आपकी कल्पना आपको सुख पहुँचाती है या दुख, यह इस बात पर निर्भर है कि आप किस तरह की कल्पना करते हैं. अगर आपकी कल्पना सकारात्मक है तो यह आपको खुशी देगी और अगर नकारात्मक है तो गम. गम तो कोई नहीं चाहता, न हम, न आप और न कोई. फिर तो सकारात्मक कल्पना ही करें ताकि आपको, हमें और सबको खुशी मिले.
उदाहरण के तौर पर आप 'रोड ट्रॅफिक' मे फँस गये हैं. वहाँ पर यह कल्पना कि ' आज तो ऑफीस पहुँच ही नही पाएँगे या इतना देर हो जाएगी कि बॉस मुझ पर चिल्लाएगा' करने से अच्छा है कि ' कोई फरिश्ता मेरे लिए आएगा और मुझे अपने परों मे डालकर गंतव्य स्थान तक छोड़ देगा या मेरे लिए सरकार हेलिकॉप्टोर् भेजेगी और गाड़ी सहित लिफ्ट करा के मेरे दफ़्तर छोड़ देगी, आदि, आदि.'
कभी कभी ऐसा भी होता है कि जहाँ हँसने की जगह न हो पर कल्पनाशीलता की वजह से हँसी आने लगती है. जैसे मंदिर, मस्जिद, श्मशान घाट, कब्रिस्तान, बॉस या सीनियर लोगों के साथ मीटिंग आदि. यहाँ पर अगर कल्पनाशीलता की वजह से हँसी बाहर आ जाए तो असहज स्थिति बन जाती है. ऐसे मे अपनी कल्पना पर रोक लगाना ही सही होता है नहीं तो खुद ही हँसी के पात्र बन सकते हैं. इस असहज स्थिति से बचने के लिए ऐसे जगहों पर 'अपनी मौत को याद करना चाहिए' ताकि संभावित हँसी से बचा जा सके और हँसी का पात्र बनने से भी.
अपनी बात
कुछ दिनों पहले मेरे 'बॅचलर' रूम मे चार अतिथि आ गये. वो खा पीकर जल्दी सो गये. मेरा भारी भरकम रूम पार्ट्नर को रूम मे देर से आने की आदत है. मैने उनके लिए उनका जगह खाली रखा पर यह कल्पना कि ' रात मे यह भारी भरकम आदमी आएगा और कम रोशनी की वजह से मेरे अतिथि पर गिर जाएगा और फिर...' मेरे लिए तब तक असहज स्थिति बनाए रखी जब तक कि मुझे नींद नही आ गयी. अगर खुदा न ख़ास्ता, मेरी हँसी बाहर आ जाती तो पता न अतिथि क्या सोचते. इसलिए मैने अपनी इस कल्पना को 'अपनी मौत को याद कर के दबाने की कोशिश की.
Aap Ka blog bahut accha hai or jo likha hai sahi likha hai
ReplyDeleteAap Ka blog bahut accha hai or jo likha hai sahi likha hai
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