समाज को बेहतर, शांतिपूर्ण, सुसंस्कृत बनाने के लिए यह आवश्यक है कि हर इंसान इंसाफ़ का पक्ष लेने वाला बने. धार्मिक और जातीय दंगों की सबसे बड़ी वजह यही होती है कि लोग धर्म या जाति की बिना पर दोषी का पक्ष ले लेते हैं. उदाहरण के लिए एक शहर मे किसी एक समुदाय की लड़की का कुछ दूसरे समुदाय के लड़के बलात्कार कर रहे थे.
खबर फैलने पर दूसरे समुदाय के लोग एकत्र हो गये और और उन बलात्कारी लड़कों को पकड़ कर पुलिस के हवाले करने जा रहे थे कि कुछ लड़कों के समुदाय के लोग आए और उन लोगों को छुड़ाने लगे. इससे दंगा भड़का और कई निर्दोष लोग मारे गये. यहां पर इंसाफ़ और न्याय का तक़ाज़ा यह था कि लड़कों के समुदाय के सारे लोग भी उन दोषियों को पकड़ने मे मदद करते और उनको पुलिस के हवाले करते. इससे सिर्फ़ दोषी लोग ही सज़ा पाते और निर्दोष लोगों की जानें बच जाती. उदाहरण इसका उल्टा भी हो सकता है. हम हर हाल मे दोषी का विरोध करने वाला बनें और निर्दोष की रक्षा करने वाला बनें. पैगंबर मोहम्मद (स.) के एक हदीस का मफूम है कि अगर उनकी बेटी फ़ातिमा (र.) भी चोरी करती तो उनका हाथ काट लेते.
बिहार मे उच्च जाति और निम्न जाति के लोगों के बीच झगड़े आम हैं. कभी उच्च जाति के लोग मारे जाते हैं तो कभी निम्न जाति के लोग. हमे हर नरसंहार की निंदा करना चाहिए. अगर दोषी उच्च जाति के लोग हों तो उन्हे भी सज़ा मिलना चाहिए और अगर दोषी निम्न जाति के लोग हों तो उन्हे भी सज़ा मिलना चाहिए.
अगर हम हमेशा इंसाफ़ का पक्ष लेने वाले बनेंगे तो समाज को बुरे और असामाजिक तत्वों से छुटकारा मिलेगा और शांति प्रिय और सुसंस्कृत समाज की स्थापना होगी.
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