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Sunday, December 22, 2013

मुसलमानों के मसीहा या दुश्मन

मुलायम सिंह यादव के लिये 'मौलाना मुलायम' या 'मुसलमानों के मसीहा' जैसे विशेषन सबने सुना होगा. लेकिन यह विशेषन क्या सचमुच उन पर सटीक बैठता है या कुछ लोगों ने मुसलमानो को बेवकूफ बनाने के लिये ऐसा प्रचारित किया है.
    लोगों की राय अलग अलग हो सकती है लेकिन मैं तो उन्हे ' मुसलमानों के दुश्मन' के तौर पर ही देखता हूँ. ये मुसलमानों के लिये 'मीठा ज़हर' हैं जबकि नरेन्द्र मोदी 'कड़वा ज़हर'. कड़वा ज़हर तो पिया ही नही जाता जबकि मीठा ज़हर पीकर अपना नुकसान किया जा सकता है.
    मुलायम सिंह यादव ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहते हुये जब कारसेवकों पर गोलियाँ चलवाई थी, तभी से वे भोले भाले मुसलमानों के लिये मसीहा बन गये.लेकिन इस गोलीकांड को मैं न सिर्फ मुसलमानों के लिये बल्कि समाजवादी और वामपंथी विचारधारा सबको नुकसान पहुँचाने का सबसे बड़ा कारण मानता हूँ. इसी गोलीकांड के बाद भाजपा की ताकत पूरे देश मे अचानक बढ गई और पूरे देश मे साम्प्रदायिकता की लहर फैल गई. अगर वे चाहते तो कारसेवकों को पूर्व से ही घटना स्थल पर पहुंचने नही देते और अगर पहुंच भी गये तो लाठियाँ भाँजकर, हवाई फायरिंग कर और अश्रु गैस छोड़कर उनको भगाया जा सकता था. लेकिन उन्होने हिंसक तरीके को अपना कर परोक्ष रूप से भाजपा की मदद की.
  बाद मे उनकी छिपी हुई 'साम्प्रदायिक नीतियों' की पोल तब भी खुली जब बाबरी मस्जिद के विध्वंस के जिम्मेदार कल्याण सिंह को अपनी पार्टी मे लिया.
  अब रही सही कसर मुज़फ़्फरनगर के दंगे ने कर दी. जिस कदर कई दिनो तक पुलिस मूकदर्शक बनकर दंगाइयों को खुली छूट दी उसकी भारी कीमत अगले चुनाव मे उनको चुकानी पड़ेगी. राहत कैंपों मे भी बलात्कारियों का घुसना, बड़ी मात्रा मे बच्चों का इलाज और दवा के अभाव मे मरना और डर की वजह से शरणार्थियों का वापस घर न लौटना समझदारों के लिये बहुत कुछ इशारा करती है.    
उत्तर प्रदेश के चुनाव के वक्त उन्होने मुसलमानों के लिये आरक्षण देने की भी घोषणा की थी पर सरकार बन जाने के बाद अभी तक उस पर अमल नही किया गया.


   हक़ीक़त यही है कि मुलायम सिंह यादव मुसलमानों को सिर्फ वोट के लिये इस्तेमाल करते हैं और कल्याण ज़्यादातर अपने परिवार और यादवों का करते हैं.

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