कुछ दिन पहले जामा मस्जिद, दिल्ली के शाही इमाम अहमद बुखारी ने देशवासियों को मशवरा दिया कि लोकसभा चुनाव मे किसे वोट दिया जाये और किसे नही. इस पर बहुत से लोगों ने बेवजह हाय तौबा मचाया. आजकल हर कोई मशवरा दे रहा है. नवभारत टाइम्स के इसी पेज पर हजारों ब्लोग्गर्स हैं जो किसी न किसी को वोट देने की पैरवी कर रहे हैं. फेसबूक और ट्विट्टेर पर लाखों लोग मशवरा देने मे लगे हुये हैं. धर्मगुरु, योगा गुरु, पत्रकार, लेखक, नेता, अभिनेता सभी लोग मशवरा दे रहे हैं. फिर इमाम बुखारी के मशवरे से क्या आफत आ गई? वे भी भारत के नागरिक हैं और उन्हे भी अपनी बात रखने का अधिकार है.
मशवरा भी उन्होने वही दिया है जो एक आम धर्मनिरपेक्ष और शान्तिप्रिय नागरिक की राय है. जिस ढंग से आजकल साम्प्रदायिक ताकतों की झूठी हवा बनाई जा रही है उसमे उनका कांग्रेस गठबंधन को समर्थन करने का मशवरा देना बिल्कुल ठीक है. आज की तारीख मे कांग्रेस गठबंधन ही साम्प्रदायिक शक्तियों को रोकने मे सक्षम है क्योंकि वामपंथी पार्टियों और तीसरे मोर्चे की हालत आज ठीक नही है.
उत्तर प्रदेश मे सपा को वोट न करने का मशवरा मुज़फ़्फरनगर दंगों मे सरकार की असफलता और राज्य मे दंगे और गुंडई की बढ़ती संख्या का नतीजा है. बसपा दुबारा भाजपा से मिल न जाये, इसलिये बसपा से भी परहेज करने का उन्होने मशवरा दिया है.
पश्चिम बंगाल मे ममता बैनर्जी की तृणमूल कांग्रेस को समर्थन की वजह ममता के अच्छे काम और पूरे किये जा रहे वादे हैं. वैसे वहां के लिये मेरी राय कांग्रेस या वामपंथी को समर्थन देने की है क्योंकि सरकार बनाते समय जरूरत पड़ने पर ममता नाटक कर सकती हैं. तृणमूल को विधानसभा तक ही समर्थन करना बेहतर होगा.
कुल मिलाकर इमाम बुखारी का मशवरा देश हित मे है. साम्प्रदायिक, अवसरवादी और गुंडई को बढ़ावा देने वाली ताकतों को सत्ता मे आने से रोकना ही उनका उद्येश्य है.
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