इंसान दुनिया मे अगर खूब धन दौलत और शोहरत हासिल कर लेता है तो खुद को कामयाब और बड़ा फायदे वाला समझने लगता है. लेकिन इंसान की यह भूल है. धन-दौलत और शोहरत तो हराम तरीके से धन अर्जित कर के भी हासिल किया जा सकता है लेकिन दरअसल यह घाटे का सौदा है. अल्लाह ने धन-दौलत हासिल करने के लिये मना नही किया है मगर हलाल तरीके से. अल्लाह ने 'शोहरत के उद्येश्य' से किये गये काम को मना फरमाया है. हमारा हर नेक काम अल्लाह को राज़ी करने के उद्येश्य से होना चाहिये न कि दुनिया मे शोहरत और दिखावे के उद्येश्य से. दिखावे के उद्येश्य से किया गया अरबों और करोड़ों रुपये का दान अल्लाह को नापसंद है जबकि एक रुपये का दान भी अगर अल्लाह को राज़ी करने के उद्येश्य से किया गया तो यह अल्लाह को पसंद है.
क़ुरान के सूरतुल अस्र (103:1-3) मे अल्लाह जमाने की कसम खाकर कहता है कि सारे इंसान घाटे मे है लेकिन ईमान लाने वाले और नेक अमल करने वाले और नेक अमल की दावत देने वाले और सब्र की नसीहत करने वाले फायदे मे हैं. अल्लाह को कसम खाने की क्या जरूरत है लेकिन अल्लाह को अपने बंदे से इतनी मोहब्बत है कि कसम खाकर भी बंदों को सत्य मार्ग पर चलाना चाहता है. अल्लाह अपने हर बंदे को जन्नत मे जाने वाला देखना चाहता है और जहन्नम से छुटकारा पाने वाला.
इस सम्बंध मे एक हदीस का माफ़ुम है कि अल्लाह अपने बंदों से एक माँ की मोहब्बत से 70 गुना ज्यादा मोहब्बत करता है. इसलिये सारे इंसान को चाहिये कि हक बात की पहचान करे और उस पर ईमान लाये. सिर्फ और सिर्फ हक पर चलने वाला बने और हक बात को दूसरों तक भी पहुँचाये. हर हाल मे सब्र यानी संयम को अख्तियार करे और इसकी दूसरों को भी नसीहत करे.
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