'रब्बिर् हम् हुमा कमा रब्बयानी सगीरा'। (ऐ अल्लाह, उन (मेरे वालीदैन) पर रहम कीजिए जैसे उन्होंने मुझे बचपन मे पाला है।)
यह दुआ अल्लाह ने कुरान मे सिखाई है। इस दुआ को याद कर लीजिए और अपने माता-पिता के लिए दुआ मांगते रहिए।
और माता-पिता की किसी बात पर उफ्फ भी न कीजिए। उनकी हर बात मानिए सिवाय शरियत के खिलाफ जो बात कही जाए। जैसे कि वो कहें कि बेटा फर्ज नमाज न पढ़ो। तो ऐसी बात को नहीं मानना है। ऐसी स्थिति मे उनको प्यार से मना कर देना है कि नहीं पापा/ मम्मी, नमाज तो अल्लाह का हुक्म है, इसे छोड़ नहीं सकते।
माता-पिता के हुकूक के बारे में कुरान और हदीस मे कई जगह जिक्र किया गया है। इसे जानने के लिए अपने नजदीक के उलेमा के सम्पर्क मे रहें।
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