन्दोलन में भारी भीड़ से समझा जा सकता है.
इस सहानुभूति और समर्थन से मो० शहाबुद्दीन के समर्थक उन्हें मुस्लिमों के रहनुमा के तौर पर पेश कर रहे हैं पर मुझे लगता है कि ऐसा नहीं हो सकता. मो० शहाबुद्दीन मुस्लिमों के रहनुमा नहीं बन सकते जैसी सोंच में  मुझे निम्नलिखित कारण दिखलाई पड़ते हैं.
१.      आजादी के बाद से ही मुस्लिम गैर-मुस्लिम को ही अपना नेता बनाते आये हैं. पहले गैर-मुस्लिम नेतृत्व वाली  कांग्रेस फिर सपा, राजद, बसपा आदि पार्टी को वोट देते हैं.
२.      मो० शहाबुद्दीन जिस पार्टी से आते हैं उसका नेतृत्व लालू यादव करते हैं जो कि मुस्लिमों में खूब लोकप्रिय हैं. लालू जैसा नेतृत्व कौशल उनके बस की बात नहीं.
३.      मो० शहाबुद्दीन की  पहचान अब एक अपराधी के रूप में हो चुकी है. इस पहचान से मुक्ति पाना आसान नहीं है. मुस्लिम किसी अपराधी या दागी चरित्र को अपने रहनुमा के तौर पर  स्वीकार नहीं कर सकते.
४.      अगर मुस्लिम को मुस्लिम नेतृत्व चुनना पड़ेगा तो असदुद्दीन ओवैसी उनसे बेहतर विकल्प हैं.
५.      रहनुमा  के तौर पर असदुद्दीन ओवैसी मो० शहाबुद्दीन पर भारी पड़ेंगे क्योंकि उनका जनाधार पुरे देश में है जबकि मो० शहाबुद्दीन का बिहार तक सीमित है.
६.      असदुद्दीन ओवैसी मो० शहाबुद्दीन पर भारी इसलिए भी हैं कि उनकी छवी साफ़ सुथरी है.
७.      असदुद्दीन ओवैसी मो० शहाबुद्दीन पर भारी इसलिए भी  हैं क्योंकि वो दलितों को साथ लेकर चलते हैं जबकि मो० शहाबुद्दीन की  सिवान में लड़ाई दलितों कि हितैषी वामपंथियों से रही है.
८.      असदुद्दीन ओवैसी मो० शहाबुद्दीन पर भारी इसलिए भी पड़ेंगे क्योंकि उनमे भाषण देने की  कला और वाक्पटुता में महारत हासिल है.
९.      मो० शहाबुद्दीन के जेल से जल्द बाहर निकलने के आसार कम हैं.
१०.  मो० शहाबुद्दीन में दबंगई के गुण तो है पर वे राजनीति के वो कुशल खिलाडी नहीं हैं जिसकी वजह से जेल से बाहर आते ही मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से पंगा ले लिए.

लेकिन मुझे यह भी लगता है कि अगर मो० शहाबुद्दीन और असदुद्दीन ओवैसी साथ आते हैं तो कांग्रेस, सपा, राजद, बसपा आदि पार्टी का काफी नुक्सान होगा.

Monday, October 3, 2016

शराब निर्माण और पैकिंग एवं बॉटलिंग भी बंद हो (Production, bottling and packing of liquor should be banned also in Bihar)

       एक तरफ बिहार सरकार बिहार में शराबबंदी को सफलता से लागू करने में जी जान से जुटी हुयी है तो दूसरी तरफ  बिहार में शराब निर्माण (दुसरे राज्यों में आपूर्ति के लिए) और इसके पैकिंग एवं बॉटलिंग को बढ़ावा दे रही है. सरकार का यह दूसरा कदम हास्यास्पद और घोर निराशाजनक है. 


      सरकार फिर किस मुंह से दुसरे राज्यों में भी शराबबंदी की मांग कर रही है? बिहार सरकार से अपील है कि बिहार में शराब निर्माण भी पूर्ण रूप से बंद होना चाहिए. 

        शराब से जुड़े उद्योगों को दुसरे व्यवसाय में बदलने कि सरकार सार्थक पहल करे चाहे इसके लिए इसके व्यवसायियों को मुआवजा ही क्यों न देना पड़े.
- मोहम्मद खुर्शीद आलम
   

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