औरंगाबाद लोकसभा सीट के लिये कांग्रेस, भाजपा और जद-यू ने उम्मीदवार घोषित कर दिये हैं. इन बड़ी पार्टियों के उम्मीदवार घोषणा के बाद हार-जीत का अनुमान लगाना आसान हो गया है. भ्रष्ट और तरफदारी करने वाले तो 1 साल पहले से ही अनुमान लगा रहे हैं और नतीजों को प्रभावित करने की कोशिश कर रहे हैं. लेकिन उनकी इस बेमानी कोशिश का असर तो बिहार मे नही होने वाला है. बिना उम्मीदवार घोषणा के अनुमान लगाना तो पूरे भारत के लिये बेमानी है.
औरंगाबाद लोकसभा सीट राजपूत बहुल सीट है. कुछ लोग इसे इसीलिये 'चित्तोरगढ' की संग्या भी देते हैं. कांग्रेस और भाजपा दोनो ने राजपूत उम्मीदवार दिये हैं. कांग्रेस के उम्मीदवार निखिल कुमार के पिताजी और दादाजी बिहार मे राजपूतों के सर्वमान्य नेता रह चुके हैं. इनके पारिवार की कांग्रेस के प्रति वफादारी के कारण इनका कांग्रेस मे खूब महत्व दिया जाता है. इसलिये अभी भी राजपूतों को बड़ा हिस्सा इन्हे अपना नेता मानता है.
वर्तमान सांसद सुशील सिंह जद-यू छोड़कर भाजपा मे शामिल हो गये हैं और इस बार भाजपा की टिकट से चुनाव लड रहे हैं. पार्टी बदलने से कोइरी-कुर्मी का वोट इनसे खिसक चुका है. भाजपा मे शामिल होने की वजह से मुसलमान और पिछड़ी जातियों के वोट से भी हाथ धोना पड़ेगा. राजपूतों के एक छोटे से हिस्से के वोट, भूमिहार और पासवान के वोट से जीतना मुश्किल दिखाई दे रहा है.
जद-यू ने कोइरी जाति के बागी वर्मा को चुनाव मे उतारा है. इससे इन्हे कोइरी- कुर्मी के सारे वोट मिलेंगे. साथ ही नीतीश के विकास कार्यों के वजह से कुछ और वोट आयेंगे लेकिन इनका यह वोट इन्हे जीताने के लिये काफी नही होगा.
चूंकि कांग्रेस का राजद से तालमेल है, इसलिये कांग्रेस को यादव, पिछड़ी जाति (कोइरी-कुर्मी छोड़कर) और मुस्लिम का वोट थोक भाव मे मिलेगा. राजपूतों का बड़ा हिस्सा इनके साथ है. इन सब परिस्थितयों पर गौर करने के बाद मुझे तो इस सीट से कांग्रेस की जीत पक्की दिखाई देती है.
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