आम आदमी पार्टी की नेत्री शाज़ीया इल्मी भारतीय मुसलमानो को साम्प्रदायिक होने का मशवरा देकर अपने विरोधियों के निशाने पर है. शाज़ीया अपने उसी विवादास्पद बयान मे यह भी सच स्वीकार करती हैं कि भारतीय मुसलमान धर्मनिरपेक्ष है जो कि एक निर्विवाद सत्य है.
जब शाज़ीया के इस गलत मशवरे की निन्दा चारों ओर से होने लगी तो शाज़ीया ने अपना बचाव किया कि उसके कहने का मतलब था कि मुसलमान स्वार्थी बन जाएं और अपने हित का ख्याल करें. फिर 'आप' के सुप्रिमो अरविन्द केजरीवाल ने भी यही बात कही कि शाज़ीया ने कभी दूसरे धर्म वालों के नुकसान की बात नही कही, दूसरे धर्म वालों से नफरत की बात नही कही बल्कि अपना भला सोच कर वोट करने की बात कही.
संभव है कि शाज़ीया का मकसद यही हो कि मुसलमान स्वार्थी बन कर वोट करें. लेकिन क्या 'स्वार्थी' होना अवगुण या बुराई नही है? हम अक्सर एक दूसरे को स्वार्थी कह कर दूसरे की बुराई की ओर इशारा करते हैं. फिर शाज़ीया का मुसलमानों को एक बुराई पर अमल करने को कहना गलत ही माना जायेगा.
एक सच्चा मुसलमान कभी स्वार्थी नही हो सकता. स्वार्थी होना एक बुराई है और बुराई से दूर रहना मुसलमानों के ईमान का हिस्सा है. एक सच्चे मुसलमान को तो यह भी फिक्र करनी है कि उसका कोई पड़ोसी भूखा न रहे चाहे वह पड़ोसी हिन्दू हो या मुस्लिम या सिख हो या ईसाई. इसी ईमान की वजह से कई किस्से सुनने को मिलते हैं कि मेहमान को खाना खिलाया भले ही मेज़बान भूखा सो गया. सामूहिक खाना खाने के आदाब मे यह सिखाया जाता है कि हमारा साथी हमसे ज्यादा खाना खाएं, इसकी कोशिश करें. हम अपना हक दबाकर दूसरे का हक अदा करने वाले बनें, इसकी प्रेरणा दी जाती है.
इसलिये शाज़ीया इल्मी ने कुछ वोटों की खातिर मुसलमानों को बुराई पर अमल करने को कह कर गलत काम किया है. शाज़ीया को चाहिये कि भविष्य मे ऐसी बातें न करें, अपनी गलतियों पर पश्चाताप करे और इसके लिये माफी मांगे.
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