आजकल 'लव ज़िहाद' की खूब चर्चा है. कुछ लोगों का मानना है कि कुछ मुस्लिम युवक दूसरे धर्म की युवतियों को पहले प्रेम जाल मे फांसते हैं और फिर धर्म परिवर्तन कराकर शादी करते हैं.
हक़ीक़त मे यह एक दुष्प्रचार है जो उन लोगों द्वारा फैलाया गया है जो इस्लाम को बदनाम करना चाहते हैं और मुस्लिमों के प्रति नफरत की भावना फैलाना चाहते हैं.
इस्लाम मे तो एक मर्द द्वारा अपनी बीवी के अलावा किसी दूसरी लड़की या औरत को घूर कर देखना भी गुनाह है. इसी गुनाह के चलते डा. ज़ाकिर नायक ने पीस टी वी के कैमरामैनों को निर्देश दे रखा है कि किसी भी कार्यक्रम मे महिलाओं की तरफ उनका फोकस कुछ सेकंडों से ज्यादा न हो.
एक हदीस मे पैगंबर मोहम्म्द (स. अ. व.) ने एक गैर- महरम (करीबी रिश्तेदार को छोड़कर) मर्द और औरत को एकांत मे बैठने को भी मना फरमाया है ताकि शैतान अपना काम न कर जाये. फिर यह कैसे संभव है कि मुसलमान काल्पनिक 'लव ज़िहाद' का समर्थन करें या कुछ लोग इसमे शामिल हों.
दरअसल जो कुछ मामले मुस्लिम युवकों के दूसरे धर्म की युवतियों से शादी के पाये जाते हैं वह उसी ढंग से प्राकृतिक कारणों की वजह से है जैसे कुछ मुस्लिम लड़कियां दूसरे धर्म के लड़कों से शादी करती हैं. इसमे धर्म का कुछ रोल नही बल्कि प्राकृतिक आकर्षण भर है.
भारत मे ऐसे भी ज्यादातर मुस्लिम युवक अशिक्षा, बेरोजगारी और गरीबी की समस्याओं से जूझ रहा है. इस बात को कई सरकारी रेपोर्टें भी सही ठहराती है. ऐसे मे इन लोगों को ऐसे 'अनैतिक और मुश्किल अभियान' मे शामिल होने की बात करना बेवकूफी से ज्यादा कुछ नही है.
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